'दोस्त बिखर जाते हैं,यार बिखर जाते हैं,
अच्छे अच्छे यहां दिलदार बिखर जाते हैं,
ये कोई सराय नही,मयखाना है साहेब,
मय में जो डूबे,घर बार बिखर जाते है'
'यूँ तो मयखाने की गलियाँ, तंग नही होती,
जाने क्यूँ फिर इनमे, जुलूस बिखर जाते हैं,
टकराते हैं जब जाम, एक हुक सी उठती है,
कहीं मिलते हैं दिल,कहीं अरमान बिखर जाते हैं'
'उम्दा सबसे किरदार, साकी का होता है,
होठों पे हँसी, चाहे दिल में गम होता है,
पेश करती है जाम, हर खास ओ आम को,
बहकते हैं पीकर कुछ, पीकर बिफर जाते हैं'
'मयखाना भी कभी लगता,जनता की एक कचहरी,
कट्टर दुश्मन भी बनकर,जहाँ से यार निकल आते हैं,
लानत है अक्स, एक बार जो मयखाने ना गया,
जाम ए मय से मन के, सारे गुबार निकल जाते हैं'
'अक्स'
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