"वो बहकी सी मदहोश निगाहें,
मानो मय का सागर छलका रही हैं,
हर कोई पागल हो चल पड़ा उनके पीछे,
वो फिर भी अपना जाल फैला रही है"
"भरी हिरनी सी चंचल चपलता उनमे,
सूरज सा चमक एक तेज बिखेर रही हैं,
पलकों की ओट से शीतल चाँदनी फैलातीं वो ,
जाने किस गुमान में उड़ी जा रही हैं"
"जग में फैला रहीं एक भ्रम जाल वो,
मस्ती में बस झूम रही हैं,
बन तेज़ कटारी उतर पड़ी हर दिल में,
जग के सब बंधन काट रही हैं"
"अक्स"
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1 comment:
sirji...mazaa aa gaya...
-Shivam Atreya
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