Wednesday, October 12, 2022

इंसानी फ़ितरत

"पाकर मंज़िल, मुश्किल-ए-परवाज़ भूल जाता है,

इंसान बड़ा संगदिल है, हमराह भूल जाता है,

राहों की मुश्किलों में, जो खाई हैं उसने ठोकरें,

उनसे संभालने वाले वो, हाथ भूल जाता है" 


सोता है बेफिक्री से, हसीन ख्वाबों में खोकर,

अपनी निगहबानी में लगी, नज़रें भूल जाता है,

करता है रस्क अपनी, मिथ्या बुलंदियों पर,

उन्माद के कोलाहल में, संसार भूल जाता है"


"गुरूर में करता है, नीव कुन्द सभी संबंधो की,

उँची उड़ान के दंभ में, ज़मीन को भूल जाता है,

हवाई किले में बाँधे, हरदम झूठ के पुलिंदे, 

गैरों के झाँसे में, अपनो को भूल जाता है"


"इंसान अपनी फ़ितरत से कब बाज़ आता है,

इंसान अपनी फ़ितरत से कब बाज़ आता है"


'अक्स'

Tuesday, July 5, 2022

मयखाना

'दोस्त बिखर जाते हैं,यार बिखर जाते हैं,

 अच्छे अच्छे यहां दिलदार बिखर जाते हैं,

 ये कोई सराय नही,मयखाना है साहेब,

 मय में जो डूबे,घर बार बिखर जाते है'

 

'यूँ तो मयखाने की गलियाँ, तंग नही होती,

 जाने क्यूँ फिर इनमे, जुलूस बिखर जाते हैं,

 टकराते हैं जब जाम, एक हुक सी उठती है,

 कहीं मिलते हैं दिल,कहीं अरमान बिखर जाते हैं'


'उम्दा सबसे किरदार, साकी का होता है,

 होठों पे हँसी, चाहे दिल में गम होता है,

 पेश करती है जाम, हर खास ओ आम को,

 बहकते हैं पीकर कुछ, पीकर बिफर जाते हैं'


'मयखाना भी कभी लगता,जनता की एक कचहरी,

 कट्टर दुश्मन भी बनकर,जहाँ से यार निकल आते हैं,

 लानत है अक्स, एक बार जो मयखाने ना गया,

 जाम ए मय से मन के, सारे गुबार निकल जाते हैं'


'अक्स'

कशमकश

 'हिन्दू हूँ मैं या एक मुसलमान हूँ मैं,

अजब कशमकश है, क्या इंसान हूँ मैं,

किये मंदिर के फेरे और नमाज़ ए मस्जिद भी,

हूँ गीता का श्लोक या आयत ए कुरान हूँ मैं'


'फूलों में खेला कभी लिपटा हूँ चादरों में,

'बन कर तदबी का धागा, बंधा कलाइयों में,

नवरात्र में भजन गाये, रोजो में अजान दी है,

हूँ कन्या पूजन जीमण या शाम की इफ्तारी,

दोनों ही सूरतों में, अहद ए शबाब हूँ मैं '


'जला हूँ बन कर रावण, कुर्बान हुआ ईदी में,

हर्ष ओ उल्लास देखा मैनें, दोनों ही तरफा है,

गूंजा जो जयकारो में, झूमा नमाज में भी,

आंठवा सरगम का शायद अब शब्द हूँ मैं'


'राम का हूँ वानर या रहीम का मैं सूफी,

धोखे के वार से हुआ, लहू लुहान हूँ मैं,

राम और रहीम में क्या फ़र्क है ये बोलो,

जबकि फकत मिट्टी का एक इंसान हूँ मैं'


'अक्स'

Sunday, March 20, 2022

होली का हुड़दंग

आया होली का हुड़दंग,

भरे हैं सबके मन में रंग

हो बोलो सारा रा रा,


आयी है रंगों की बारात, 

साथ में खुशियां लिए अपार,

हो बोलो सारा रा रा,


घोट ली सबने जमकर भंग,

उड़ाएं तरह तरह के रंग,

हो बोलो सारा रा रा,


पुते हैं सारे रंग गुलाल,

क्या जाने चेहरे और क्या बाल,

हो बोलो सारा रा रा,


जुड़े हैं लोगो के हुज़ूम,

गा रहे फगवा झूम झूम

हो बोलो सारा रा रा,


झूमे मस्ती में सब नर नार,

उड़ायें रंग-अबीर अपार

हो बोलो सारा रा रा,


बच्चों की नटखट टोली,

कर रही सबसे ही ठिठोली,

हो बोलो सारा रा रा,


गुबारे चलें गोली की चाल,

कर रहे लोगो को बेहाल,

हो बोलो सारा रा रा,


बन रहे गुंझिया और मिठाई,

झूम रही कचौरी और कढ़ाई,

हो बोलो सारा रा रा,


एक ये रंगों का त्योहार,

मिटाता आपस का सब बैर

हो बोलो सारा रा रा


'अक्स'