"चन्द लम्हो का साथ होता है
ज़िंदगी यूँ कभी बसर नहीं होती
साथ चलने को बेकरार हम भी हैं
पर उनसे कदम मिलाने की हिम्मत नहीं होती"
"घड़ियो का साथ छूट जाता है
बरसों निकल जाते हैं मिलने में
तन्हाइयों में मन भटकता रहता है
ज़िंदगी की वीरानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं"
"चाह कर भी साथ नहीं चल पाता हूँ
बस यही टीस दिल में उठती है
हमे भी सुकून नसीब हो साहिल
क्यों किसी दिल से ये दुआ नहीं उठती"
"चन्द लम्हो का साथ होता है
ज़िंदगी यूँ ही बसर नहीं होती"
"अक्स"
Tuesday, September 23, 2008
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