"ख्वाबो ख्यालो में एक तस्वीर सजी है
क्यूँ मगर अधूरी सी लगती है
है कशमकश रंग कौन सा दूँ उसको
बने वो जो ना अभी तक बनी है"
"कल्पना के शिखर पर बैठा मैं
इसी उधेड़बुन में लगा हूँ
क्यों इस तस्वीर को सजाने में
हर जद्दोजहद से अड़ा हूँ मैं"
"प्यार का रंग गहरा बहुत है
भरते हुए डरता हूँ मैं
एक अजनबी तस्वीर में क्यों
प्यार का रंग भरता हूँ मैं"
"फिर भी प्यार का रंग दूँगा मैं उसे
कुदरत रत एक नज़ारे में जान होगी
ना बन सके शायद मेरी तबस्सुम वो
मगर किसी की वो जाँनिसार होगी"
"अक्स"
Sunday, September 28, 2008
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