Saturday, December 24, 2016

तन्हा

" सुबह तन्हा मेरी हर शाम तन्हा,
गुजर गयी यूँ ही उम्र तमाम तन्हा,
मेरा था क्या मेरा है, क्या मेरा होगा,
मेरी आमद में बजता हर सितार तन्हा"

" तेरी खुशबू से महकती थी जो वादी कभी,
आज तेरे इंतज़ार में हर गुल औ गुलज़ार तन्हा,
तेरे आने की खबर कुछ इस कदर बिखरी,
इसकी जद में जो आया वो हर शख्श तन्हा"

"समंदर ने जो उछाली हैं लहरे ज्वार में,
लहरो से छिटकी वो हर एक बूँद तन्हा,
कौन गहरा है,  समंदर या मन तेरा अक्स,
वाजिब नहीं जवाब जब दोनों का ही सार तन्हा"

"अक्स"

Monday, October 31, 2016

बदलाव

"दिन और रात में इंसान को बदलते देखा है ,
हमने अपनों के ज़ज्बात को बदलते देखा है,
आपसी उठा पठक की इस अनकही जंग में,
लोगो को हालात के हाथों मरते देखा है"

"हर एक की गर्दन फसी है दूसरे के हाथों में,
हमने खरबूजे से छुरी को कटते देखा है,
 मेरे अपने ही मुझे जिन्दा दफन कर गए,
उनके हाथो मैंने एहसास को मरते देखा है"

"जाने मुझे कहाँ लेकर जाती है परवाज़ मेरी,
हमने स्वछन्द परिंदों की उड़ान को देखा है,
सोचता हूँ ये कब, कहाँ और कैसे बंद होगा,
इन सुर्ख आँखों ने जो मंजर ए इंतकाम देखा है"

"ज़िन्दगी का हर कदम अब बे अंत, बेरंग है,
हमने फूलों के हाथों कांटो को मरते देखा है,
 नहीं कुछ बचा अब और क्या कहूँ अक्स,
हमने ज़िन्दगी के हाथों मौत को मरते देखा है"

"अक्स"

Monday, June 27, 2016

बेपरवाह ज़िंदगी

"बड़ी बेपरवाह हो गयी है ज़िंदगी आजकल,
इधर तो कभी उधर निकल पड़ती है,
आवारगी में इस कदर गुम हुई है,
अपनी राह ए मंज़िल को भूल पड़ती है"

"आब-ए-तल्ख़ में गिरफ्तार है इस कदर,
गफलत में गलिजो के लिए बिछ पड़ती है,
सजदे में सर झुकाती है शैतान को,
अंजुमन में नाशूक्रो के पड़ी रहती है"

"अपनी ज़िल्लत को भूल गयी है शायद,
जाने किस गुरूर में दोजख से गुज़र पड़ती है,
क्यूँ ग़ज़ल में समेटने की इच्छा रखता है अक्स,
ये वो शह है जो हर लय में बसर करती है"

"अक्स"

Saturday, January 30, 2016

धुंध भरी सुबह

"धुंध भरी सुबह में सड़क के एक ऒर, 
 जाने वो कौन चली जा रही थी,
 सुर्ख ओ स्याह सफेदी भरा चेहरा लिए,
 मानो ठण्ड को आगोश में भरे जा रही थी"
"सर से ढलकते दुपट्टे को सही करने में,
 खुद एक अजंता की मूरत बनी जा रही थी,
 मानो भिड़ने निकली हो बर्फीली हवाओं से,
 संभलती कभी लड़खड़ाये जा रही थी"
"अश्कों के बहते दरिया को थामने की कोशिश में,
 नैनो पर पलकों की लगाम लगाये जा रही थी,
 समय बीतने के साथ वो भी धुंधलाती हुई,
 शने: शने: धुंध में विलीन होती जा रही थी"
"धुंध भरी सुबह में सड़क के एक ऒर,
 जाने वो कौन चली जा रही थी"
                                          "अक्स"

Wednesday, January 27, 2016

शमा-परवाना

"ज्यों शमा करती है इंतज़ार किसी परवाने का,
तू भी आकर देख ले हाल अपने दीवाने का,
दीवानावार भटकता रहता है वो दर बदर,
होश कहाँ रहा उसे अब इस ज़माने का"

"महबूब के नाम का रोज़ पड़ता है कलमा,
उसी की रहगुज़र में सजदा उस मस्ताने का,
यादों में उसकी टूट कर यूँ बिखर गया है,
ज्यों छलकता जाम हो किसी पैमाने का"

"अपने नाज़ ओ अंदाज़ में वो गुम हैं इस कदर,
उन्हे इल्म ही नही किसी दिल के खो जाने का,
उनकी इसी अदा पर हम मर मिटें हैं अक्स ,
वरना दुनिया में कहाँ दम हमे आज़माने का"
                                                   "अक्स"