Thursday, October 1, 2020

गुदड़ी का लाल

"गुदड़ी का लाल था वो, मुगल सराय से आया,

एक कमाल था जो, मर कर भी मर ना पाया,

घर में था सबसे छोटा, नन्हे थे सब बुलाते,

फिर भी बड़ा बना वो, सबका था मान बढ़ाया"


"ली शास्त्री की उपाधि, जब उसने काशी से,

परचम फिर अपने नाम का, जग में फहराया,

मरो नहीं, मारो का नारा, था दिया देश को,

नाकों चने था फिर उसने अंग्रेज़ो को चबवाया"


"मिली जब आज़ादी तो देश हुआ एकजुट,

गुदड़ी के लाल को सबने, सर माथे पर बिठाया,

पैंसठ के युद्ध में जब,  सब होश खो रहे थे,

जय जवान-जय किसान नारे से जोश था जगाया"


"पहुँचा जब ताशकंद, थर थर थे काँपे दुश्मन,

जुड़ा था जमीं से पर, आसमाँ को भी झुकाया,

सारी उम्र रहा वो, एक संघर्ष का मसीहा,

सादा जीवन उच्च विचार को साकार कर दिखाया"


'अक्स' 

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