"जिंदगी तुझे गले लगाने की जुस्तजू है,
बीते लम्हे फिर से पाने की आरज़ू है,
हम-आगोश था मैं अभी तक अपने हबीब से,
अब सबके लिए कुछ कर जाने की जुस्तजू है"
"शाम-ए-खुर्शीद बह रही हवा के झोंके मानिंद,
मेरी रेत को हथेली में थामने की आरज़ू है,
सुबह की उफ़क बन गयी शफ़क मेरी,
हर दीद-ए-तहर को महर बनाने की जुस्तजू है"
"उखुव्वत हर बशर कर ले इस मकां में,
मौशिकी-ए-उल्फत का पयाम हो हर लब पर,
खाबिदा आलम न मुज़तर हो सुन मेरी ग़ज़ल,
हर दर पे एक फ़िरदौस बसाने की जुस्तजू है"
"अक्स"
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