Tuesday, September 30, 2008

नूर-ए-रुखसार

"उस चेहरे को क्या कहूँ में
जिसमें जहाँ का नूर समाया है
एक झलक पाकर जिसकी दिल ने
जन्नत का सुकून पाया है"

"कहूँ उसे अल्हड़पन जवानी का
या गुलाब कहूँ आबेहयात की रवानी का
कहूँ चंचलता का पैमाना उसे
या सागर नीले पानी का"

"सोचता हूँ वो चेहरा याद करके
जो बनकर धुंध जहाँ पर छाया है
फिर भी मैं उलझा हूँ साहिल
कोई ना उसे जान पाया है"

"दिल में है मेरे कशमकश यही
वो मेरा अपना या पराया है
उस चेहरे का नूर मगर
मेरे जीवन में आ समाया है"

"अक्स"

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