Friday, September 17, 2010

स्वप्न

"जाने क्यूँ मेरे दिल की धड़कन,
तेरी एक आहट से रुक जाती है,
हवा में फैली तेरे बदन की सौंधी खुश्बू,
मेरे अंतर्मन को भी महका जाती है"

"मोती से चमकते तेरे नैनो की चपलता,
मृग को भी एकबारगी भ्रमित कर जाती है,
पलको का आवरण कुछ यूँ लगे है इन पर,
ज्यों गोरी लाज से घूँघट में सिमट जाती है"

"ठगा सा खड़ा रह जाता हूँ मैं बस,
ज्यों कोई नागिन बीन से बंध जाती है,
तेरे सम्मोहन में फँसता जाता हूँ बस,
तुझमे ही मुझे मेरी दुनिया नज़र आती है"

"अक्स"

1 comment:

ओशो रजनीश said...

अच्छी पंक्तिया है ..

कृपया शब्द पुष्टिकरण हटा दीजिये , टिपण्णी देने में परेशानी होती है

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