Saturday, September 26, 2009

अनकहा दर्द

इस ज़िंदगी के भंवर में उलझा मेरा मन
जाने किस तिनके के सहारे ठहरा है
बेबस मेरा मन भी है ओर सेहरा भी
क्यूंकर दूर तलक हवाओं का पहरा है"

"उफनती लहरों के बीच उलझा मेरा मन
शनै शनै एक काली गर्त में समा रहा है
भंवर में बन रहा एक भयानक कालचक्र
मेरे मन को जाने किस ओर धकेल रहा है"

"डर और उलझन के बीच भटक रहा मेरा मन
किसी हमराह की मंज़िल ढूँढ रहा है
दर दर की ठोकरें खा रहा ये अक्स
बस एक अनकहा दर्द पाल रहा है"

"अक्स"

Monday, September 21, 2009

बीता पल

"बह रही थी ज़िंदगी यूँ एक लहर की छांव से
ज्यों टूटा पत्ता उड़ जाता है होले एक बयार से
बहती बहती ये सरिता गुम जाती जाने कहाँ
फिर भी रोशन मन का कोना आशा के एक भाव से"

"बीता वक़्त जाने कहाँ छुप गया मुँह मोड़ के
रोशनी को जाने मेरी कालिका क्यूँ लग गयी
रात दिन का फासला क्यूँ मिट गया मेरा भला
रेत के सेहरा में मेरी आरज़ू क्यूँ दब गयी"

"बैठ कर के एक किनारे देखा जो दूजी ओर को
डोर लहरों के भंवर में रोशनी वो खो गयी
आता जाता हर एक लम्हा ज़िंदगी का मेरी अक्स
जाने क्यूँ इस भंवर में फिर आज मीरा आ गयी"


"अक्स'