"तूफान मेरे दिल का अब ठहरता नहीं
पीकर भी तो अब मैं बहकता नहीं
दर्द तो मेरे दिल का भी बिकाऊ है मगर
बाज़ार में तेरे दिल सा खरीददार कोई नहीं"
"रह रह कर जाने क्यूँ याद आता है कोई
दिल में दबे दर्द को बढ़ाता है कोई
उठता है दर्द का स्याह गुबार सीने में
जब भी जाने अंजाने उसका ज़िक्र कर जाता है कोई."
"अपने रुखसार से परदा ना हटने देना
इन जहाँ वालो की नीयत बड़ी मैली है
मैं तो हूँ तन्हा होकर भी भीड़ का हिस्सा
पर तू क्यूँ भीड़ में होकर भी अकेली है"
"तूफान के चलते मेरा मुकाम ना आया
उनके क़िस्सो में कभी मेरा नाम ना आया
अब तक समझते रहे जिस जहाँ को हम अपना
वहीं कभी मेरे हिस्से में दो पल आराम ना आया"
"अक्स"
Thursday, September 18, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment