शूरवीर वो दानवीर वो,
सूतपुत्र कहलाता था,
उसके बाणो की ग़रज़न से,
आकाश भी थर्राता था"
"रण्भूमि में पराक्रम से,
छक्के सबके छुड़ा दिए,
अर्जुन जैसे महारथी को,
नाको चने चबवा दिए"
"कुन्तिपुत्र करण वो एक था,
वचन जो बस निभा पाया,
होती क्या है शील सौम्यता,
मरते दम तक दिखलाया"
"अक्स"
Tuesday, December 14, 2010
Friday, November 26, 2010
यादों की परछाई
"आज फिर सांसों में कोई याद महक आई है,
दिल में उभरे कई जख्म और आँखों में रुसवाई है,
एक दर्द बह चल पड़ा है संग लहू के मेरी रगो में,
जेहन पर छाई एक बीती यादों की परछाई है"
"एक बेवफा से मुहब्बत का सिला यूँ मिला हमको,
जिंदगी में गमो की एक कालिख बिखर आई है,
हमें दगा दिया किस्मत या उस बेवफा ने कौन जाने,
अंजाम हर सूरत में अब अपनी रुसवाई है"
"जाने किस बदनसीब की हमको लगी ये बददुआ,
वो खुश है इन्तहा जिसने मेरी खुशियों में आग लगाई है,
जलने लग पड़ा हूँ अब पल पल उसकी यादों में अक्स,
अब सहनी हमको उम्र भर ये जगहंसाई है"
"अक्स"
दिल में उभरे कई जख्म और आँखों में रुसवाई है,
एक दर्द बह चल पड़ा है संग लहू के मेरी रगो में,
जेहन पर छाई एक बीती यादों की परछाई है"
"एक बेवफा से मुहब्बत का सिला यूँ मिला हमको,
जिंदगी में गमो की एक कालिख बिखर आई है,
हमें दगा दिया किस्मत या उस बेवफा ने कौन जाने,
अंजाम हर सूरत में अब अपनी रुसवाई है"
"जाने किस बदनसीब की हमको लगी ये बददुआ,
वो खुश है इन्तहा जिसने मेरी खुशियों में आग लगाई है,
जलने लग पड़ा हूँ अब पल पल उसकी यादों में अक्स,
अब सहनी हमको उम्र भर ये जगहंसाई है"
"अक्स"
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यादों की परछाई
Sunday, November 7, 2010
ज़िंदगी के रूप
"जाने क्या क्या रंग दिखलाती है ज़िंदगी,
पल में गम,पल में खुशी दे जाती है ज़िंदगी,
गुजरती रहती है अविरत बहती सरिता की तरह,
ना एक पल भी ठहराव दिखलाती है ज़िंदगी"
"हर एक पल कटता है यूँ सदियों की तरह,
जब एक पल भी किसी को तड़पाती है ज़िंदगी,
दिन ओर रात आते हैं,गुज़र जाते हैं,
इसी समय धारा में बहती जाती है ज़िंदगी"
"अपनो के साथ जन्नत बन जाती है ज़िंदगी,
वरना तो दोजख से भी भयानक है ज़िंदगी,
लोग प्यार करके जाने क्यूँ साथ छोड़ देते हैं इसका,
प्यार का ही तो दूसरा नाम है ज़िंदगी"
'अक्स"
पल में गम,पल में खुशी दे जाती है ज़िंदगी,
गुजरती रहती है अविरत बहती सरिता की तरह,
ना एक पल भी ठहराव दिखलाती है ज़िंदगी"
"हर एक पल कटता है यूँ सदियों की तरह,
जब एक पल भी किसी को तड़पाती है ज़िंदगी,
दिन ओर रात आते हैं,गुज़र जाते हैं,
इसी समय धारा में बहती जाती है ज़िंदगी"
"अपनो के साथ जन्नत बन जाती है ज़िंदगी,
वरना तो दोजख से भी भयानक है ज़िंदगी,
लोग प्यार करके जाने क्यूँ साथ छोड़ देते हैं इसका,
प्यार का ही तो दूसरा नाम है ज़िंदगी"
'अक्स"
Wednesday, October 20, 2010
झूठा बंधन
"दर्द ए दिल अपना उनसे छुपाया न गया,
भूलना जो चाहा तो भुलाया न गया,
उसकी खातिर ठुकरा घर हम बन गए मजनू,
उस बेवफा से लैला का नाम तक अपनाया न गया"
"दावा करते थे मुहब्बत में जान देने का,
दौलत का वो झूठा बंधन तो ठुकराया न गया,
आह भरते रहे हम जख्म खाते रहे उसके लिए,
एक रेशा मरहम तक उस पर लगाया न गया"
"हम चीखते रहे उसके लिए सीना चीर फेंका,
हमारा नाम तक उससे लबो पे लाया न गया,
ये मेरी जिद थी की मैं बनाऊंगा उसको अपना 'अक्स'
जन्नत बसाने निकला था, एक गुलिस्ता तो बसाया न गया"
"अक्स"
भूलना जो चाहा तो भुलाया न गया,
उसकी खातिर ठुकरा घर हम बन गए मजनू,
उस बेवफा से लैला का नाम तक अपनाया न गया"
"दावा करते थे मुहब्बत में जान देने का,
दौलत का वो झूठा बंधन तो ठुकराया न गया,
आह भरते रहे हम जख्म खाते रहे उसके लिए,
एक रेशा मरहम तक उस पर लगाया न गया"
"हम चीखते रहे उसके लिए सीना चीर फेंका,
हमारा नाम तक उससे लबो पे लाया न गया,
ये मेरी जिद थी की मैं बनाऊंगा उसको अपना 'अक्स'
जन्नत बसाने निकला था, एक गुलिस्ता तो बसाया न गया"
"अक्स"
Monday, September 27, 2010
हिन्दी
"जो सबके मन को हर्षाती,
दिल को दिल से जो जुड़वाती,
हिन्दी ही है एक वो भाषा,
जो शहर प्रांत का भेद मिटाती"
"हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,
सबके मुख पर ये चढ़ जाती,
एक दूजे के लिए बढ़ा प्रेम ये,
सबको प्रेम का पाठ पढ़ाती"
"सबके दिल में बसती है ये,
राजभाषा हिन्दी सबका आदर पाती,
प्रांत को प्रांत ओर देश को दिल से,
जोड़ हिन्दी देश का मुकुट कहलाती"
"अक्स"
दिल को दिल से जो जुड़वाती,
हिन्दी ही है एक वो भाषा,
जो शहर प्रांत का भेद मिटाती"
"हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,
सबके मुख पर ये चढ़ जाती,
एक दूजे के लिए बढ़ा प्रेम ये,
सबको प्रेम का पाठ पढ़ाती"
"सबके दिल में बसती है ये,
राजभाषा हिन्दी सबका आदर पाती,
प्रांत को प्रांत ओर देश को दिल से,
जोड़ हिन्दी देश का मुकुट कहलाती"
"अक्स"
Tuesday, September 21, 2010
सवाल
"तेरी बेवफ़ाई के गम से भरा दिल,
ना जाने तेरे लिए बेकरार क्यूँ है,
मुझे तुझसे नफ़रत है या फिर मुहब्बत,
ज़िंदगी इन सवालो से परेशान क्यूँ है"
"वो तेरे ज़िंदगी भर साथ निभाने के वादे,
मेरी मंज़िल तेरी रहो से गुमनाम क्यूँ है,
कभी मेरी ज़िंदगी में नूर बरसाती तेरी आँखें,
उजाला आज मेरी चौखट से नाराज़ क्यूँ है"
" वो तेरी कोयल सी मीठी बोली,
मेरा आँगन आज उन गीतो से अंजान क्यूँ है,
जो कभी हमारे दिल में रहती थी धड़कन बनकर,
दिल आज उसी धड़कन से वीरान क्यूँ है"
"अक्स"
ना जाने तेरे लिए बेकरार क्यूँ है,
मुझे तुझसे नफ़रत है या फिर मुहब्बत,
ज़िंदगी इन सवालो से परेशान क्यूँ है"
"वो तेरे ज़िंदगी भर साथ निभाने के वादे,
मेरी मंज़िल तेरी रहो से गुमनाम क्यूँ है,
कभी मेरी ज़िंदगी में नूर बरसाती तेरी आँखें,
उजाला आज मेरी चौखट से नाराज़ क्यूँ है"
" वो तेरी कोयल सी मीठी बोली,
मेरा आँगन आज उन गीतो से अंजान क्यूँ है,
जो कभी हमारे दिल में रहती थी धड़कन बनकर,
दिल आज उसी धड़कन से वीरान क्यूँ है"
"अक्स"
Friday, September 17, 2010
स्वप्न
"जाने क्यूँ मेरे दिल की धड़कन,
तेरी एक आहट से रुक जाती है,
हवा में फैली तेरे बदन की सौंधी खुश्बू,
मेरे अंतर्मन को भी महका जाती है"
"मोती से चमकते तेरे नैनो की चपलता,
मृग को भी एकबारगी भ्रमित कर जाती है,
पलको का आवरण कुछ यूँ लगे है इन पर,
ज्यों गोरी लाज से घूँघट में सिमट जाती है"
"ठगा सा खड़ा रह जाता हूँ मैं बस,
ज्यों कोई नागिन बीन से बंध जाती है,
तेरे सम्मोहन में फँसता जाता हूँ बस,
तुझमे ही मुझे मेरी दुनिया नज़र आती है"
"अक्स"
तेरी एक आहट से रुक जाती है,
हवा में फैली तेरे बदन की सौंधी खुश्बू,
मेरे अंतर्मन को भी महका जाती है"
"मोती से चमकते तेरे नैनो की चपलता,
मृग को भी एकबारगी भ्रमित कर जाती है,
पलको का आवरण कुछ यूँ लगे है इन पर,
ज्यों गोरी लाज से घूँघट में सिमट जाती है"
"ठगा सा खड़ा रह जाता हूँ मैं बस,
ज्यों कोई नागिन बीन से बंध जाती है,
तेरे सम्मोहन में फँसता जाता हूँ बस,
तुझमे ही मुझे मेरी दुनिया नज़र आती है"
"अक्स"
Tuesday, July 20, 2010
चितचोर
"वो बहकी सी मदहोश निगाहें,
मानो मय का सागर छलका रही हैं,
हर कोई पागल हो चल पड़ा उनके पीछे,
वो फिर भी अपना जाल फैला रही है"
"भरी हिरनी सी चंचल चपलता उनमे,
सूरज सा चमक एक तेज बिखेर रही हैं,
पलकों की ओट से शीतल चाँदनी फैलातीं वो ,
जाने किस गुमान में उड़ी जा रही हैं"
"जग में फैला रहीं एक भ्रम जाल वो,
मस्ती में बस झूम रही हैं,
बन तेज़ कटारी उतर पड़ी हर दिल में,
जग के सब बंधन काट रही हैं"
"अक्स"
मानो मय का सागर छलका रही हैं,
हर कोई पागल हो चल पड़ा उनके पीछे,
वो फिर भी अपना जाल फैला रही है"
"भरी हिरनी सी चंचल चपलता उनमे,
सूरज सा चमक एक तेज बिखेर रही हैं,
पलकों की ओट से शीतल चाँदनी फैलातीं वो ,
जाने किस गुमान में उड़ी जा रही हैं"
"जग में फैला रहीं एक भ्रम जाल वो,
मस्ती में बस झूम रही हैं,
बन तेज़ कटारी उतर पड़ी हर दिल में,
जग के सब बंधन काट रही हैं"
"अक्स"
Sunday, July 11, 2010
हया
"उनकी पलकों पर फैली वो मद्धम सी हया,
जाने क्यूँ मेरे दिल में उतर जाती है,
उनकी निगाहों में उभरती हुई एक लकीर,
मानो मेरे होने पर ही एक सवाल उठाती है"
"वो मुस्कुराती है होले से कुछ इस तरह,
जैसे रात में तारो संग चांदनी फ़ैल जाती है,
लब थिरकते रहते हैं पर न कुछ बोलती वो,
बिन कुछ कहे भी जाने कैसे सब कह जाती है"
"तडपाती है मुझे जाने क्यूँ उन अदाओ से,
फिर एक तिरछी नज़र से घायल कर जाती है,
बड़ी अजीब है ये उसकी क़त्ल करने की अदा अक्स,
जिसको वो अपनी हया के पहलू में छुपा जाती है"
"अक्स"
जाने क्यूँ मेरे दिल में उतर जाती है,
उनकी निगाहों में उभरती हुई एक लकीर,
मानो मेरे होने पर ही एक सवाल उठाती है"
"वो मुस्कुराती है होले से कुछ इस तरह,
जैसे रात में तारो संग चांदनी फ़ैल जाती है,
लब थिरकते रहते हैं पर न कुछ बोलती वो,
बिन कुछ कहे भी जाने कैसे सब कह जाती है"
"तडपाती है मुझे जाने क्यूँ उन अदाओ से,
फिर एक तिरछी नज़र से घायल कर जाती है,
बड़ी अजीब है ये उसकी क़त्ल करने की अदा अक्स,
जिसको वो अपनी हया के पहलू में छुपा जाती है"
"अक्स"
Tuesday, June 29, 2010
सहर
"उन आँखों में फैली एक गहरी उदासी,
आज उस घनी झील में एक तूफ़ान सा है,
जिनमे बहते थे हम कभी मस्ती से भरे,
उन्ही लहरों पे फैला आज कोई जाल सा है"
"कभी मस्ती छलकाते वो दो रस के प्याले,
मय के लिए जिनकी आज रिंद तरसता सा है,
क्यूँ गुम गए हैं यूँ ही एक स्याह अँधेरे में,
सागर में जिनकी बेबसी के सूरज भी जुगनू सा है"
"खेला करते थे जहाँ सपने उस एक जहाँ में,
वो आज गम के अंधेरो से वीरान सा है,
तमन्ना है अक्स मेरी अंतिम फिर वहां सहर की,
पर मेरा निगेहबान तो मुझसे भी रूठा सा है"
आज उस घनी झील में एक तूफ़ान सा है,
जिनमे बहते थे हम कभी मस्ती से भरे,
उन्ही लहरों पे फैला आज कोई जाल सा है"
"कभी मस्ती छलकाते वो दो रस के प्याले,
मय के लिए जिनकी आज रिंद तरसता सा है,
क्यूँ गुम गए हैं यूँ ही एक स्याह अँधेरे में,
सागर में जिनकी बेबसी के सूरज भी जुगनू सा है"
"खेला करते थे जहाँ सपने उस एक जहाँ में,
वो आज गम के अंधेरो से वीरान सा है,
तमन्ना है अक्स मेरी अंतिम फिर वहां सहर की,
पर मेरा निगेहबान तो मुझसे भी रूठा सा है"
Friday, May 28, 2010
खोखला समाज
"आज फिर यूँ ही घर से निकलते ही,
वो फिर सामने आ खड़ी हुई,
उलझे बाल, रूखा चेहरा लिए,
मानो किसी ने उसका खून चूस लिया हो"
"हाँ यही तो हुआ था शायद उसके साथ,
पहले घर की चारदीवारी,फिर संतानो ने चूसा,
बाकी बचा हुआ समाज की खोखली कुरीतियों ने ,
छोड़ा तो बस हाड़ माँस का एक गलता हुआ शरीर"
"उसे देख जाने मुझे ऐसा क्यूँ लगता है,
वो इस खोखले समाज की ज़िंदा तस्वीर है,
धीरे धीरे समाज भी गल रहा उसके साथ अब,
ओर वो बेबस पड़ी पड़ी सिसक रही है"
"अक्स"
वो फिर सामने आ खड़ी हुई,
उलझे बाल, रूखा चेहरा लिए,
मानो किसी ने उसका खून चूस लिया हो"
"हाँ यही तो हुआ था शायद उसके साथ,
पहले घर की चारदीवारी,फिर संतानो ने चूसा,
बाकी बचा हुआ समाज की खोखली कुरीतियों ने ,
छोड़ा तो बस हाड़ माँस का एक गलता हुआ शरीर"
"उसे देख जाने मुझे ऐसा क्यूँ लगता है,
वो इस खोखले समाज की ज़िंदा तस्वीर है,
धीरे धीरे समाज भी गल रहा उसके साथ अब,
ओर वो बेबस पड़ी पड़ी सिसक रही है"
"अक्स"
Thursday, May 13, 2010
ज्वाला
"आज अनायास ही मस्तिष्क में उभर आए कुछ पल,
गूलर व्रक्ष पर खिले उस सलोने पुष्प की तरह,
जज़्ब थी कहीं कहीं शीत ऋतु की ज्वाला उनमे,
तो कहीं दमके सुलगते हुए अँगारे की तरह"
"बहने लग पड़े मानसिक पटल पर कुछ यूँ,
पर्दे पर अभिनीत किसी चलचित्र की तरह,
देख जिसे उभरी महीन रेखाएँ किसी ललाट पर,
किसी ह्रदय में उभरे एक बवंडर की तरह"
"जाने क्यूँ आंकलन करने लग पड़ा मैं उनका,
बैठ किसी बही में एक मुंशी की तरह,
जोड़ने लग पड़ा कि ऩफा ओ नुकसान देखूं,
अटका जो एक बार तो इसी में रह गया बिंदु की तरह"
"अक्स"
गूलर व्रक्ष पर खिले उस सलोने पुष्प की तरह,
जज़्ब थी कहीं कहीं शीत ऋतु की ज्वाला उनमे,
तो कहीं दमके सुलगते हुए अँगारे की तरह"
"बहने लग पड़े मानसिक पटल पर कुछ यूँ,
पर्दे पर अभिनीत किसी चलचित्र की तरह,
देख जिसे उभरी महीन रेखाएँ किसी ललाट पर,
किसी ह्रदय में उभरे एक बवंडर की तरह"
"जाने क्यूँ आंकलन करने लग पड़ा मैं उनका,
बैठ किसी बही में एक मुंशी की तरह,
जोड़ने लग पड़ा कि ऩफा ओ नुकसान देखूं,
अटका जो एक बार तो इसी में रह गया बिंदु की तरह"
"अक्स"
Monday, April 26, 2010
अंत
"जीवन के अंतिम पथ पर मैं बस कदम बढ़ने वाला हूँ,
बुझा दिए जो तूफान ने वो दीप जलाने वाला हूँ,
डूबता सूरज जलता है अपने ही ढलने के गम में,
आगे बढ़कर अब उसको मैं बस थामने वाला हूँ"
"लुटा दी मैने ज़िंदगी यूँ ही बस ऑरो के लिए,
अब जाके अपना ख़याल क्यूँ आया है,
करूँ भी तो क्या करूँ है यही कशमकश,
अब जब सब कुछ छोड़ के जाने वाला हूँ"
"आखरी नमाज़ भी कर लूँ अता मैं अब,
जब खुद खाक में मिलने वाला हूँ,
साकी पिलाएगी मुझे क्या अब जाम-ए-हुश्न ए अक्स
बस कुछ ही पल में मैं इस मय में मिलने वाला हूँ"
"अक्स"
बुझा दिए जो तूफान ने वो दीप जलाने वाला हूँ,
डूबता सूरज जलता है अपने ही ढलने के गम में,
आगे बढ़कर अब उसको मैं बस थामने वाला हूँ"
"लुटा दी मैने ज़िंदगी यूँ ही बस ऑरो के लिए,
अब जाके अपना ख़याल क्यूँ आया है,
करूँ भी तो क्या करूँ है यही कशमकश,
अब जब सब कुछ छोड़ के जाने वाला हूँ"
"आखरी नमाज़ भी कर लूँ अता मैं अब,
जब खुद खाक में मिलने वाला हूँ,
साकी पिलाएगी मुझे क्या अब जाम-ए-हुश्न ए अक्स
बस कुछ ही पल में मैं इस मय में मिलने वाला हूँ"
"अक्स"
Sunday, April 25, 2010
गुबार
"मिलकर तुमसे लगा यूँ जैसे जन्नत मिल गयी,
हम तो कब से बर्बाद ए मुहब्बत हुआ करते थे,
तेरी हँसी ने दी मेरे दिल को वो राहत,
तलाश में जिसकी हम राहों में फिरा करते थे"
"एक दर्द का दरिया बहता था कभी सीने में हमारे,
जिस से मेरी रूह पे भी फफोले हुआ करते थे,
तेरी पर्छाईं की छाया से हुआ कुछ यूँ असर,
वो हो गये शबनम जो कभी शोला हुआ करते थे"
"गैरों से क्यूँ हो शिकवा हमे अपनो ने किया कत्ल,
आश्तीनों में जिनकी छुपे खंजर हुआ करते थे,
दिन ये भी वो ही हैं, दिन वो भी वो ही थे,
हम हैं तन्हा अब भी तब भी हुआ करते थे"
"अक्स"
हम तो कब से बर्बाद ए मुहब्बत हुआ करते थे,
तेरी हँसी ने दी मेरे दिल को वो राहत,
तलाश में जिसकी हम राहों में फिरा करते थे"
"एक दर्द का दरिया बहता था कभी सीने में हमारे,
जिस से मेरी रूह पे भी फफोले हुआ करते थे,
तेरी पर्छाईं की छाया से हुआ कुछ यूँ असर,
वो हो गये शबनम जो कभी शोला हुआ करते थे"
"गैरों से क्यूँ हो शिकवा हमे अपनो ने किया कत्ल,
आश्तीनों में जिनकी छुपे खंजर हुआ करते थे,
दिन ये भी वो ही हैं, दिन वो भी वो ही थे,
हम हैं तन्हा अब भी तब भी हुआ करते थे"
"अक्स"
तलाश
"इतने दोस्तो में भी एक दोस्त की तलाश है,
समझ सके जो मुझे उस शख्स की तलाश है,
यूँ तो बहुत मिले मुझे गाहे बेगाहे मगर,
जो साथ दे हमेशा, उस हमसफ़र की तलाश है"
"राहे ज़िंदगी में मुश्किलें बहुत हैं,
पर मुझे तो अपनी मंज़िलों की तलाश है,
जूझता हूँ यूँ तो मैं मुश्किलों से हर रोज़,
फिर भी मुझे ना जाने क्यूँ उन मुश्किलों की तलाश है"
"खुशियों से मेरा जीवन आबाद था कभी,
खो गयीं कहीं जो, उन खुशियों की तलाश है,
किस किस की करूँ अब तलाश मैं ए अक्स,
मुझे तो इस जहाँ में हर किसी की तलाश है"
"अक्स"
समझ सके जो मुझे उस शख्स की तलाश है,
यूँ तो बहुत मिले मुझे गाहे बेगाहे मगर,
जो साथ दे हमेशा, उस हमसफ़र की तलाश है"
"राहे ज़िंदगी में मुश्किलें बहुत हैं,
पर मुझे तो अपनी मंज़िलों की तलाश है,
जूझता हूँ यूँ तो मैं मुश्किलों से हर रोज़,
फिर भी मुझे ना जाने क्यूँ उन मुश्किलों की तलाश है"
"खुशियों से मेरा जीवन आबाद था कभी,
खो गयीं कहीं जो, उन खुशियों की तलाश है,
किस किस की करूँ अब तलाश मैं ए अक्स,
मुझे तो इस जहाँ में हर किसी की तलाश है"
"अक्स"
Tuesday, April 13, 2010
हुश्न
"तुम जो चल दो यूँ ही जिधर,
प्यार की प्यारी सी सरिता बह चले,
हंस दो जो मस्ती में बस एक बार,
सुरो की एक सुरीली सी कविता बह चले"
"तुम्हारे पल्लू से हौले से बहती है पूर्वाई,
झटक दो जो जुल्फों को उसमे खुश्बू बह चले,
नाज़ुक कमर तुम्हारी है लहरों सी बलखाई,
चलो जो इतरा के मानो कोई हिरनी फुदक चले"
"अंगड़ाई तेरी कितनी है मदमस्त क्या कहूँ,
डालो जो एक नज़र तो पत्थर भी पानी सा बह चले,
कितने अब ओर इस हुश्न के कशीदे पढ़ूँ मैं अक्स,
लिखने को तो सारे जहाँ की स्याही भी कम पड़े"
"अक्स"
प्यार की प्यारी सी सरिता बह चले,
हंस दो जो मस्ती में बस एक बार,
सुरो की एक सुरीली सी कविता बह चले"
"तुम्हारे पल्लू से हौले से बहती है पूर्वाई,
झटक दो जो जुल्फों को उसमे खुश्बू बह चले,
नाज़ुक कमर तुम्हारी है लहरों सी बलखाई,
चलो जो इतरा के मानो कोई हिरनी फुदक चले"
"अंगड़ाई तेरी कितनी है मदमस्त क्या कहूँ,
डालो जो एक नज़र तो पत्थर भी पानी सा बह चले,
कितने अब ओर इस हुश्न के कशीदे पढ़ूँ मैं अक्स,
लिखने को तो सारे जहाँ की स्याही भी कम पड़े"
"अक्स"
तेरी याद
"आज फिर आँखों में तेरी सूरत उतर आई है,
दिल में बसी थी जो कभी एक याद बनकर,
अब अश्क बहने से मना कर देते हैं आँखों से,
कहीं तू बह ना जाए उनमे एक ओस का मोती बनकर"
"तेरी जुदाई का गम सालता रहता है मुझको,
याद तेरी साँसों में अटक गयी है एक फाँस बनकर,
भूल मेरी है जो मिटा ना सका तुझे अपनी यादों से,
मैं तुझसे अब क्यूँ करूँ कोई शिकवा ओ गिला क्यूंकर"
"ज़िंदगी बह रही है अब हथेली से रेत की तरह,
वक़्त डराता रहता है मुझे एक तूफान बनकर,
अब अपने चाहने वालो से मिलता हूँ मुजाहिर की तरह,
अपनो की इस भीड़ में रह गया हूँ तन्हा बनकर"
"अक्स"
दिल में बसी थी जो कभी एक याद बनकर,
अब अश्क बहने से मना कर देते हैं आँखों से,
कहीं तू बह ना जाए उनमे एक ओस का मोती बनकर"
"तेरी जुदाई का गम सालता रहता है मुझको,
याद तेरी साँसों में अटक गयी है एक फाँस बनकर,
भूल मेरी है जो मिटा ना सका तुझे अपनी यादों से,
मैं तुझसे अब क्यूँ करूँ कोई शिकवा ओ गिला क्यूंकर"
"ज़िंदगी बह रही है अब हथेली से रेत की तरह,
वक़्त डराता रहता है मुझे एक तूफान बनकर,
अब अपने चाहने वालो से मिलता हूँ मुजाहिर की तरह,
अपनो की इस भीड़ में रह गया हूँ तन्हा बनकर"
"अक्स"
Sunday, January 17, 2010
दुविधा
"जाने किस ख़याल में मैं खोया रहा,
जाग गयी दुनिया मगर मैं यूँ ही सोया रहा,
छोड़ कर मुझको अकेला आगे बढ़ गये सारे,
मैं बस गम के अंधेरो में ही खोया रहा"
"जाग कर दौड़ा तो पंहुचा दुनिया की इस दौड़ में,
उन्नति ऑर अवनति के फेर में पड़ता रहा,
सपने सारे टूट कर रह गये जाने कहाँ,
माया का भ्रम बस मेरी आँखों पर छाया रहा"
"थक कर पूछा हारकर दिल ने मेरे यूँ एक दिन,
क्या तेरा है रास्ता जाना कहाँ है ये बता,
निकला ना एक बोल भी मुँह से मेरे तब ए अक्स
खड़ा रहा मैं बस यूँ ही ऑर रास्ता तकता रहा"
"अक्स"
जाग गयी दुनिया मगर मैं यूँ ही सोया रहा,
छोड़ कर मुझको अकेला आगे बढ़ गये सारे,
मैं बस गम के अंधेरो में ही खोया रहा"
"जाग कर दौड़ा तो पंहुचा दुनिया की इस दौड़ में,
उन्नति ऑर अवनति के फेर में पड़ता रहा,
सपने सारे टूट कर रह गये जाने कहाँ,
माया का भ्रम बस मेरी आँखों पर छाया रहा"
"थक कर पूछा हारकर दिल ने मेरे यूँ एक दिन,
क्या तेरा है रास्ता जाना कहाँ है ये बता,
निकला ना एक बोल भी मुँह से मेरे तब ए अक्स
खड़ा रहा मैं बस यूँ ही ऑर रास्ता तकता रहा"
"अक्स"
इंतहा
"जाने क्या ढूंढता हूँ ज़िंदगी की राहो में,
सब कुछ तो खो गया है मेरा यहाँ,
जलता रहा हर पल तन्हाई की आग में,
ना एक पल भी साथ मिल पाया किसी का"
"यूँ तो वादेवफा मिलते रहे हर मोड़ पर,
भरते रहे सभी दम हर पल वफ़ाई का,
चार पल भी ना साथ चल पाया कोई रहगुज़र,
ऑर हम पर लगता रहा इल्ज़ाम बेवफ़ाई का"
"बहता रहा खून ए जिगर बनकर अश्क मेरा यूँही,
जख्म गहरे हो गये दिल के मेरे इस हाल से,
भूल जा बातें सभी ऑर वायदे उस यार के,
बस हो गयी अब इंतहा ए अक्स तेरे इंतज़ार की"
"अक्स"
सब कुछ तो खो गया है मेरा यहाँ,
जलता रहा हर पल तन्हाई की आग में,
ना एक पल भी साथ मिल पाया किसी का"
"यूँ तो वादेवफा मिलते रहे हर मोड़ पर,
भरते रहे सभी दम हर पल वफ़ाई का,
चार पल भी ना साथ चल पाया कोई रहगुज़र,
ऑर हम पर लगता रहा इल्ज़ाम बेवफ़ाई का"
"बहता रहा खून ए जिगर बनकर अश्क मेरा यूँही,
जख्म गहरे हो गये दिल के मेरे इस हाल से,
भूल जा बातें सभी ऑर वायदे उस यार के,
बस हो गयी अब इंतहा ए अक्स तेरे इंतज़ार की"
"अक्स"
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