"कुछ इस तरह से इश्क़ की किश्तें भर रहा हूँ,
हर करवाचौथ पर अब मैं व्रत कर रहा हूँ,
बीवी है बैठी खाये, काजू, बादाम , पिस्ता,
और मैं तो चाय तक को भी तरस रहा हूँ "
"है चाँद भी अब दुश्मन, खिड़की से भी न झांके,
पाने को जिसके दर्शन, छलनी लिए खड़ा हूँ,
कृपा है श्रीमती जी की, जो साथ में खड़ी हैं,
वरना तो लेकर आसन पाटी, कब से वो पड़ी हैं"
"साल का ये एक दिन, है बड़ा गज़ब जी
बनने की आज शेर, हर एक चूहे को पड़ी है,
कहते हैं मियां अक्स, मत अतीत को तुम भूलो,
सामने फिर कल से, वही पुरानी शेरनी खड़ी है"
'अक्स,
हर करवाचौथ पर अब मैं व्रत कर रहा हूँ,
बीवी है बैठी खाये, काजू, बादाम , पिस्ता,
और मैं तो चाय तक को भी तरस रहा हूँ "
"है चाँद भी अब दुश्मन, खिड़की से भी न झांके,
पाने को जिसके दर्शन, छलनी लिए खड़ा हूँ,
कृपा है श्रीमती जी की, जो साथ में खड़ी हैं,
वरना तो लेकर आसन पाटी, कब से वो पड़ी हैं"
"साल का ये एक दिन, है बड़ा गज़ब जी
बनने की आज शेर, हर एक चूहे को पड़ी है,
कहते हैं मियां अक्स, मत अतीत को तुम भूलो,
सामने फिर कल से, वही पुरानी शेरनी खड़ी है"
'अक्स,
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