"निगाहों में उनकी कुछ सपने झूमते हैं,
ख्यालों में ही बस वो अपनों को चूमते हैं,
क्यूँ हमने उन्हें बस एक बोझ समझ रखा है,
जो सारी उम्र लबो पर हमारे मुस्कान भेजते हैं"
"ये उम्र का तकाजा सबको ही घेरता है,
फिर क्यों हम बस उन्ही के सपनो को तोड़ते हैं,
जो छोड़ते हैं हमारी खातिर अपनी सारी खुशियाँ,
क्यूँ अंत में उन्ही को हम सब छोड़ते हैं"
"जिस मुंह को उन्होंने सिखलाया बात करना,
क्यूँ उसी से हम उनको अपशब्द बोलते हैं,
गैरों की खातिर खोलते दरवाज़े सारे दिल के,
क्यूँ उनके लिए हम एक खिड़की भी न खोलते हैं"
"हमारे लिए सपनो का उम्र भर बनाते घर वो,
क्यूँ उसी घर से हम उनको निकालते हैं "
जिन्होंने हमको पाला बैठा कर पलकों पर अक्स,
उन्ही के बदले हम क्यूँ बस कुत्ते पालते हैं"
"अक्स"
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5 comments:
excellent work
Keep it Up.
bahut sahi kaha sir aaj kal bujurgo ka samman karna to jaise hum bhul hi gayehain
very nice poem and heart touching. keep writing
Very Touching Atul. Avdhesh just told me about this and then i went through this.. Its a really touching.Keep the good work..this Show must go on.. we are proud of you.
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