"आज मैं फिर अकेला रह गया हूँ,
मेरे अपने कहीं पीछे छूट गए,
वो मां की लोरी, पापा की झिड़की
मिट्टी का खिलौना, लकड़ी की गाड़ी,
सब सहेज कर रखे थे एक गुल्लक में,
जिसे नादान दुनिया वाले लूट गए
आज मैं फिर अकेला रह गया हूँ"
"कैसे बताऊं उसमें क्या क्या था संजोया,
वो दादा दादी की मनुहार, जब भी मैं रोया,
चारपाई का झूला वो झंडियों का रेला,
पिट्ठू का खेला वो राम जी का मेला,
करता था जिसमें हुल्लड़, मैं संग दोस्तों के,
गायों की दौड़ से उठता गोधूली का रेला,
उसे भूल सड़को की रैली में खो गया हूँ,
आज मैं फिर अकेला रह गया हूँ"
" ताऊ चाचा का प्यार, गांव वालों का दुलार,
मेरी बस एक जिद पे सबका विचलित होना,
कागज की नाव या साइकल की होती थी दौड़,
हार कर भी सभी के संग खुशी में शामिल होना,
नापना फलांगो में मोहल्लो की बारादरी,
फिर मार के डर से, चुपके से घर में आना
अब घर छोड़ कर मैं मकान में रह गया हूँ,
आज फिर मैं अकेला रह गया हूँ"
"अक्स”
मेरे अपने कहीं पीछे छूट गए,
वो मां की लोरी, पापा की झिड़की
मिट्टी का खिलौना, लकड़ी की गाड़ी,
सब सहेज कर रखे थे एक गुल्लक में,
जिसे नादान दुनिया वाले लूट गए
आज मैं फिर अकेला रह गया हूँ"
"कैसे बताऊं उसमें क्या क्या था संजोया,
वो दादा दादी की मनुहार, जब भी मैं रोया,
चारपाई का झूला वो झंडियों का रेला,
पिट्ठू का खेला वो राम जी का मेला,
करता था जिसमें हुल्लड़, मैं संग दोस्तों के,
गायों की दौड़ से उठता गोधूली का रेला,
उसे भूल सड़को की रैली में खो गया हूँ,
आज मैं फिर अकेला रह गया हूँ"
" ताऊ चाचा का प्यार, गांव वालों का दुलार,
मेरी बस एक जिद पे सबका विचलित होना,
कागज की नाव या साइकल की होती थी दौड़,
हार कर भी सभी के संग खुशी में शामिल होना,
नापना फलांगो में मोहल्लो की बारादरी,
फिर मार के डर से, चुपके से घर में आना
अब घर छोड़ कर मैं मकान में रह गया हूँ,
आज फिर मैं अकेला रह गया हूँ"
"अक्स”
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