Tuesday, December 29, 2020

एक राजमार्ग की अभिलाषा

"चाह नही, मैं अपनो के 

दंगो में तोड़ा जाऊं,


चाह नही, आंदोलनो में

लोगो का सिरहाना बन जाऊं,


चाह नही, देखूं मीलों,

बच्चों, बूढ़ों को पैदल चलते,


चाह नही, देखूं मैं दौड़ती,

गाड़ियों को आपस में भिड़ते,


एक तमन्ना है बस,

अच्छे से बनाया जाऊं,


दौड़ें जिस पर गाड़ी सरपट,

लोगों को घर पहुँचा पाऊँ"


'अक्स'

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