Sunday, December 21, 2008

पहली नज़र

"जब मैने देखा उसे पहली बार
में देखता रहा उसे बार बार
कोई नूर था उसके चेहरे में ऐसा
लगा मुझे हो गया उससे प्यार"

"सच में वो था पहली नज़र का प्यार
जो कर गया मेरे मन को बेकरार
जब बेकरारी में मैं हो गया जार जार
पूछा किसी से क्या यही है प्यार"

"कहा उसने ना ज़मीन पर, ना आसमान पर
है कोई नहीं जो बताए क्या है प्यार
सृष्टि के कण कण में फैला है प्यार
ये वही बतलाए जिसे हुआ हो प्यार"
कैसे मिले इस बैचेनी से मन को करार"

"पर जब मैने देखा उसे अगली बार
उसकी आँखों में भी झलका था प्यार
वो भी थी कुछ कहने को बेकरार
यही था हमारा पहली नज़र का प्यार"


"अक्स"

दुनिया का खेल

"दुनिया है एक अजब तमाशा
लगता है सबको अच्छा सा
झूंठे हैं सब रिश्ते इसके
कोई नहीं है यहाँ किसी का"

"लगते हैं सब खेल खिलोने
जिन्हे चलाता उपर वाला
कब कौन मिलेगा,कौन बिछ्डेगा
समझ नहीं कोई ये पाता"

"फसें हैं हम भी मोहज़ाल में
है कोई प्यारा सा हमे जो भाता
मन कहता है छोड दे सब
पथ पर कोई नज़र ना आता"

"दुनिया के हैं खेल निराले
लगते हैं सब भोले भाले
फिर भी नहीं कोई सुहाता
ये दुनिया है एक अजब तमाशा"

"अक्स"

दर्द ए दिल

"हमारे गमो का नहीं कोई ठिकाना
जिसे ना किसी ने समझा ना किसी ने जाना
समझते रहे हम जिसे उमर भर अपना
बना गया वही हमे पल भर में बेगाना"

"देते रहे दुआ रहो खुश उमर भर
पर ना मिलने कभी हमसे आना
कर दिया अंत दो लफ़्ज़ों में कहानी का
कोई बताए हमे क्या अब मतलब ज़िंदगानी का"

" बन गयी है ज़िंदगी अब नीरस नाकाम
जीना पड़ेगा उमर भर पीते हुए दर्द ए दिल का जाम"

"अक्स"

साया

"दूर कहीं बादलों के सामें
एक तस्वीर नज़र आती है
कुछ धुंधली, कुछ गुमसुम्म सी
हर पल खामोश नज़र आती है"

"वो नाराज़ है शायद मुझसे
तभी ना देख मुस्कुराती है
आता हूँ शायद नज़र जब उसको
आँखें उसकी छलक जाती हैं"

"उसको मनाने का मन बना रहा हूँ
वो मुझे देखने से भी कतराती है
दो पल सुकून को आँखें बंद करता हूँ
वो तस्वीर दिल में उभर आती है"

"अक्स"

ख्वाब

"मेरे ख्वाबो में हर पल
एक अक्स उभरता रहता है
पल में बनता , पल में बिगड़ता
हर वक़्त सँवारता रहता है"

"वो मेरा ख़याल है या चाहत
मेरा दिल ये पूछता रहता है
नहीं जानता खुद ये साहिल
हर वक़्त तड़पता रहता है"

"वो ख़याल कब बनेगा हक़ीकत
हर पल सोचता रहता है
ख़याल ओ ख्वाब की जद्दोजेहद में
वो अक्स उभरता रहता है"

"अक्स"

ख़याल

"वो एक खूबसूरत सा चेहरा
आज भी याद आता है
जिसकी मुस्कुराहट को याद कर
दिल मेरा तार तार हो जाता है"

"वो प्यारा मासूम सा चेहरा
जैसे हो अधखिली कली गुलाब की
या हो पूनम रात का चाँद
पर आज शायद अस्त हो गया है"

"उसे याद कर आँखें भीग जाती हैं
दिल से याद फिर भी ना जाती है
कभी कभी लगता है मुझको साहिल
मेरे दिल में धड़कन उसी चेहरे से आती है"

"पर जल्द ही ये भ्रम टूट जाता है
ओर वो खूबसूरत चेहरा फिर याद आता है"

"अक्स"

आरज़ू

“तेरे ख्वाबो में आने की आरज़ू है मेरी
तेरी नींदें चुराने की आरज़ू है मेरी
तू अगर चाहे तो भी मुझे भूल ना सके
तेरी आँखों में बस जाने की आरज़ू है मेरी”

“तेरी राहों से मैं सारे कांटें चुन लूँ
उनमें फूल बिछाने की आरज़ू है मेरी
जिस ओर से भी गुज़रे तू ए दोस्त मेरे
वो गली खुशबू से भर दूँ आरज़ू है मेरी”

“हो तुझे गम भी अगर ज़िंदगी में कोई
दर्द से मैं तड्पूं आरज़ू हैं मेरी
तू करे बहाना भी मरने का अगर साहिल
ख़याल तेरा हो मुझे मौत आए आरज़ू है मेरी”

“तेरे ख्वाबों में आने की आरज़ू है मेरी
तेरी नीदें चुराने की आरज़ू है मेरी”

"अक्स"

Friday, December 19, 2008

प्यार

"उन आँखों की झील सी गहराई में
ना जाने मेरा दिल कब खो गया
ना एहसास हुआ तनिक भी मुझको
बस एक लहर उठी ओर प्यार हो गया"

"जाने क्यूँ मैं बहता गया उनमे
हर किनारा मुझसे दूर हो गया
मैं घिरा रहा उसकी जुल्फों की छाँव में
जाने कब सवेरा जाने कब अंधेरा हो गया"

"उसकी बातों के जादू से मैं बच ना पाया
बस उसकी ही ओर मैं खींचा चला आया
उस गुलाब से चेहरे का कोई जवाब नहीं
जिसकी खुशबू ने मेरा जीवन महकाया"

"मेरी ज़िंदगी का हर रुख़ ही मोड़ दिया उसने
जाने क्यूँ मैं भी बदले बिना रह ना पाया
उसी का ही एहसास महका है मेरे जीवन में
उसने ही मेरे अरमानो को यूँ उड़ना सिखाया"

"अक्स"

Wednesday, November 26, 2008

बचपन

"जीवन की इस आपा धापी में
मेरा बचपन कहीं खो गया है
ना जाने क्या क्या सॅंजो रखा था मैने
जो मेरा होकर भी कहीं छुट गया है"

"वो बचपन की बातें, वो सारी बरसातें
वो यारो का मिलना , मिलकर झगड़ना
वो गाँव की गलियाँ, गाँव के मेले
ना जाने कहाँ हैं उन्हे ढूंढता हूँ"

"वो बापू की डाटें, वो माँ का दुलार
भाई का स्नेह, बहन की राखी का प्यार
जीवन का मेरे जो था एक सहारा
ना जाने क्यूँ मुझसे छीना गया है"

"नहीं बचा कुछ भी अब इस जीवन में
जो लगे मुझे अपना, जो लगे प्यारा सा
फिर ढूंढता हूँ वही अपना बचपन
लुटा के अपना ये मैं जीवन सारा"

"अक्स"

Wednesday, November 12, 2008

बरसात की रात

"बात है एक रात की
हो रही बरसात थी
जा रहा था मैं भीगते -२
संग किसी की याद थी"

"भीगते-२ पहुँचा मैं किसी मोड पर
नहीं आ रहा था नज़र कोई रोड पर
मुझे लगा मैं खो गया हूँ
चल रहे हैं कदम, मैं सो गया हूँ"

"तभी दी किसी ने आवाज मुझे
कहाँ जा रहा है यूँ भीगते हुए
देखा चौंककर, नहीं आया कोई नज़र
अब तो लगने लगा मुझे अंधेरे से डर"

" तभी आया ये ख्याल मुझे कि
थी आवाज ये मेरे मन की
जिसमें भरी है उमंग मेरे जीवन की
यही सोचते-२ मैं रात भर चलता रहा
कि बरसात कि रात में क्या रात भर मैं करता रहा
बरसात कि रात में क्या रात भर मैं करता रहा

"
अक्स"

पतझड़

"आज फिर पतझड़ का मौसम आया है
बनकर बेकरारी सबके दिलों पर छाया है
बेकरार-ओ-बेबस हैं सब इस पतझड़ में
इसने सभी का चैन चुराया है
आज फिर पतझड़ का मौसम आया है"

"पतझड़ में पत्ते साख से बिछड़ जाते हैं
अजनबी की तरह न कभी वापस आते हैं
कहाँ जाते हैं नहीं जानता कोई
बस दिलों में अपनी यादें छोड़ जाते हैं"

"कहते हैं लोग पतझड़ बीत जाएगा
कभी न कभी बसंत भी आएगा
पर जो बिछड़ गए हैं इस पतझड़ में हमसे
कोई बताये उन्हें कौन वापस लायेगा"

"इस दिल से निकलती है दुआ ऐ-रब
ऐसा पतझड़ न किसी के जीवन में आए
न बिछ्ड़ें उससे कभी उसके अपने
वो न एक साख से टूट पत्ता बन जाए"

"अक्स"

नन्ही खुशी " मेरी प्यारी-२ भतीजी इतिश्का"

"आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है
बनकर मुस्कान सबके लबो पर छाई है
देखते हैं सब प्यार से बार बार उसे
जो बनकर हमारे लिए एक तोहफा आई है
आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"

"बसी है उसी में जान हम सबकी
लगती है वो एक नन्ही परी सी
देखता है उसे कोई जब भी , कहीं भी
कहता है हमने कुदरत की मेहरबानी पाई है
आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"

"मैं उसे देख कर फूला नहीं समता हूँ
सारे जहाँ की खुशियाँ संग उसी के पाता हूँ
बनकर एक आफ़ताब उसने रौशनी फैलाई है
आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"

"अक्स"

Monday, November 10, 2008

वो

"दर्दे दिल बयान करूँ भी तो कैसे
यहाँ दिल की सदा कोई सुनता नहीं
दामन में मेरे ही बस उलझे हैं काँटे
कोई उनको यहाँ क्यूँ चुनता नहीं"

"वो जो अगर आज हमारी होती,
आरजू मेरी ना यूँ कुँवारी होती,
दिल की खलवतो में बसती वो,
मेरी दुनिया में ना वीरानी होती "

"जिंदगी में कुछ मुकाम ऐसे भी आते हैं
जब नहीं मिलती राही को मंजिल उसकी
भटकता रहता है वो दर बदर साहिल
उसके अपने भी साथ छोड़ जाते हैं"

"जला कर घर मेरा उन्हें क्या मिला साहिल
हमसे कहते तो हम उनका दर्द भी अपना लेते !"


"
कुछ यों मौसम--हाल बना रक्खा है मैने
दिल में तेरी जुदाई का गम पाल रक्खा है मैने
ना जाने तू क्यूँ नाखुदा हो गया साहिल
फिर भी तुझी को खुदा मान रक्खा है मैने"

"अक्स"

Wednesday, November 5, 2008

वो अकेली लड़की

"देखी मैंने एक दिन एक लड़की
थी थोडी घबराई थोडी झेंपी सी
जाने किसका था इंतज़ार उसको
देखती थी वो बार बार घड़ी"

"देखा गौर से तो लगी थोडी परेशान सी
उसे न था किसी से मतलब कोई
सड़क भी थी लगी होने सुनसान सी"

"धीरे धीरे समय बीतता रहा
वो खड़ी रही सबसे अनजान सी
अंत में बस हम दोनों थे खड़े वहाँ
लगा वो होने लगी गुमनाम सी"

"वो चलने लगी सड़क के एक ओर को
अंधेरे की ओढ़कर चादर वीरान सी
मैं रहा देखता उसे बस रहा सोचता
वो कौन थी अकेली लड़की
वो कौन थी अकेली लड़की "

"अक्स"

सफर

"निकला हूँ एक अनजाने सफर पर
न मालूम जाना कहाँ, जाना किधर,
बस चला हूँ नापते हुए डगर
मन में है शंका फिर भी मगर
की क्या है ये ज़िंदगी का सफर"

"जिसे करते हैं लोग पर हैं बेखबर
इतने बेखबर कभी न जान पाये
कब मौत ने लिया आकर उनको धर
मैं सोचने को हूँ मजबूर साहिल
कैसा सफर है ये ज़िंदगी का सफर"

"जहाँ पल में लोग मिलते हैं, बिछड़ते हैं
यादें बनकर कर जाते हैं दिल में घर
ये कैसा सफर,न मालूम जाना कहाँ जाना किधर
लगता है नहीं कोई सरहद-ऐ-सफर
फिर भी चला जा रहा हूँ अनजानी डगर"

"न जाने साहिल कहाँ जाए ये डगर
फिर भी चल रहा है सफर
मन में है बस यही बात मगर
ज़िंदगी का सफर , ये कैसा सफर"

"अक्स"

जिंदगी

"ये जो है ज़िंदगी बस एक नाम है
बाकी सब इसमे नीरस, बेनाम है
न कोई इसे समझ पाया था,न कोई इसे समझ पाया है
ये तो चाँद सितारों से भी परे की बात है
ये जो है ज़िंदगी बस एक नाम है"

"कुछ लोग ज़माने में ऐसे भी होते हैं
पाकर ज़िंदगी बहुत खुश होते हैं
मगर नादान न समझकर इसका मोल
इसे यूँ ही मयकदों में खोते हैं
आती है जब मौत मिलने गले
तब है ज़िंदगी, है जिंदगी रोते हैं"

"इसलिए कहता हूँ साहिल
न कर जिंदगी से प्यार इतना
पड़े पछताना देख कर झूठा सपना
ये जिंदगी बस एक हसीं ख्वाब है
शायद इसलिए ही जिंदगी इसका नाम है"

"अक्स"

Tuesday, November 4, 2008

कौन ?

"सोचता हूँ मैं कभी-कभी
वो कौन है, और क्या है
जो छुप छुप कर आता है
सबको दिन रात तड़पाता है"

"जीवन में हंसाता है, रुलाता है
जीवन का हिस्सा बन जाता है
फिर भी नहीं कोई पहचान पाता है
कौन है वो और क्या है"

"जो हमारे मन को बहलाता है
जाएँ कभी हम जीवन में फिसल
हाथ बढाकर हमें उठाता है
कभी गम, कभी खुशियाँ दे जाता है
वो कौन है, क्या है कोई नहीं जान पाता है"

"अक्स"

मौत

"इस जिन्दगी का क्या भरोसा
क्या करिए इसका ऐतबार
है ये एक बेवफा प्रेमिका
जो लूट ले जाए करार"

"मौत है सच्ची दोस्त अपनी
अपने साथ ले कर जाती है
ये न कभी जिंदगी की तरह
पल-पल हमें तडपाती है "

"हम खाए बैठे हैं जिंदगी से खार यारो
ये जिंदगी न अब हमें भाती है
अब तो बस इंतज़ार है हमें मौत का
जाने कब गले मिलने आती है "

"अक्स"

कागज़ की किश्ती

"कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा
बारिश का पानी है इसका अँधेरा
उतरती है, डूबती है ये किश्ती मेरी
ढूँढने पर भी नहीं मिलता किनारा
कब उतरेगी जाने ये किश्ती मेरी
है मुझे तूफ़ान का भय सारा
कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा
बारिश का पानी है इसका अँधेरा"

"जाती हैं जहाँ तक नज़रें ये मेरी
आता है नज़र बस अश्को का मेला
नहीं रोक सकता मैं अश्क किसी के
मुझको भी है इन अश्को ने घेरा
किश्ती मेरी लहराती है इन पर
नहीं इसमें कोई दोष ऐ मांझी तेरा
कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा
बारिश का पानी है इसका अँधेरा"

"अक्स"

चिराग

"जीवन मेरा एक जलता चिराग है
दामन में जिसके केवल आग है
रोशन है जहाँ सभी का इससे
सभी केवल इसके कर्ज़दार हैं
जलने की नहीं ख्वाहिश इसकी
फिर भी जलने को बेकरार है
जीवन मेरा एक जलता चिराग है
दामन में जिसके केवल आग है"

"पहलू में इसके नहीं कोई आता
जलने का डर है सबको सताता
दूर से लेते हैं सभी तपिश इसकी
नहीं गले से इसे कोई लगाता
फिर भी जलना इसका काम है
जीवन मेरा एक जलता चिराग है
दामन में जिसके केवल आग है"

"अक्स"

Sunday, November 2, 2008

करुण

एक दिन चला मैं किसी डगर पर
रुके पग मेरे सुनकर कुछ करूँ स्वर
चला उधर मैं सुन ये कोलाहल
देखा किए थे शोक कुछ जन एक मृत पर
बिलख २ कर रो रही थी माता उसकी
थाम कलाई बहन पड़ी थी बेसुध उसकी
नहीं थम रहे थे आंसू उसके तात के
बिछ्ङ गया हो जैसे कोई पात डाल से
नाम ले ले कर पुकार रहे थे भाई उसके
कर रहे करुण पुकार पितामह भी उसके
दो पग चलने पर ही डोला था उनका तन
देख जनों का हाल सिहर गया मेरा मन
लेके चले जब चार जन उस मृत को
पुकार उठी माँ "मत ले जाओ लाल मेरे को"
सोया है गहरी नींद में अभी जाग उठेगा
उठकर सबसे पहले मेरे गले लगेगा
पुकारती रह गई यही बस माता उसकी
चला गया वो बस बन गया मिटटी

"अक्स"

Saturday, November 1, 2008

उलझनें

" जीवन की ये उलझनें है कैसी
न जिसे मैं सुलझा पाता हूँ
कोशिश में इसे सुलझाने की
मैं ख़ुद ही उलझ जाता हूँ
जीवन की ये उलझनें है कैसी
जिसे मैं सुलझा पाता हूँ"

"फंसकर रह गया हूँ मैं इनमें
न कभी इनसे निकल पाता हूँ
चाहता हूँ मैं बचना इनसे
सामने इनके मैं असहाय हो जाता हूँ
जीवन की इन उलझनों की खातिर
मैं ख़ुद को मिटाने पर आमादा हूँ"

"बनकर रह गया हूँ मैं कैदी इनका
न इनसे कभी मैं बच पाता हूँ
जीवन के हर मोड़ पर साहिल
इन उलझनों को खड़ा पाता हूँ
जीवन की ये उलझनें है कैसी
जिसे मैं सुलझा पाता हूँ"


"अक्स"

प्यार की मंजिल

"कहता है ये दिल बार-बार
बस एक बार हो उसका दीदार
वही है अब बस मंजिल मेरी
वही है मेरे जीवन का उपहार"

" है वो एक चाँद का टुकडा
नहीं मगर जिसमें कोई दाग
चाहता हूँ मैं पाना उसको
मगर नहीं दुनिया को स्वीकार"

"चाहता हूँ देना खुशियाँ उसको
सहकर ख़ुद मैं कष्ट हजार
जीवन है वो बन गई मेरा
वही है मेरे दिल का करार"

"उसका प्यार है मंजिल मेरी
चाहता हूँ उसे पाना बार-बार
कहता है अब हार पल यही दिल
बस एक बार हो उसका दीदार
बस एक बार हो उसका दीदार"

"अक्स"

Thursday, October 30, 2008

कोमल पंखुडियां

"फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां,
लगती हैं संकुचाई सी, सर्माई सी,
ज्यों छिपा लिया हो बच्चो को माँ ने आँचल में,
फिर भी है थोडी लजाई,थोडी घबराई सी,
कितनी सुंदर लगती हैं ये कोमल पंखुडियां,
जैसे हो कोई नवेली दुल्हन सकुंचाई सी,
छूने में इनको लगता है ये डर मुझको,
हो न जाए कोई मुरझाई सी, कुम्लहाई सी,
फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां,
लगती हैं संकुचाई सी, सर्माई सी"

"अक्स"

विभावरी

"बीती विभावरी जाग री
फूलों पर भवरें मंडराएं
पेड़ों पर बोल रही कागरी"

"डालों पर पंछी हैं बोले
नन्हे मुन्नों ने भी हैं पर खोले
महक रहा सारा बाग़ री
बीती विभावरी जाग री "

"खग मृग सब दौड़ रहे
पीछे सबको वो छोड़ रहे
तू खड़ी क्यूँ चुप चाप री"

"यहाँ वहां पुष्प खिले हैं
खुशबू से सब महक रहें हैं
कल-कल करती बहे सरिता
आन्नद से मैं हो रही बावरी
बीती विभावरी जाग री"

"अक्स"

नया सवेरा

"बीत गई गोधूली बेला,
लगे प्रात: ये नया नवेला,
आन मिला है नया सवेरा,
सुंदर कितना प्यारा प्यारा,
बीत गई वो भोर सुहानी,
लगती है अब एक कहानी "

"नया साल है आया देखो,
संग लाया है खुशियाँ देखो,
बने मुबारक साल तुम्हे ये,
मिले खुशियाँ तुम्हे अपार,
न हो दुःख की छाया तुम पर,
बरसे सबका प्यार ही प्यार"

"अक्स"

कुछ पल!!

"जीवन के कुछ पल चिन्ह
दिल में संजो रहा हूँ
समेत कर उनको मैं
एक सूत्र में पिरो रहा हूँ

"कुछ पल, कुछ यादें
कुछ क्षण, कुछ बातें
संजोई हैं जो मैंने
उनको सजा रहा हूँ"

"पाया है जो भी मैंने
इस जीवन में आकर
उस पर इतरा रहा हूँ"

"जो कुछ नहीं था मेरा
खोने का उसको गम क्या
पाने को फिर भी उसको
मैं मन बना रहा हूँ"


"ये जिंदगी मेरी हमेशा
देती रही मुझको धोखे
फिर भी मैं जिंदगी को
खुशी से जी रहा हूँ "

"जीवन के कुछ पल चिन्ह
दिल में संजो रहा हूँ !"

"अक्स"

Friday, October 3, 2008

बूँद

"बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं जल थल में
आकर नील गगन से ये
समां रही एक जल में
शांत स्वर से गिरी धारा पर
मिट गई एक ही पल में
बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं इस थल में"

"छोड़ तात का रैन बसेरा
निकली एक अनजानी धुन में
जाने क्या है अभिलाषा इनकी
निकल पड़ी एक ही पग में
करने चली शांत धरा को
मिटकर ख़ुद ही इस जग में
बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं जल थल में"


"अक्स"

राज

"वो पहली किरण पे उसका मुस्कुराना
हलकी सी छुअन से सिमट कर छुप जाना
वो खुशबू के झोंके से मुझको बुलाना
बुलाकर मगर फिर उसका छुप जाना "

"शर्मो हया है उसकी या कुछ और
मुझे देखकर यूँ पल्लू गिराना
इशारो से ही बातें बनाकर
यूँ उसका मुझे बेकरार बनाना"

"तकल्लुफ भरी है ये जिंदगी उसकी
क्यूँ है एक छुअन से यूँ सिकुड़ जाना
फिर अगली किरण का स्पर्श पाकर
किसी ओर पर फिर से खिलखिलाना "


"अक्स"

वो दिन

"मैं क्यूँ याद रखूँ वो दिन
जो हमने कभी साथ बिताये
कुछ बीते आनंद की लुकाछिपी में
तो कुछ करूणा से भी मिलकर आए"

"वो सब के साथ हँसना खिलखिलाना
किसी को साथ सता कर आनंद पाना
रूठ गया जो कभी कोई हमसे
प्यार से उसको फिर से मानना"

"
वो हर पल जो साथ बिता
वो ज्ञान सागर जो हमने समेटा
संजों रखे हैं मैंने वो दिल में
पर न हुआ उनका कभी बाहर आना "

"याद हर पल मैं करता हूँ उनको
उन दिनों का हूँ अब भी दीवाना
खुदा गर पूछे मुझसे रजा कोई
सपना मेरा होगा उन्हें वापस आना"

"अक्स"

तलाश

"जीने की कोशिश करता हूँ
मगर जिंदगी नहीं मिलती
पीने की कोशिश करता हूँ
मगर मय भी नहीं मिलती"

"ढूँढने को निकल पड़ता हूँ जिंदगी
शायद कहीं मिल जाए
कोसों दूर चलकर भी
मुझे बेखुदी नहीं मिलती"

"ढूँढा मौत के साए में भी उसको
शायद वहां मिल जाए मुझे
मिल गई तबस्सुम वहां साहिल
मगर रवानगी नहीं मिलती "

"जीने की कोशिश करता हूँ
मगर जिंदगी नहीं मिलती "


"अक्स"

जीवन गाथा

"जीवन की पराकाष्टा पर पहुँच कर
मुझको ये ख्याल आया
चलो अब विश्लेषण कर लें
जीवन में क्या खोया क्या पाया"

"
देखा झाँक कर जीवन में
नहीं कुछ भी ऐसा नज़र आया
जो लगे मुझे अपना सा
कह सकूं मैंने ये पाया"

"एक जीवन था बस मेरा अपना
वो भी मैंने यूँ ही गंवाया
उसमे एक खुशी ढूँढने की खातिर मैं
अतीत के पन्ने पलटता नज़र आया"

"अंत में सार यही निकला
न कुछ खोया, न कुछ पाया
दिल पूछता बस यही साहिल
मैं इस जीवन में क्यों आया"


"अक्स"

Tuesday, September 30, 2008

नूर-ए-रुखसार

"उस चेहरे को क्या कहूँ में
जिसमें जहाँ का नूर समाया है
एक झलक पाकर जिसकी दिल ने
जन्नत का सुकून पाया है"

"कहूँ उसे अल्हड़पन जवानी का
या गुलाब कहूँ आबेहयात की रवानी का
कहूँ चंचलता का पैमाना उसे
या सागर नीले पानी का"

"सोचता हूँ वो चेहरा याद करके
जो बनकर धुंध जहाँ पर छाया है
फिर भी मैं उलझा हूँ साहिल
कोई ना उसे जान पाया है"

"दिल में है मेरे कशमकश यही
वो मेरा अपना या पराया है
उस चेहरे का नूर मगर
मेरे जीवन में आ समाया है"

"अक्स"

Monday, September 29, 2008

अकेलापन

"तन्हा अकेला निकल पड़ा हूँ मैं
वक्त नहीं मिला उसे साथ लाने का
सोचा उससे भी गले मिल लें
गम नाम है जिस परवाने का"


"मेरा साया भी मुझसे रूठा है
वक़्त नहीं मिलता उसे मनाने का
ज़माने की नहीं परवाह मुझको
जीवन नाम है इसी खोने पाने का"


"गले मिल खुशी से मैं खूब रोया
नहीं मिलता वक़्त उसे पाने का
बिछड उससे गम तो होगा मगर
गम भी इशारा है खुशी आने का"

"मैं सबसे मिला यूँ ही मगर
वक़्त न मिला ख़ुद को जान पाने का
जिसकी तलाश में निकला था तन्हा
वो साथ न मिला किसी दीवाने का"

"अक्स"

मैं

"आज मैं खुद को भूल गया
कौन हूँ, मैं क्या हूँ ?
कभी हूँ पत्थर दीवाने आम का
कभी साख से टूटा पत्ता हूँ"

"कोई कहता मयकश मैं हूँ
कोई मुझे साकी कहता है
किसी के लिए खिलौना हूँ मैं
जैसे चाहे मुझसे खेलता है"

"बेगानो की याद बाकी है
अपनो को भूल गया हूँ
खुद को खोजने की लत में
हर मंज़र से गुजर गया हूँ"

"आज मैं खुद को भूल गया हूँ
कौन हूँ, मैं क्या हूँ?"

"अक्स"

एक प्रश्न

"उसकी एक झलक को मैने
अपनी यादो को भी खोद डाला
पर ना मिला एक निशान भी
उसका जो मैने था बहुत संभाला"

"वो माहताब सा चेहरा
जिसमे कशिश थी प्यारी सी
था आफताब का नूर वो
जाने कहाँ छुप गया"

"खोजता हूँ उसे पल-पल
ख्वाबो ओर ख्यालो में
दिखता चाँद में साया वो
जाने क्यों मुझसे रूठ गया"

"बन पागल दर-दर भटका मैं
उसकी जन्नत ना पा सका
शबनम शोला लगती है मुझको
साहिल क्या मुझे प्यार हो गया"

"अक्स"

Sunday, September 28, 2008

तस्वीर

"ख्वाबो ख्यालो में एक तस्वीर सजी है
क्यूँ मगर अधूरी सी लगती है
है कशमकश रंग कौन सा दूँ उसको
बने वो जो ना अभी तक बनी है"

"कल्पना के शिखर पर बैठा मैं
इसी उधेड़बुन में लगा हूँ
क्यों इस तस्वीर को सजाने में
हर जद्दोजहद से अड़ा हूँ मैं"

"प्यार का रंग गहरा बहुत है
भरते हुए डरता हूँ मैं
एक अजनबी तस्वीर में क्यों
प्यार का रंग भरता हूँ मैं"


"फिर भी प्यार का रंग दूँगा मैं उसे
कुदरत रत एक नज़ारे में जान होगी
ना बन सके शायद मेरी तबस्सुम वो
मगर किसी की वो जाँनिसार होगी"

"अक्स"

बसंत

"गरज रहे हैं बादल गर-गर
रिमझिम पानी बरस रहा है
हर कोई हर्षित हो देखो
इधर उधर को भाग रहा है"

"पेड़ो पर पड़ रहे हैं झूले
बसंत राग भी गूँज रहा है
सुनकर खग मृग का कलरव
मन हर्षित हो झूम रहा है"

"देख बसंत की रिमझिम बेला
कलियों का भी मन हर्षाया
पंख फैला कर किया स्वागत
फिर सावन का गीत सुनाया"

"अक्स"

कोई मेरा अपना

"इस तन्हा अकेले जहाँ में
ढूंढता हूँ एक साथी ऐसा कोई
जो साथ दे हर कदम पर मेरा
कह सकूँ मन में हो जो बात आई"

"कर सकूं गीले सीकवे जिससे मैं
बने जो मेरे जीवन की इक इकाई
हो जो मेरा निगहबान हर कदम पर
लगे काल सागर में मिली हो पतवार कोई"

"नहीं मिलता मगर मुझे ऐसा कोई
यूँ ही ज़िंदगी बर्बाद कर रहा हूँ
है आस दिल में मिलेगा मुझको वो
मैं जिसकी तलाश में भटक रहा हूँ"

"अक्स"

Friday, September 26, 2008

धूमिल सत्य

"ये जीवन वास्तव में क्या है
एक सफेद धुएँ का गुबार
या गुबार में भरा नीर
दोनो सूरतो में जीवन
हाथ से फिसलता है"

"अगर ये धुएँ का गुबार है
तो वायु के घने थपेड़े
इसका रंग-रूप ,चाल-ढाल
मिटाने में पूर्ण सक्षम है"

"अगर ये गुबार में नीर है
तब वायु का एक हल्का झोंका
इसे पाठ विचलित कर पाने में
धूल धूसित कर पाने में सक्षम है"

"ये प्रश्न मेरे अंतर्मन को
लगातार कचोट रहा है
कैसे जानूँ जीवन की सत्यता
जब जीवन के नाम पर समाज में
एक अंधविश्वास पल रहा है"

"अक्स"

अंतत:

"घनघोर घटाएँ उमड़ पड़ी हैं
फैला प्रलय चारो ओर
झुकने लगा है गगन जमीं पर
नदियों में भी लगी है होड़"

"भूमंडल पर फैला पानी
लाँघ चुका है सब बाधाएँ
प्रकृति का तांडव देख कर
मानवता कर रही हाय हाय"

"उजाड़ चुके हैं नगर सारे
हो प्राचीन या वर्तमान
खो गयी हैं किलकारी नन्हो की
बड़े हुए बेसुध बेजान"

"तहस नहस कर गया सभी कुछ
किया जो प्रकृति से खिलवाड़
मानो कह रही हो हमसे
बंद करो ये अत्याचार"

"जब टूटेगा बाँध सब्र का
होगा ऐसा नर संहार
अब तो संभल जा हे मानव
प्रकृति कर रही पुकार"

"अक्स"

Thursday, September 25, 2008

कोई अपना

"मैं आज खुश हूँ
नहीं जानता पर क्यूँ हूँ
शायद कोई अपना मिला है
जो बनकर एक फूल खिला है"

"मेरी खुशी का नहीं पारवार कोई
किसी को नहीं इससे सरोकार कोई
अपनी खुशी में मैं अकेला हूँ
तड़प गमो की भी मैं झेला हूँ"

"अंजानी खुशी मुझे जिया गयी है
बनकर धड़कन दिल में समा गयी है
यादों में रहती है हर पल
हर लम्हे को संजीदा बना गयी है"

"दिलो दिमाग़ पर छा गयी है
ये धुन्ध ना अब तक छँट पाई है
दिल में शंका है मगर अभी तक
ये क्या खुशी मैने पाई है"

"अक्स"

Wednesday, September 24, 2008

सार

"दुनिया में फैला अंधेरा
मेरे जीवन में सिमट रहा है
हर पल हर पहलू मेरा
धुँधला सा पड़ रहा है"

"उजाला ढूँढने की खातिर
जुगनू से लड़ रहा मैं
रोशनी के ख्वाब देखता
अंधेरो का आदी हो रहा हूँ"

"जाने किस कोने में छिपा उजाला
आँसू बहा रहा है
अंधेरा सीना तान खड़ा
ठहाके लगा रहा है"

"जज़्ब हो रहा अंधेरा मुझमें
हर पल मुझको निगल रहा है
उजाला दूर खड़ा एक कोने में
शर्म से गल रहा है,शर्म से गल रहा है"

"अक्स"

साथी "A person whom u don't know but like very much"

"जीवन के इन आड़े टेढ़े मोडो पर
कुछ अजनबी टकरा जाते हैं
साथ बिताए वो चन्द लम्हे
एक याद बनकर रह जाते हैं"

"अच्छे बुरे की सोच से उपर
उमंग से हम सब मिलते हैं
बस चलते हैं साथ चार पल
फिर इन मोडो पर बिछड़ जाते हैं"

याद टीस बनकर दिल में रहती है
संग लहू के दिल-ओ-दिमाग़ में बहती है
जीने नहीं देती ये उम्र भर हमको
हर क्षण में उनको ढूँढती रहती है"

"ऐसा साथ कोई ना पाए
जो खुशी से ज़्यादा गम दे जाए
दो पल साथ चल कर साथी
उम्र भर के लिए बिछड़ जाए"

"अक्स"

Tuesday, September 23, 2008

वर्षा की बूँदें

"रिमझिम वर्षा की छोटी बूँदें
उछल उछल कर आती हैं
इधर फुदकतीं, उधर फुदकतीं
जीवन का गीत सुनाती हैं"

"ये मोती सी सुंदर बूँदें
जग में खुशियाँ फैलाती हैं
अम्रत है इनका हर एक कण
सबको जीवन दे जाती हैं"

"छोड़ आकाश का रैन बसेरा
धरा की प्यास बुझाती हैं
ये बलिदान कर अपना जीवन
जग में हरियाली फैलाती हैं"

"रिमझिम वर्षा की छोटी बूँदें
उछल उछल कर आती हैं
दे तन मन को ठंडी आभा
मन प्रसन्न कर जाती हैं"

"रिमझिम वर्षा की छोटी बूँदें
उछल उछल कर आती हैं"

"अक्स"

चन्द लम्हे

"चन्द लम्हो का साथ होता है
ज़िंदगी यूँ कभी बसर नहीं होती
साथ चलने को बेकरार हम भी हैं
पर उनसे कदम मिलाने की हिम्मत नहीं होती"

"घड़ियो का साथ छूट जाता है
बरसों निकल जाते हैं मिलने में
तन्हाइयों में मन भटकता रहता है
ज़िंदगी की वीरानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं"

"चाह कर भी साथ नहीं चल पाता हूँ
बस यही टीस दिल में उठती है
हमे भी सुकून नसीब हो साहिल
क्यों किसी दिल से ये दुआ नहीं उठती"

"चन्द लम्हो का साथ होता है
ज़िंदगी यूँ ही बसर नहीं होती"

"अक्स"

मुलाकात

"एक छोटी सी मुलाकात याद आई है
बनकर अश्क मेरी आँखो में उतर आई है
उन कमसिन निगाहों को ढ़ूंढता हूँ मैं
जिनकी रोशनी मेरे दिल पर छाई है"

"बैठे थे एक दूजे से अंजान हम दोनो
लब ठिठक रहे थे, आवाज़ ना निकली थी
सरसराई हवा यूँ बही एक अंदाज़ से
लगा वो मन ही मन मुस्काई है"

"चाह कर भी ना कुछ बोल पाए हम
आँखो में उभरी सब सच्चाई है
दुनिया की रुसवाई से डर लगता है
अंजाम हर सूरत में अपनी जुदाई है"

"उम्र भर तो खामोश ना रह सकेंगे लब
कभी तो जुबाँ पर आनी सच्चाई है
इस छोटी सी मुलाकात में हमने साहिल
खुशियाँ दो जहाँ की पाई हैं"

"अक्स"

बयार

"ठंडी ठंडी बयार का एक झोंका
होले से मुझको छूकर निकला है
मानो उड़ गया है आँचल किसी का यूँ ही
पकड़ने को वो उसको घर से निकला है"

"बहुत सर्द एहसास था उस छुअन का
मेरा रोम रोम अभी तक सहमा है
भुलाए नहीं भूलता वो एहसास मुझको
ख्वाबो में जिसके मन उलझा है"

"ढूंढता हूँ उस बयार को अभी भी
जाने वो कहाँ खो गया है
फिर भी उस छुअन का एहसास
बनकर शब्द मेरे लबो पर उभरा है"


"अक्स"

Monday, September 22, 2008

मंज़र

"कई मुददतो से खोजता था मैं जिसको
वो मंज़र मेरे रूबरू हुआ है अब
पाने में जिसको गुजर गयीं कई सदियां
मैं उसके करीब जाकर आया हूँ अब"

"वो मंज़र जो कभी ख्वाब था मेरा
एक हक़ीकत की शक्ल में आया है अब
ये वाकई हक़ीकत है या आईना कोई
फैंसले को हमने चाँद बुलाया है अब"

"इस फैंसले से जुड़ीं हैं उम्मीदें मेरी
इसमे मेरा भी ज़िक्र आया है अब
अंजाम-ए-फ़ैसला जो भी हो साहिल
सोच बस ये ख्वाब पूरा होगा कब?"

"अक्स"

जल

"कल-कल करता बहता पानी
रंग रूप ना कोई निशानी
भेद भाव ना किसी से करता
सबके सपनो में रंग भरता"

"शीतल ओर स्वच्छ बड़ा यह
तन मन को शीतल कर देता
कभी ठहरता, कभी है बहता
हम सब को सुख देता रहता"

"प्रक्रति का वरदान यह है
अभिमान तनिक ना करता
जीवन का स्तंभ यही है
कल्पना को भी मूर्त करता"

"कल-कल करता बहता पानी
प्यार की सबको सीख है देता"

"अक्स"

क्यूँ ?

"जाने क्यूँ तेरी याद सताती है मुझे
जितना भूलना चाहूँ तू उतना याद आती है मुझे
ये तेरी निगाहों की कशिश है या मुस्कान तेरी
अब हर जगह तू ही नज़र आती है मुझे"

"मेरी निगाहों से नहीं हटता अक्स तेरा
तेरी उलझी जुल्फें ओर उलझाती हैं मुझे
झील सी गहरी निगाहों का क्या कहना
जो डूबने को बार बार बुलाती हैं मुझे"

"मेरी तमन्ना है बस एक तुझे पाने की
पर दुनिया की दीवारें दूर हटाती हैं मुझे
पार पा लूँगा इन दीवारें से भी एक दिन
बस एक तेरी सदा का इंतज़ार है मुझे

"अक्स"

बेबसी

"ज़िंदगी से जद्दोजहद किए पड़ा हूँ मैं
जाने क्यूँ अपनी ज़िद पर अड़ा हूँ मैं
ना जाने क्या खोने का डर है मुझको
जो सब समेटने में लग पड़ा हूँ मैं"

"सब रेत सा फिसलता लगता है मुझे
बस खाली हाथ लिए खड़ा हूँ मैं
दुनिया हंसकर कहती है पागल मुझको
या पागलो के बीच खड़ा हूँ मैं"

"निकल पड़ा हूँ जाने किस डगर पर
या अपनी मंज़िल से भटक गया हूँ मैं
जाने किस ओर ले जाएगी ये डगर मुझको
बस यही सोच लिए चल पड़ा हूँ मैं"

"ज़िंदगी से जद्दोजहद किए पड़ा हूँ मैं
जाने क्यूँ अपनी ज़िद पर अड़ा हूँ मैं?"

"अक्स"

तमन्ना

"तमन्ना हो मुस्कुराने की
अंधेरो में दिए जलाने की
ये ना सोचो की क्या गम है
तमन्ना रखो खुशियाँ पाने की"

"बाँटो प्यार इस जहाँ में तुम
सुनाओ गूँज दिल के तराने की
जहाँ ने तुमको ठुकराया तो क्या
तमन्ना हो प्यार में आशियाँ बनाने की"

"मुस्कुराहट से सभी को जीत लो तुम
हसरत रखो जहाँ को हंसाने की
गम तुमको छू भी ना सकेंगे
गर तमन्ना हो उनसे पार पाने की"

"तमन्ना बस एक नाम है
सभी में आस जगाने की
हो आशा या निराशा जीवन में
तमन्ना फिर भी रखो मुस्कुराने की"

"अक्स"

काग़ज़ के फूल

"चन्द आडी टेढी लाईनो से
तस्वीर बना नहीं करती
ख्वाबो में रंग भरने से
ज़िंदगी चला नहीं करती"

"देख काग़ज़ के फूलों को
ना किस्मत पर तू इतरा
बिना इत्र के उनसे भी
कभी खुशबू आ नहीं सकती"

"माँगने वालों को दुनिया कुछ नहीं देती
छीनने से भी मगर खुशियाँ मिला नहीं करती
गम के अंधेरे कर देते हैं ज़िंदगी वीरान
खुशी की किरण फिर भी इनसे मिटा नहीं करती"

"फूलों की खुशबू से महका रहे चमन
हर दिल से ये दुआ निकला नहीं करती
तू सोचता क्या ओर क्या हो रहा साहिल
ये ज़िंदगी यूँ बसर हुआ नहीं करती"

"अक्स"

Sunday, September 21, 2008

दिल की तड़प

"दिल की तड़प तन्हाई में सुनना
सच्चा मोती गहरे पानी में चुनना
टूट जाते हैं एक पल में शीशे की
दिल मेरे अब कोई ख्वाब ना बुनना"

"कुछ यूँ मौसम-ए-हाल बना रक्खा है मैने
दिल में तेरी जुदाई का गम पाल रक्खा है मैने
ना जाने क्यूँ तू नाखुदा बन गया साहिल
फिर भी तुझी को खुदा मान रक्खा है मैने "

Thursday, September 18, 2008

कुछ कलाम मेरी कलम से !

"तूफान मेरे दिल का अब ठहरता नहीं
पीकर भी तो अब मैं बहकता नहीं
दर्द तो मेरे दिल का भी बिकाऊ है मगर
बाज़ार में तेरे दिल सा खरीददार कोई नहीं"

"रह रह कर जाने क्यूँ याद आता है कोई
दिल में दबे दर्द को बढ़ाता है कोई
उठता है दर्द का स्याह गुबार सीने में
जब भी जाने अंजाने उसका ज़िक्र कर जाता है कोई."

"अपने रुखसार से परदा ना हटने देना
इन जहाँ वालो की नीयत बड़ी मैली है
मैं तो हूँ तन्हा होकर भी भीड़ का हिस्सा
पर तू क्यूँ भीड़ में होकर भी अकेली है"

"तूफान के चलते मेरा मुकाम ना आया
उनके क़िस्सो में कभी मेरा नाम ना आया
अब तक समझते रहे जिस जहाँ को हम अपना
वहीं कभी मेरे हिस्से में दो पल आराम ना आया"

"अक्स"

उषा की बेला

"यूँ छिट्के हैं तारे नभ में,
टूट गयी ज्यों मोती माला,
चमक रहीं यूँ किरणें जल में,
मुस्काये कोई कंचन बाला"

"रंग बिरंगे पुष्प खिलें हैं,
नृत्य करती उन पर परी बाला
मंद सुगंध यूँ बहे पवन में,
लगता हो देवो की मधुशाला"

"खग मृग पक्षी करें हैं कलरव
उपवन बना दिया रंगशाला,
दूर सोच में चल पड़ा भास्कर,
दमक रही हर पर्वतमाला"

"कटी रात अंधियारी दुख की'
फैल रहा हर ओर उजाला,
प्रात: काल का करता वर्णन,
हर्षित मन से मैं मतवाला"

"अक्स"

जन्नत और दौजख

"है जन्नत क्या और दौजख क्या
बता दे कोई मुझे ये बस
क्या इनका राज है अपना
सुना दे कोई मुझे ये बस"

"है जन्नत उन दिलों की चाह
जो फिदा होते हैं औरों पर
मिटा कर खुद के जो अरमान
हुए कुर्बान ज़माने पर"

"है दौजख उनका ये जीवन
जो शैतान के बंदे हैं
लिए दिल में जो कालापन
वज़ूद-ए-खुदा से लड़ते हैं"

"रहेगा चलता जीवन में
ये किस्सा जन्नत दौजख का
यहीं जन्नत, यहीं दौजख
खुदा ने गढ रखे हैं"

"अक्स"

तडप

"तडप कर दिल यूँ कहता है
तू ही जीने की है मंज़िल
ज्यों कहती साख पत्ते से
मेरे जीवन का तू साहिल"

"तू मुझमें अविरत बहती है
ज्यों बहती निर्मल जल धारा
तुझे भुलूँ भी कैसे मैं
है मेरी साँसो में तू शामिल"

"मैं धरती हूँ , तू अंबर है
मिलन अपना है ये मुश्किल
तू कंचन , कमनीय बाला
शिला सा हूँ मैं संगदिल"

"तू नदिया की एक धारा
समय का मैं एक पल क्षिन
मिलन अपना ना हो पाया
रहा हर पल तन्हा साहिल"

"अक्स"

दर्द

“आज फिर वो याद आया है
बनकर धुन्ध मेरे ज़ेहन पर छाया है
देख कर जिसको मैं जीता था हर पल
आज दिल में बनकर दर्द उभर आया है”

“वो मेरे जीवन का अधूरा ख़्वाब
जो कभी ना पूरा हो पाया है
जिसको पूरा करने की जद्दोजहद में
ये जीवन भी मैने गँवाया है”
“देखता हूँ ख़्वाब उसको पाने के
जो मेरा हो कर भी पराया है
खोने पाने के इस चक्रव्युह मैं
आज फिर एक अभिमन्यु आया है”

“करण कौन अर्जुन यहाँ है
ये दिल ना अभी तक जान पाया है
फिर भी उसको याद कर साहिल
दिल में एक दर्द उभर आया है”
"अक्स"

एहसास

“दिल में एक दबी दबी बात है शायद
होठों पर आती है रुक जाती है
कहने को जिसको ज़ुबान मचल जाती है
बात फिर भी ना ये कह पाती है”

“सोचता हूँ क्यों ये होता है
क्यों तेरी याद दिल में महक जाती है
इस महक को मैं फैला तो दूँ मगर
लगता है तेरे अक्स से डर जाती है”

"ता उमर जलाएगी शायद ये आग मुझको
जो बुझाने से और भी भड़क जाती है
दिल में जो बात दबी है मगर
होठों पर आती है रुक जाती है
होठों पर आती है रुक जाती है"

"अक्स"