Tuesday, July 5, 2022

मयखाना

'दोस्त बिखर जाते हैं,यार बिखर जाते हैं,

 अच्छे अच्छे यहां दिलदार बिखर जाते हैं,

 ये कोई सराय नही,मयखाना है साहेब,

 मय में जो डूबे,घर बार बिखर जाते है'

 

'यूँ तो मयखाने की गलियाँ, तंग नही होती,

 जाने क्यूँ फिर इनमे, जुलूस बिखर जाते हैं,

 टकराते हैं जब जाम, एक हुक सी उठती है,

 कहीं मिलते हैं दिल,कहीं अरमान बिखर जाते हैं'


'उम्दा सबसे किरदार, साकी का होता है,

 होठों पे हँसी, चाहे दिल में गम होता है,

 पेश करती है जाम, हर खास ओ आम को,

 बहकते हैं पीकर कुछ, पीकर बिफर जाते हैं'


'मयखाना भी कभी लगता,जनता की एक कचहरी,

 कट्टर दुश्मन भी बनकर,जहाँ से यार निकल आते हैं,

 लानत है अक्स, एक बार जो मयखाने ना गया,

 जाम ए मय से मन के, सारे गुबार निकल जाते हैं'


'अक्स'

कशमकश

 'हिन्दू हूँ मैं या एक मुसलमान हूँ मैं,

अजब कशमकश है, क्या इंसान हूँ मैं,

किये मंदिर के फेरे और नमाज़ ए मस्जिद भी,

हूँ गीता का श्लोक या आयत ए कुरान हूँ मैं'


'फूलों में खेला कभी लिपटा हूँ चादरों में,

'बन कर तदबी का धागा, बंधा कलाइयों में,

नवरात्र में भजन गाये, रोजो में अजान दी है,

हूँ कन्या पूजन जीमण या शाम की इफ्तारी,

दोनों ही सूरतों में, अहद ए शबाब हूँ मैं '


'जला हूँ बन कर रावण, कुर्बान हुआ ईदी में,

हर्ष ओ उल्लास देखा मैनें, दोनों ही तरफा है,

गूंजा जो जयकारो में, झूमा नमाज में भी,

आंठवा सरगम का शायद अब शब्द हूँ मैं'


'राम का हूँ वानर या रहीम का मैं सूफी,

धोखे के वार से हुआ, लहू लुहान हूँ मैं,

राम और रहीम में क्या फ़र्क है ये बोलो,

जबकि फकत मिट्टी का एक इंसान हूँ मैं'


'अक्स'