Friday, October 18, 2019

करवा चौथ

"कुछ इस तरह से इश्क़ की किश्तें भर रहा हूँ,
हर करवाचौथ पर अब मैं व्रत कर रहा हूँ,
बीवी है बैठी खाये, काजू, बादाम , पिस्ता,
और मैं तो चाय तक को भी तरस रहा हूँ "

"है चाँद भी अब दुश्मन, खिड़की से भी न झांके,
पाने को जिसके दर्शन, छलनी लिए खड़ा हूँ,
कृपा है श्रीमती जी की, जो साथ में खड़ी हैं,
वरना तो लेकर आसन पाटी, कब से वो पड़ी हैं"

"साल का ये एक दिन, है बड़ा गज़ब जी
बनने की आज शेर, हर एक चूहे को पड़ी है,
कहते हैं मियां अक्स, मत अतीत को तुम भूलो,
सामने फिर कल से, वही पुरानी शेरनी खड़ी है"

'अक्स,

Monday, May 13, 2019

अकेलापन

"आज मैं  फिर अकेला रह गया हूँ,
मेरे अपने कहीं पीछे छूट गए,
वो मां की लोरी, पापा की झिड़की
मिट्टी का खिलौना, लकड़ी की गाड़ी,
सब सहेज कर रखे थे एक गुल्लक में,
जिसे नादान दुनिया वाले लूट गए
आज मैं फिर अकेला रह गया हूँ"

"कैसे बताऊं उसमें क्या क्या था संजोया,
वो दादा दादी की मनुहार, जब भी मैं रोया,
चारपाई का झूला वो झंडियों का रेला,
पिट्ठू का खेला वो राम जी का मेला,
करता था जिसमें हुल्लड़, मैं संग दोस्तों के,
गायों की दौड़ से उठता गोधूली का रेला,
उसे भूल सड़को की रैली में खो गया हूँ,
आज मैं फिर अकेला रह  गया हूँ"

" ताऊ चाचा का प्यार, गांव वालों का दुलार,
मेरी बस एक जिद पे सबका विचलित होना,
कागज की नाव या साइकल की होती थी दौड़,
हार कर भी सभी के संग खुशी में शामिल होना,
नापना फलांगो में मोहल्लो की बारादरी,
फिर मार के डर से, चुपके से घर में आना
अब घर छोड़ कर मैं मकान में रह गया हूँ,
आज फिर मैं अकेला रह गया हूँ"
"अक्स”

Monday, March 18, 2019

सुख चैन


"सुख चैन कहाँ वो नींद कहाँ,
जो दादा के संग मैं पाता था,
दादी की गोद में सर रख कर,
जब सपनो में उड़ जाता था"

"वो खेल खिलौने मिट्टी के,
यारों संग करना वो हुल्लड़,
जब मार कुलाँचे पेड़ो पर,
बस दम भर में चढ़ जाता था"

"जब फसल लहलहाती खेतो में,
तन मन को खुश कर जाती थी,
फिर शाम भरे चौपालो में ,
शुभ मंगल गान मैं गाता था"

"वो गिनकर रातों को तारे,
चारपाई पर उधम मचाता था,
फिर पापा की गुर्राहट से डरकर,
दादा के पीछे छुप जाता था"

"पौं फटे वो सुनना चिड़ियों का कलरव,
 बड़े बुज़ुर्गो को झुककर शीश नवाता था,
 जब खाड़िया पुती स्लेटों को झोले में लेकर जाते थे,
 शहतूत की बेंत के आगे सब भीगी बिल्ली बन जाते थे'
 

"वो सौंधी सौंधी सी यादें,
अब भी जीवन को महकाती हैं,
छुना चाहूं उनको जो हाथ बढ़ा,
बस पलकों को नम कर जाती हैं"

'अक्स'


Friday, January 4, 2019

बेटियाँ

"कहते हैं सब बेटियाँ पराई होती हैं,
मगर वो घर वालो के दिल में समाई होती हैं,
जहाँ में सबसे पहला स्थान है केवल माँ का,
जिसके चरणों में ईश्वर ने जन्नत बनाई होती है"

"माँ की ममता का होती हैं एक प्रतिरूप जहाँ,
बाप का मान सम्मान, गर्व होती हैं बेटियाँ,
कंचन,कोमल, कोमलांगी का होती हैं पर्यायवाची,
मगर वक़्त पड़ने पर रण चंडी भी बन जाती हैं बेटियाँ"

"माँ बाप से घर से निकल कर जब पहुँचे ससुराल वो,
दो परिवारो, दो संस्कारो के मिलन का उदगम होती है बेटियाँ,
अपने संस्कारो से नये परिवार को प्यार के धागे में पिरोती हैं,
सभी के जीवन का एक संबल बन जाती हैं बेटियाँ"

"घर के चोके चूल्‍हे से लेकर अंतरिक्ष तक पंख फैला रही,
अपने दम पर हर जगह खड़ी नज़र आती हैं बेटियाँ,
माँ, बेटी, बहन और ना जाने कितने किरदार निभाते हुए,
बेटो को पीछे छोड़कर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ती हैं बेटियाँ"

"अक्स'