"ज्यों शमा करती है इंतज़ार किसी परवाने का,
तू भी आकर देख ले हाल अपने दीवाने का,
दीवानावार भटकता रहता है वो दर बदर,
होश कहाँ रहा उसे अब इस ज़माने का"
"महबूब के नाम का रोज़ पड़ता है कलमा,
उसी की रहगुज़र में सजदा उस मस्ताने का,
यादों में उसकी टूट कर यूँ बिखर गया है,
ज्यों छलकता जाम हो किसी पैमाने का"
"अपने नाज़ ओ अंदाज़ में वो गुम हैं इस कदर,
उन्हे इल्म ही नही किसी दिल के खो जाने का,
उनकी इसी अदा पर हम मर मिटें हैं अक्स ,
वरना दुनिया में कहाँ दम हमे आज़माने का"
"अक्स"
तू भी आकर देख ले हाल अपने दीवाने का,
दीवानावार भटकता रहता है वो दर बदर,
होश कहाँ रहा उसे अब इस ज़माने का"
"महबूब के नाम का रोज़ पड़ता है कलमा,
उसी की रहगुज़र में सजदा उस मस्ताने का,
यादों में उसकी टूट कर यूँ बिखर गया है,
ज्यों छलकता जाम हो किसी पैमाने का"
"अपने नाज़ ओ अंदाज़ में वो गुम हैं इस कदर,
उन्हे इल्म ही नही किसी दिल के खो जाने का,
उनकी इसी अदा पर हम मर मिटें हैं अक्स ,
वरना दुनिया में कहाँ दम हमे आज़माने का"
"अक्स"
1 comment:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (29.01.2016) को "धूप अब खिलने लगी है" (चर्चा अंक-2236)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
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