"काश स्वछंद लहरों सी, हो पाती ये जिंदगी,
फिर हर डगर में ही, बह जाती ये जिंदगी,
कभी न किसी का कोई विराम रह जाता,
हर ठहराव को तोड़,आगे बढ़ जाती ये जिंदगी"
"करती अठखेलियाँ पल पल,बहती हवा के झोकों से,
एक चंचल नवयोवना सी, इठलाती ये जिंदगी,
बलखाती यूँ मानो,लचकी हो कमर कोई,
यूँ ही किसी इशारे से, मन बहकाती ये जिंदगी"
ज़माने की कोई परवाह, न चिंता दुनियादारी की,
यूँ ही बस होंसलों को परवाज़, दे जाती ये जिंदगी,
हो दुनिया में ग़म कितना, तपिश चाहे ज़माने में,
तन और मन को यूँ ही शीतल कर जाती ये जिंदगी"
"अक्स"
Wednesday, June 1, 2011
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