Saturday, July 5, 2014

फरेब

"मैं इस कदर उसके वजूद में खोता रहा हूँ,
आसमान को भी अपने अश्को से भिगोता रहा हूँ,
वो उड़ ना जाए मेरे जेहन से किसी सपने की तरह,
अनगिनत रातों को खुली आखों से सोता रहा हूँ"

"अपनो ने भी उसी ज़ख़्म को जी भर कर कुरेदा,
जिसको हमेशा जी जान से मैं सीता रहा हूँ,
बेबसी के इस दौर में है हर शख्स गमजदा,
सज़ा उसके फरेब की मैं भी पाता रहा हूँ"

"क्यूंकर ना जला दूं मैं उसके झूठ का पुलिंदा,
हक़ीक़त हमेशा मान जिसे मैं जीता रहा हूँ,
उसके शबाब पर फिदा है दुनिया तो मुझको क्या,
मैं रुसवाइयां मिला हर जाम में पीता रहा हूँ"

"अक्स"

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