Tuesday, August 30, 2011

समलैंगिकता

"आज कल प्रेम की नयी परिभाषा आई है,
लड़के को लड़के से होने लगी अशनाई है,
प्रकृति के नियम रख दिए गये हैं ताक पर,
इंसान ने ये कैसी तरक्की पाई है"

"जाने कैसा फितूर उठ पड़ा है इनके दिमाग़ में,
लड़का होकर क्यूँ लड़की सी वेशभूषा बनाई है,
खुद को कहते फिरते हैं समलिंगी (गे) ये सब,
ऐसा लगता है शिखण्डी को राधा बनने की सुध आई है"

"खुल्लम खुल्ला कर रहे व्यभिचार अब ये,
जाने कहाँ से उभरी इनमे ये बेहयाई है,
प्रेम ओर शरीर की भूख के बीच का फ़र्क ही मिटा दिया,
ये समलैंगिकता जाने कहाँ से समाज को डसने आई है"

"अक्स"

1 comment:

S@meer said...

isse pata chalta hai ki insaan ne her field me tarakki ker li hai