"कुहासा भरी सड़क के एक किनारे से निकलती वो,
धुएँ में लिपटी कोई तस्वीर नज़र आती है,
ठंड की कंपकंपाहट से लरजते वो होठ उसके,
मानो कोई तितली पंख फड़फडाए चली आती है"
"हवा के संग बहते शॉल को यूँ लपेटती वो,
ज्यूँ चंदन व्रक्ष से सर्पिणी लिपटती जाती है,
पाले की सर्द बूँदो की ठिठुरन से सहरती हुई,
काँपती पलकों से कुहासे को चीरती जाती है"
"बहती हवा से आगे बढ़ने की जद्दोजहद करती वो,
लगता आज मन में कुछ करने की ठानी है,
सर्द कुहासा गहरा है या उसकी झील सी आँखें,
वो अजंता की मूरत मेरे दिल में उतरती जाती है"
"अक्स"
Monday, December 26, 2011
Friday, October 28, 2011
आज का आदमी
"चारो तरफ हो रहा ये कैसा अत्याचार है,
आदमी ही आदमी को खाने को तैयार है,
पैसे कि वो भूख उसकी बढ़ रही दिन ब दिन,
पैसे के लिए कुछ भी वो करने को तैयार है"
"भाई का गला काट, बाप को भौंका छुरा,
माँ के दूध को उसी के खून में दिया मिला,
हंसते खेलते घर को जला के खाक कर दिया,
जान बूझ कर ये खुद का ही कर रहा संहार है"
"जानवर को पाल कर खुद आदमख़ोर बन रहा,
जानवर खुद आज आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है,
माँग सूनी हो रही कहीं लाल माँ के लुट रहे,
कुचला हुआ समाज डर से कर रहा चीत्कार है"
"चारो तरफ हो रहा ये कैसा अत्याचार है,
आदमी ही आदमी को खाने को तैयार है"
"अक्स"
आदमी ही आदमी को खाने को तैयार है,
पैसे कि वो भूख उसकी बढ़ रही दिन ब दिन,
पैसे के लिए कुछ भी वो करने को तैयार है"
"भाई का गला काट, बाप को भौंका छुरा,
माँ के दूध को उसी के खून में दिया मिला,
हंसते खेलते घर को जला के खाक कर दिया,
जान बूझ कर ये खुद का ही कर रहा संहार है"
"जानवर को पाल कर खुद आदमख़ोर बन रहा,
जानवर खुद आज आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है,
माँग सूनी हो रही कहीं लाल माँ के लुट रहे,
कुचला हुआ समाज डर से कर रहा चीत्कार है"
"चारो तरफ हो रहा ये कैसा अत्याचार है,
आदमी ही आदमी को खाने को तैयार है"
"अक्स"
Monday, October 17, 2011
राजनीति
"किसी ने मुझसे पूछा राजनीति क्या है,
मैने कहा बंधुवर, राजनीति एक अजब बुखार है,
जिसको चढ़ जाए उसका तो समझो बेड़ा पार है,
हो जाए मगर जो ओवर डोज तो फिर बँटा धार है"
"राजनीति वो मैली सी बहती हुई गंगा है,
जिसमे हर एक कभी ना कभी हुआ नंगा है,
अपने नंगे पन को छिपाने की नाकाम कोशिश में,
दूसरे की अधखुली धोती को फाड़ने का पलटवार है'
"राजनीति एक डुगडुगी वाला खिलौना है,
चाहे किसी के हाथ हो, आम जनता को बस रोना है,
आटा,दाळ,चीनी सब चढ़ते जा रहे इसकी भेंट,
लगता है ये सुरसा का एक कलयुगी अवतार है"
"राजनीति चोरों और नेताओं के लिए संजीवनी है,
इसके सहारे इनको बस अपनी जमात ही जीमनी है,
जिसके बल पर हर एक की जेब हो रही भारी,
राजनीति इनका वो ही अचूक हथियार है"
"मगर मेरे दोस्त मुझे बस इस बात का दुख है,
क्यूँ मेरा देश इस रोग का शिकार है,
क्यूँ मेरा देश इस रोग का एक शिकार है"
"अक्स"
मैने कहा बंधुवर, राजनीति एक अजब बुखार है,
जिसको चढ़ जाए उसका तो समझो बेड़ा पार है,
हो जाए मगर जो ओवर डोज तो फिर बँटा धार है"
"राजनीति वो मैली सी बहती हुई गंगा है,
जिसमे हर एक कभी ना कभी हुआ नंगा है,
अपने नंगे पन को छिपाने की नाकाम कोशिश में,
दूसरे की अधखुली धोती को फाड़ने का पलटवार है'
"राजनीति एक डुगडुगी वाला खिलौना है,
चाहे किसी के हाथ हो, आम जनता को बस रोना है,
आटा,दाळ,चीनी सब चढ़ते जा रहे इसकी भेंट,
लगता है ये सुरसा का एक कलयुगी अवतार है"
"राजनीति चोरों और नेताओं के लिए संजीवनी है,
इसके सहारे इनको बस अपनी जमात ही जीमनी है,
जिसके बल पर हर एक की जेब हो रही भारी,
राजनीति इनका वो ही अचूक हथियार है"
"मगर मेरे दोस्त मुझे बस इस बात का दुख है,
क्यूँ मेरा देश इस रोग का शिकार है,
क्यूँ मेरा देश इस रोग का एक शिकार है"
"अक्स"
Thursday, October 13, 2011
माँ
"हिम सी शीतलता लिए,
तेज सूरज सा धरे,
उसके आँचल के समक्ष,
ब्रहमांड भी छोटा पड़े"
"है दुर्गा का एक रूप वो,
और गंगा से भी कोमल है,
उसके चरणो के तले,
हर दीप ज्ञान का जले"
"कर सकती है उत्पत्ति वो,
तो नाश की भी शक्ति धरे,
वात्सल्य की है एक ख़ान वो,
दूध में जिसके अमृत बहे"
"सब देवों में है उच्च वो,
चाहे जहाँ ओर जो रूप धरे,
सत सत नमन है तुझको माँ
कितना ओर मैं तेरा गुणगान करूँ"
"बस एक तेरी वंदना के लिए ,
आज तक कोई शब्द नही बने"
"अक्स"
तेज सूरज सा धरे,
उसके आँचल के समक्ष,
ब्रहमांड भी छोटा पड़े"
"है दुर्गा का एक रूप वो,
और गंगा से भी कोमल है,
उसके चरणो के तले,
हर दीप ज्ञान का जले"
"कर सकती है उत्पत्ति वो,
तो नाश की भी शक्ति धरे,
वात्सल्य की है एक ख़ान वो,
दूध में जिसके अमृत बहे"
"सब देवों में है उच्च वो,
चाहे जहाँ ओर जो रूप धरे,
सत सत नमन है तुझको माँ
कितना ओर मैं तेरा गुणगान करूँ"
"बस एक तेरी वंदना के लिए ,
आज तक कोई शब्द नही बने"
"अक्स"
Friday, September 30, 2011
खामोशी
"ज़रा मिलकर तुम उनकी ये गफलत दूर कर देना,
मेरी खामोशियों को जो,मेरी कमज़ोरी समझते हैं,
तमन्ना हम भी रखते हैं वफ़ा में जान देने की,
ना जाने क्यूँ कर वो हम को,बेगाना समझते हैं,
"दरारें दिल में पड़ती हैं,जिस्म छलनी सा होता है,
हमारे सामने जब इश्क़ की कोई मय्यत निकलती है,
सभी के दिल में बसने की एक हम ही में कुव्वत है,
इस शहर में ना जाने क्यूँ सभी पत्थर दिल निकलते हैं"
"मचलते दरियाँ से हम हैं,यूँ ही लौटा नही करते,
मगर उस चौखट से हम भी ज़रा बचकर निकलते हैं,
अकड़ कर कोई भी हमसे,कभी हमे झुका नही सकता,
मगर बस प्यार के बदले हम राहों में बिछ पड़ते हैं"
"अक्स"
मेरी खामोशियों को जो,मेरी कमज़ोरी समझते हैं,
तमन्ना हम भी रखते हैं वफ़ा में जान देने की,
ना जाने क्यूँ कर वो हम को,बेगाना समझते हैं,
"दरारें दिल में पड़ती हैं,जिस्म छलनी सा होता है,
हमारे सामने जब इश्क़ की कोई मय्यत निकलती है,
सभी के दिल में बसने की एक हम ही में कुव्वत है,
इस शहर में ना जाने क्यूँ सभी पत्थर दिल निकलते हैं"
"मचलते दरियाँ से हम हैं,यूँ ही लौटा नही करते,
मगर उस चौखट से हम भी ज़रा बचकर निकलते हैं,
अकड़ कर कोई भी हमसे,कभी हमे झुका नही सकता,
मगर बस प्यार के बदले हम राहों में बिछ पड़ते हैं"
"अक्स"
Friday, September 2, 2011
"आम लड़की"
"आज फिर वो मुझको दिखलाई पड़ी,
किसी हड़बड़ी में घर से निकलते हुए,
अनमने ढंग से अपना पर्स संभालती वो,
चेहरे पर उभरती एक शिकन को छुपाते हुए"
"टेढ़ी मेढी गलियों से गुजरती हुई वो,
फटे हुए दुपट्टे से मुँह को ढांपे हुए,
पर्स टटोलती बार बार इधर उधर झाँक कर,
एक झूठी मुस्कान के पीछे मायूसी छुपाते हुए"
"पसीने से तर-बतर होता दुपट्टा उसका,
चिलचिलाते सूरज को आँखें दिखाते हुए,
सड़क को घिसती जाती अपनी टूटी चप्पलों से,
आम लड़की की यही दास्तान है,काम पर जाते हुए"
"अक्स"
किसी हड़बड़ी में घर से निकलते हुए,
अनमने ढंग से अपना पर्स संभालती वो,
चेहरे पर उभरती एक शिकन को छुपाते हुए"
"टेढ़ी मेढी गलियों से गुजरती हुई वो,
फटे हुए दुपट्टे से मुँह को ढांपे हुए,
पर्स टटोलती बार बार इधर उधर झाँक कर,
एक झूठी मुस्कान के पीछे मायूसी छुपाते हुए"
"पसीने से तर-बतर होता दुपट्टा उसका,
चिलचिलाते सूरज को आँखें दिखाते हुए,
सड़क को घिसती जाती अपनी टूटी चप्पलों से,
आम लड़की की यही दास्तान है,काम पर जाते हुए"
"अक्स"
Tuesday, August 30, 2011
समलैंगिकता
"आज कल प्रेम की नयी परिभाषा आई है,
लड़के को लड़के से होने लगी अशनाई है,
प्रकृति के नियम रख दिए गये हैं ताक पर,
इंसान ने ये कैसी तरक्की पाई है"
"जाने कैसा फितूर उठ पड़ा है इनके दिमाग़ में,
लड़का होकर क्यूँ लड़की सी वेशभूषा बनाई है,
खुद को कहते फिरते हैं समलिंगी (गे) ये सब,
ऐसा लगता है शिखण्डी को राधा बनने की सुध आई है"
"खुल्लम खुल्ला कर रहे व्यभिचार अब ये,
जाने कहाँ से उभरी इनमे ये बेहयाई है,
प्रेम ओर शरीर की भूख के बीच का फ़र्क ही मिटा दिया,
ये समलैंगिकता जाने कहाँ से समाज को डसने आई है"
"अक्स"
लड़के को लड़के से होने लगी अशनाई है,
प्रकृति के नियम रख दिए गये हैं ताक पर,
इंसान ने ये कैसी तरक्की पाई है"
"जाने कैसा फितूर उठ पड़ा है इनके दिमाग़ में,
लड़का होकर क्यूँ लड़की सी वेशभूषा बनाई है,
खुद को कहते फिरते हैं समलिंगी (गे) ये सब,
ऐसा लगता है शिखण्डी को राधा बनने की सुध आई है"
"खुल्लम खुल्ला कर रहे व्यभिचार अब ये,
जाने कहाँ से उभरी इनमे ये बेहयाई है,
प्रेम ओर शरीर की भूख के बीच का फ़र्क ही मिटा दिया,
ये समलैंगिकता जाने कहाँ से समाज को डसने आई है"
"अक्स"
Friday, August 5, 2011
इंसान
"कतरा कतरा जमा होकर ही समंदर बनता है,
गहराती जाती है हवा, तो बवंडर बनता है,
अपनी असफलताओ से इतना ना निराश हो,
गिर जाने के बाद ही तो इंसान संभलता है"
"लाख मुश्किलें पल पल उसके रास्ते में आती हैं,
वो फिर भी ना अपने पथ से एक कदम डिगता है,
समय का पहिया घूमता रहता है अविरत हरपल,
पर वो भी इंसान के दृढ़ निश्चय से डरता है"
"अगर चाहे तो क्या नही कर सकता इंसान,
जिसकी हिम्मत के आगे हिमालय भी झुकता है,
ठान के मन में, तान के सीना अक्स,
वही जीता है जो, बेखौफ़ बढ़ता है”
गहराती जाती है हवा, तो बवंडर बनता है,
अपनी असफलताओ से इतना ना निराश हो,
गिर जाने के बाद ही तो इंसान संभलता है"
"लाख मुश्किलें पल पल उसके रास्ते में आती हैं,
वो फिर भी ना अपने पथ से एक कदम डिगता है,
समय का पहिया घूमता रहता है अविरत हरपल,
पर वो भी इंसान के दृढ़ निश्चय से डरता है"
"अगर चाहे तो क्या नही कर सकता इंसान,
जिसकी हिम्मत के आगे हिमालय भी झुकता है,
ठान के मन में, तान के सीना अक्स,
वही जीता है जो, बेखौफ़ बढ़ता है”
Wednesday, July 20, 2011
बुढ़ापे का दर्द
"निगाहों में उनकी कुछ सपने झूमते हैं,
ख्यालों में ही बस वो अपनों को चूमते हैं,
क्यूँ हमने उन्हें बस एक बोझ समझ रखा है,
जो सारी उम्र लबो पर हमारे मुस्कान भेजते हैं"
"ये उम्र का तकाजा सबको ही घेरता है,
फिर क्यों हम बस उन्ही के सपनो को तोड़ते हैं,
जो छोड़ते हैं हमारी खातिर अपनी सारी खुशियाँ,
क्यूँ अंत में उन्ही को हम सब छोड़ते हैं"
"जिस मुंह को उन्होंने सिखलाया बात करना,
क्यूँ उसी से हम उनको अपशब्द बोलते हैं,
गैरों की खातिर खोलते दरवाज़े सारे दिल के,
क्यूँ उनके लिए हम एक खिड़की भी न खोलते हैं"
"हमारे लिए सपनो का उम्र भर बनाते घर वो,
क्यूँ उसी घर से हम उनको निकालते हैं "
जिन्होंने हमको पाला बैठा कर पलकों पर अक्स,
उन्ही के बदले हम क्यूँ बस कुत्ते पालते हैं"
"अक्स"
ख्यालों में ही बस वो अपनों को चूमते हैं,
क्यूँ हमने उन्हें बस एक बोझ समझ रखा है,
जो सारी उम्र लबो पर हमारे मुस्कान भेजते हैं"
"ये उम्र का तकाजा सबको ही घेरता है,
फिर क्यों हम बस उन्ही के सपनो को तोड़ते हैं,
जो छोड़ते हैं हमारी खातिर अपनी सारी खुशियाँ,
क्यूँ अंत में उन्ही को हम सब छोड़ते हैं"
"जिस मुंह को उन्होंने सिखलाया बात करना,
क्यूँ उसी से हम उनको अपशब्द बोलते हैं,
गैरों की खातिर खोलते दरवाज़े सारे दिल के,
क्यूँ उनके लिए हम एक खिड़की भी न खोलते हैं"
"हमारे लिए सपनो का उम्र भर बनाते घर वो,
क्यूँ उसी घर से हम उनको निकालते हैं "
जिन्होंने हमको पाला बैठा कर पलकों पर अक्स,
उन्ही के बदले हम क्यूँ बस कुत्ते पालते हैं"
"अक्स"
Monday, July 11, 2011
पीड़ा
"आज फिर मानवता शर्मसार हुई,
फिर एक बहन-बेटी दागदार हुई,
हवस के दरिंदो ने लूटा उसकी अस्मत को,
आह उसकी ना किसी दिल के पार हुई"
"नोचते रहे वो कुत्ते उसके जिस्म को,
आत्मा भी उनकी खरोंचो से जार-जार हुई,
ना मिला एक लफ़्ज भी उसको सहानुभूति का,
पर कितने ही शब्द बाणो की बौछार हुई"
"दरिंदो के हाथो बस एक बार नंगा जिस्म हुआ,
अपनो के हाथो वो बार बार शर्मसार हुई,
देख घिनौना चेहरा इस दुनिया का अक्स,
दिल में नफ़रत ओर आँखो से आँसू की बौछार हुई"
"अक्स"
फिर एक बहन-बेटी दागदार हुई,
हवस के दरिंदो ने लूटा उसकी अस्मत को,
आह उसकी ना किसी दिल के पार हुई"
"नोचते रहे वो कुत्ते उसके जिस्म को,
आत्मा भी उनकी खरोंचो से जार-जार हुई,
ना मिला एक लफ़्ज भी उसको सहानुभूति का,
पर कितने ही शब्द बाणो की बौछार हुई"
"दरिंदो के हाथो बस एक बार नंगा जिस्म हुआ,
अपनो के हाथो वो बार बार शर्मसार हुई,
देख घिनौना चेहरा इस दुनिया का अक्स,
दिल में नफ़रत ओर आँखो से आँसू की बौछार हुई"
"अक्स"
Wednesday, July 6, 2011
हौंसला
"ज़िंदगी के रंग भी कितने अज़ीब होते हैं,
अपने दूर रहकर भी करीब होते हैं,
उड़ा ले जाती है आँधी बड़े बड़े दरखतो को,
ठहर वो ही पाते हैं जो ज़मीन के करीब होते हैं"
"यूँ तो वार करते रहने से पत्थर भी टूट जाते हैं,
सहन करने का हुनर तो बस इंसान को ही आता है,
अरे सीखना है कुछ तो उन दरखतो से सीखो,
जो अपने कलेजे के टुकड़े भी तुम पर वार जाते हैं"
"खुशी तो कभी गम के रंग देख कर रोते क्यूँ हो,
ज़िंदगी में दिन ऑर रात भी इनके निशान होते हैं.,
मुक़र्रर वक़्त पे मुक़द्दर तेरा चमकेगा अक्स,
हौसलें रखने वालो के ही सपनो के मुकाम होते हैं"
"अक्स"
अपने दूर रहकर भी करीब होते हैं,
उड़ा ले जाती है आँधी बड़े बड़े दरखतो को,
ठहर वो ही पाते हैं जो ज़मीन के करीब होते हैं"
"यूँ तो वार करते रहने से पत्थर भी टूट जाते हैं,
सहन करने का हुनर तो बस इंसान को ही आता है,
अरे सीखना है कुछ तो उन दरखतो से सीखो,
जो अपने कलेजे के टुकड़े भी तुम पर वार जाते हैं"
"खुशी तो कभी गम के रंग देख कर रोते क्यूँ हो,
ज़िंदगी में दिन ऑर रात भी इनके निशान होते हैं.,
मुक़र्रर वक़्त पे मुक़द्दर तेरा चमकेगा अक्स,
हौसलें रखने वालो के ही सपनो के मुकाम होते हैं"
"अक्स"
Wednesday, June 1, 2011
ललक
"काश स्वछंद लहरों सी, हो पाती ये जिंदगी,
फिर हर डगर में ही, बह जाती ये जिंदगी,
कभी न किसी का कोई विराम रह जाता,
हर ठहराव को तोड़,आगे बढ़ जाती ये जिंदगी"
"करती अठखेलियाँ पल पल,बहती हवा के झोकों से,
एक चंचल नवयोवना सी, इठलाती ये जिंदगी,
बलखाती यूँ मानो,लचकी हो कमर कोई,
यूँ ही किसी इशारे से, मन बहकाती ये जिंदगी"
ज़माने की कोई परवाह, न चिंता दुनियादारी की,
यूँ ही बस होंसलों को परवाज़, दे जाती ये जिंदगी,
हो दुनिया में ग़म कितना, तपिश चाहे ज़माने में,
तन और मन को यूँ ही शीतल कर जाती ये जिंदगी"
"अक्स"
फिर हर डगर में ही, बह जाती ये जिंदगी,
कभी न किसी का कोई विराम रह जाता,
हर ठहराव को तोड़,आगे बढ़ जाती ये जिंदगी"
"करती अठखेलियाँ पल पल,बहती हवा के झोकों से,
एक चंचल नवयोवना सी, इठलाती ये जिंदगी,
बलखाती यूँ मानो,लचकी हो कमर कोई,
यूँ ही किसी इशारे से, मन बहकाती ये जिंदगी"
ज़माने की कोई परवाह, न चिंता दुनियादारी की,
यूँ ही बस होंसलों को परवाज़, दे जाती ये जिंदगी,
हो दुनिया में ग़म कितना, तपिश चाहे ज़माने में,
तन और मन को यूँ ही शीतल कर जाती ये जिंदगी"
"अक्स"
Monday, May 9, 2011
ज़िंदगी का सच
“ज़िंदगी गम के क्षणो में मुस्कुरा देती है,
दर्द कितना भी गहरा हो, भुला देती है,
हर एक लम्हा अनमोल है ज़िंदगी का,
किसी को मिटा देती,किसी को बना देती है”
“ख्वाब है या हक़ीक़त है ज़िंदगी,
गरचे दोनो का ही मज़ा देती है,
लुत्फ़ हर उम्र में इसका उठाया जाए,
ये बूढ़ो को भी जवान बना देती है”
“जाँचने निकल पड़ा हूँ ज़िंदगी के हर्फ,
पर ये गुत्थी तो उलझती ही जाती है,
इस करवट कभी उस करवट बिठलाती अक्स,
रोज़ नये नये तमाशे ये दुनिया को दिखलाती है”
“अक्स”
दर्द कितना भी गहरा हो, भुला देती है,
हर एक लम्हा अनमोल है ज़िंदगी का,
किसी को मिटा देती,किसी को बना देती है”
“ख्वाब है या हक़ीक़त है ज़िंदगी,
गरचे दोनो का ही मज़ा देती है,
लुत्फ़ हर उम्र में इसका उठाया जाए,
ये बूढ़ो को भी जवान बना देती है”
“जाँचने निकल पड़ा हूँ ज़िंदगी के हर्फ,
पर ये गुत्थी तो उलझती ही जाती है,
इस करवट कभी उस करवट बिठलाती अक्स,
रोज़ नये नये तमाशे ये दुनिया को दिखलाती है”
“अक्स”
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Wednesday, April 20, 2011
तरन्नुम-ए-इश्क
"वादी-ए-इश्क में गूंजते थे मेरे नगमे जहाँ,
आज फुरकत-ए-मौशिकी का आलम फैला है,
वो एक दिल जो कभी धड़कता था मेरे लिए,
क्यूँ आज उसमे एक आंसुओं का रेला है"
"तैरती थी जिन आँखों में कभी मोहब्बत मेरी,
क्यूँ बस आज उन पलकों पर पानी फैला है,
मेरा नाम लेकर लरजते थे कभी जो दो लब,
आज उन पर क्यूँ एक गुमनामी का मेला है"
"कुसूर तेरा न मेरा, न किसी का है अक्स,
आज आबो हवा में मोहब्बत का रंग ही मैला है,
टूट कर बिखरने न दूंगा कभी प्यार के धागे,
मेरा प्यार आखिरी तू ही और तू ही पहला है "
"अक्स"
आज फुरकत-ए-मौशिकी का आलम फैला है,
वो एक दिल जो कभी धड़कता था मेरे लिए,
क्यूँ आज उसमे एक आंसुओं का रेला है"
"तैरती थी जिन आँखों में कभी मोहब्बत मेरी,
क्यूँ बस आज उन पलकों पर पानी फैला है,
मेरा नाम लेकर लरजते थे कभी जो दो लब,
आज उन पर क्यूँ एक गुमनामी का मेला है"
"कुसूर तेरा न मेरा, न किसी का है अक्स,
आज आबो हवा में मोहब्बत का रंग ही मैला है,
टूट कर बिखरने न दूंगा कभी प्यार के धागे,
मेरा प्यार आखिरी तू ही और तू ही पहला है "
"अक्स"
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तरन्नुम-ए-इश्क
Friday, March 4, 2011
पाबंदी
"दिल मचलता है उनकी याद में ज्यों उफनता दरिया,
याद आती है हमे,रह रह कर तड़पाती है,
आँगन की मिट्टी ने डाल रखी हैं बेड़ियाँ पाँव में,
तोड़ने में जिनको घर की चौखट भी उखड़ जाती है"
"बेबस इधर मेरा दिल भी है, उधर मेरा हबीब भी,
दिन कटता दुहाई में, रात कशमकश में गुज़र जाती है,
वक़्त का दरिया बह रहा हम दो किनारो के बीच,
बहाव में जिसके कोई किश्ती ना ठहर पाती है"
"उदास आँखो से झरते आँसू झर झर,
बरसात भी जिनके आगे फीकी पड़ जाती है,
दहलीज़ लाँघने की कुव्वत उसमे है ना मुझमे,
हमारी मुहब्बत बस यूँ ही दम तोड़ती रह जाती है"
"अक्स"
याद आती है हमे,रह रह कर तड़पाती है,
आँगन की मिट्टी ने डाल रखी हैं बेड़ियाँ पाँव में,
तोड़ने में जिनको घर की चौखट भी उखड़ जाती है"
"बेबस इधर मेरा दिल भी है, उधर मेरा हबीब भी,
दिन कटता दुहाई में, रात कशमकश में गुज़र जाती है,
वक़्त का दरिया बह रहा हम दो किनारो के बीच,
बहाव में जिसके कोई किश्ती ना ठहर पाती है"
"उदास आँखो से झरते आँसू झर झर,
बरसात भी जिनके आगे फीकी पड़ जाती है,
दहलीज़ लाँघने की कुव्वत उसमे है ना मुझमे,
हमारी मुहब्बत बस यूँ ही दम तोड़ती रह जाती है"
"अक्स"
Friday, February 25, 2011
मुकाम
"इजहार-ए-मोहब्बत जो अब हमने किया बशर,
बात निकली भी न थी कि लब थरथरा उठे,
हया की वो लाली उभर आई उन आँखों में,
जिसे देख ले जो एक बार मुर्दा भी जी उठे"
"हम हो गए कुर्बान उस हसीन चेहरे पर,
दिल अपना बस एक पल में हम गवां बैठे,
वो मुस्काई परेशान देख कर मुझको,
हमारे दिल में ख्वाबो के आफ़ताब जल उठे"
"तमन्ना है अब उसको हम-आगोश मैं कर लूँ,
बुझा लूं प्यास नजरो की न फिर ओर जल उठे,
तकाजा जिंदगी का है और खतरा मौत का अक्स,
इधर उसकी उठी डोली, उधर मेरा जनाज़ा उठे"
"अक्स"
बात निकली भी न थी कि लब थरथरा उठे,
हया की वो लाली उभर आई उन आँखों में,
जिसे देख ले जो एक बार मुर्दा भी जी उठे"
"हम हो गए कुर्बान उस हसीन चेहरे पर,
दिल अपना बस एक पल में हम गवां बैठे,
वो मुस्काई परेशान देख कर मुझको,
हमारे दिल में ख्वाबो के आफ़ताब जल उठे"
"तमन्ना है अब उसको हम-आगोश मैं कर लूँ,
बुझा लूं प्यास नजरो की न फिर ओर जल उठे,
तकाजा जिंदगी का है और खतरा मौत का अक्स,
इधर उसकी उठी डोली, उधर मेरा जनाज़ा उठे"
"अक्स"
Tuesday, February 22, 2011
एक ख्वाहिश
"जिंदगी तुझे गले लगाने की जुस्तजू है,
बीते लम्हे फिर से पाने की आरज़ू है,
हम-आगोश था मैं अभी तक अपने हबीब से,
अब सबके लिए कुछ कर जाने की जुस्तजू है"
"शाम-ए-खुर्शीद बह रही हवा के झोंके मानिंद,
मेरी रेत को हथेली में थामने की आरज़ू है,
सुबह की उफ़क बन गयी शफ़क मेरी,
हर दीद-ए-तहर को महर बनाने की जुस्तजू है"
"उखुव्वत हर बशर कर ले इस मकां में,
मौशिकी-ए-उल्फत का पयाम हो हर लब पर,
खाबिदा आलम न मुज़तर हो सुन मेरी ग़ज़ल,
हर दर पे एक फ़िरदौस बसाने की जुस्तजू है"
"अक्स"
बीते लम्हे फिर से पाने की आरज़ू है,
हम-आगोश था मैं अभी तक अपने हबीब से,
अब सबके लिए कुछ कर जाने की जुस्तजू है"
"शाम-ए-खुर्शीद बह रही हवा के झोंके मानिंद,
मेरी रेत को हथेली में थामने की आरज़ू है,
सुबह की उफ़क बन गयी शफ़क मेरी,
हर दीद-ए-तहर को महर बनाने की जुस्तजू है"
"उखुव्वत हर बशर कर ले इस मकां में,
मौशिकी-ए-उल्फत का पयाम हो हर लब पर,
खाबिदा आलम न मुज़तर हो सुन मेरी ग़ज़ल,
हर दर पे एक फ़िरदौस बसाने की जुस्तजू है"
"अक्स"
Thursday, February 17, 2011
राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र - एक नज़र
हिंद की ये जान है, हिंद की ये शान है,
सूचना के क्षेत्र में ये हिंद का अभिमान है,
काम कर बड़े बड़े, सर हिंद का उठा रहा,
बसती हिंद के हर दिल में इसकी ही एक जान है,
हिंद की ये जान है, हिंद की ये शान है,
सूचना के क्षेत्र में ये हिंद का अभिमान है,
शाम ए गुलिस्ताँ को हिंद की, सूरज नया दिखला दिया,
सूचना का प्रसार कर, घर घर में ही पहुंचा दिया,
हटा के कागजो का ढेर कंप्यूटर वहां लगा दिया,
आई टी के क्षेत्र में बना ये एक वरदान है,
हिंद की ये जान है, हिंद की ये शान है,
सूचना के क्षेत्र में ये हिंद का अभिमान है,
तोड़कर सीमाएं सारी सूत्र एक बना दिया,
नेटवर्क का जाल सारे हिंद में फैला दिया,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक बनाया बाँध एक,
भाषा और क्षेत्र का भी भेद तक मिटा दिया,
सारे हिंद में हो रहा बस इसका ही गुणगान है,
हिंद की ये जान है, हिंद की ये शान है,
सूचना के क्षेत्र में ये हिंद का अभिमान है,
"अक्स"
सूचना के क्षेत्र में ये हिंद का अभिमान है,
काम कर बड़े बड़े, सर हिंद का उठा रहा,
बसती हिंद के हर दिल में इसकी ही एक जान है,
हिंद की ये जान है, हिंद की ये शान है,
सूचना के क्षेत्र में ये हिंद का अभिमान है,
शाम ए गुलिस्ताँ को हिंद की, सूरज नया दिखला दिया,
सूचना का प्रसार कर, घर घर में ही पहुंचा दिया,
हटा के कागजो का ढेर कंप्यूटर वहां लगा दिया,
आई टी के क्षेत्र में बना ये एक वरदान है,
हिंद की ये जान है, हिंद की ये शान है,
सूचना के क्षेत्र में ये हिंद का अभिमान है,
तोड़कर सीमाएं सारी सूत्र एक बना दिया,
नेटवर्क का जाल सारे हिंद में फैला दिया,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक बनाया बाँध एक,
भाषा और क्षेत्र का भी भेद तक मिटा दिया,
सारे हिंद में हो रहा बस इसका ही गुणगान है,
हिंद की ये जान है, हिंद की ये शान है,
सूचना के क्षेत्र में ये हिंद का अभिमान है,
"अक्स"
Thursday, January 20, 2011
आधुनिकता
"आज के इस आधुनिक युग में,
समय बड़ी तेज़ी से बदल रहा है,
जहाँ मनाते थे पहले खुशियाँ संग संग,
आज इंसान दूसरे के गम से भी कट रहा है"
"बदल रही है हर रिश्ते की परिभाषा,
रगो में बहता सुर्ख लहू पानी हो रहा है,
भाई भाई को काट रहा पैसे की खातिर,
बेटा मां की कोख की कीमत अदा कर रहा है"
"भावनाओ की कीमत हो गयी है शून्य अब,
आँसू भी आज बाज़ार में बिक रहा है,
यही चलन है इस आधुनिक दुनिया का अक्स,
तिस पर भी मानव खुद को विकसित कह रहा है"
"अक्स"
समय बड़ी तेज़ी से बदल रहा है,
जहाँ मनाते थे पहले खुशियाँ संग संग,
आज इंसान दूसरे के गम से भी कट रहा है"
"बदल रही है हर रिश्ते की परिभाषा,
रगो में बहता सुर्ख लहू पानी हो रहा है,
भाई भाई को काट रहा पैसे की खातिर,
बेटा मां की कोख की कीमत अदा कर रहा है"
"भावनाओ की कीमत हो गयी है शून्य अब,
आँसू भी आज बाज़ार में बिक रहा है,
यही चलन है इस आधुनिक दुनिया का अक्स,
तिस पर भी मानव खुद को विकसित कह रहा है"
"अक्स"
Sunday, January 16, 2011
टूटा दिल
"दिल मेरा तोड़ कर गुलिस्ताँ भी कुचल डाला,
फूल की औकात क्या कली को भी मसल डाला,
बेरहम पत्थर दिल से निकलती नहीं कभी दुआ,
हमारी सिसकियों ने पत्थर को भी मोम कर डाला"
"रो दिया आकाश भी मेरे लहू के रंग से,
सुबह ओ शाम का उसने फ़र्क ही मिटा डाला,
तारे भी टूट टूट कर गिरने लगे ज़मीन पर,
मेरी सदा ने एक दिन जब उनको भी हिला डाला"
"उनके दिए की रोशनाई ज़िंदगी काली कर गयी,
मेरी खुशी ओर गम का उसने मतलब ही बदल डाला,
जीते रहे, मरते रहे हम उसकी याद में अक्स,
शायद उसने मेरी याद का कतरा कतरा बहा डाला"
"अक्स"
फूल की औकात क्या कली को भी मसल डाला,
बेरहम पत्थर दिल से निकलती नहीं कभी दुआ,
हमारी सिसकियों ने पत्थर को भी मोम कर डाला"
"रो दिया आकाश भी मेरे लहू के रंग से,
सुबह ओ शाम का उसने फ़र्क ही मिटा डाला,
तारे भी टूट टूट कर गिरने लगे ज़मीन पर,
मेरी सदा ने एक दिन जब उनको भी हिला डाला"
"उनके दिए की रोशनाई ज़िंदगी काली कर गयी,
मेरी खुशी ओर गम का उसने मतलब ही बदल डाला,
जीते रहे, मरते रहे हम उसकी याद में अक्स,
शायद उसने मेरी याद का कतरा कतरा बहा डाला"
"अक्स"
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टूटा दिल
Friday, January 14, 2011
मेघा
"गरज गरज कर घिर आए मेघा,
कड़क कड़क बिजली चमकाते,
कोई काला तो कोई उजियारा,
गजब गजब के रंग जमाते"
"बढ़े चले हैं एक डगर पर,
सब धरती की प्यास बुझाने,
ठुमक ठुमक कर अकड़ अकड़ कर,
मानो झूम रहे दीवाने"
"जग में फैल रहा अंधियारा,
चले बूँदों की एक लड़ी बनाते,
अकड़ रहे कुछ यूँ ठाट बाट से,
घूम रहे मानो मोती बरसाते"
"अक्स"
कड़क कड़क बिजली चमकाते,
कोई काला तो कोई उजियारा,
गजब गजब के रंग जमाते"
"बढ़े चले हैं एक डगर पर,
सब धरती की प्यास बुझाने,
ठुमक ठुमक कर अकड़ अकड़ कर,
मानो झूम रहे दीवाने"
"जग में फैल रहा अंधियारा,
चले बूँदों की एक लड़ी बनाते,
अकड़ रहे कुछ यूँ ठाट बाट से,
घूम रहे मानो मोती बरसाते"
"अक्स"
Tuesday, January 11, 2011
आज़ाद
"जंग ए आज़ादी में लड़ने वाले
वो दीवाने कुछ यूँ कर गुज़र गए,
न की खुद की परवाह न अपनों की,
वो तो बस एक आज़ादी पर मर गए"
"जाने क्या जूनून जज्ब था उनके दिल में,
जो हर मार को भी वो हंसकर सह गए,
कभी भूखे रहे तो कभी मार कोड़ो की भी सही,
चूम फाँसी के फंदे को भी विजयमाला कह गए"
"देकर भेटें अपने सिरों की वो दीवाने,
गर्व से सिर हमारा ऊँचा कर गए,
पर आज देख हालत अपने हिंद की अक्स,
कटे पर न झुके जो, वो सिर शर्म से झुक गए"
"अक्स"
वो दीवाने कुछ यूँ कर गुज़र गए,
न की खुद की परवाह न अपनों की,
वो तो बस एक आज़ादी पर मर गए"
"जाने क्या जूनून जज्ब था उनके दिल में,
जो हर मार को भी वो हंसकर सह गए,
कभी भूखे रहे तो कभी मार कोड़ो की भी सही,
चूम फाँसी के फंदे को भी विजयमाला कह गए"
"देकर भेटें अपने सिरों की वो दीवाने,
गर्व से सिर हमारा ऊँचा कर गए,
पर आज देख हालत अपने हिंद की अक्स,
कटे पर न झुके जो, वो सिर शर्म से झुक गए"
"अक्स"
Monday, January 3, 2011
सर्द रातें
"ये धुंधली सर्द रातों की तन्हाई,
हमे कुछ इस तरह तड़पाती है,
दफ़न कर चुके जो तेरी यादों के पन्ने,
हमे उनसे फिर रूबरू कर जाती है"
"हर वो मंज़र,वो पल जो कभी साथ गुजरा,
वो टीस दिल के जख़्मो को हरा कर जाती है,
दुनिया के दिए जख्म तो मैं सह गया हंसकर,
पर तेरी बेवफ़ाई मुझे हर पल रूलाती है"
"सर्द ये रातें ज़्यादा हैं या तेरा दिया गम,
इसी कशमकश में रातें बीत जाती हैं,
गुज़रता हर पल तेरी बेवफ़ाई याद दिलाता है अक्स,
फिर से आँखों में तेरी सूरत तैर जाती है"
"अक्स"
हमे कुछ इस तरह तड़पाती है,
दफ़न कर चुके जो तेरी यादों के पन्ने,
हमे उनसे फिर रूबरू कर जाती है"
"हर वो मंज़र,वो पल जो कभी साथ गुजरा,
वो टीस दिल के जख़्मो को हरा कर जाती है,
दुनिया के दिए जख्म तो मैं सह गया हंसकर,
पर तेरी बेवफ़ाई मुझे हर पल रूलाती है"
"सर्द ये रातें ज़्यादा हैं या तेरा दिया गम,
इसी कशमकश में रातें बीत जाती हैं,
गुज़रता हर पल तेरी बेवफ़ाई याद दिलाता है अक्स,
फिर से आँखों में तेरी सूरत तैर जाती है"
"अक्स"
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