Monday, January 2, 2012

देश का दर्द

"चल जाग मुसाफिर होश में आ,
किस बात से तू यूँ डरता है,
जो देश बनाया तेरे अपनो ने,
उसमे क्यूँ घुट घुट मरता है"

"देख हाल सुनाऊं मैं तुझको,
जो अब तक हम पर बीती है,
एक आग में कब से झुलस रहा,
गंदी यहाँ अब हर एक नीति है"

"कहीं चोरी, सीना ज़ोरी है,
कहीं जेब पे तेरी डाका है,
तू मेहनतकश सबके पेट भरे,
घर फिर भी तेरे फाका है"

"कहीं चोर छुपा है चद्दर में,
कहीं चोर ही खद्दर धारी है,
जिस एक को चुन भेजा लाखो ने,
क्यूँ वो एक ही लाखों पे भारी है"

"प्रतीक है जो देश की गरिमा का,
दंगा उसमे अब यहाँ चलता है,
अपने तो भूख से बिलख, तड़प रहे,
और आतंकी बिरयानी पर पलता है"

"दिन में एक ओर जहाँ जूतम पैजार दिखती है,
फिर रात को भरी मस्ती में कोई भंवरी देवी लुटती है,
छोड़ अनाज को लोग यहाँ अब इंसान को ही खाते हैं,
तोड़ ग़रीबों का छप्पर ताज महल बनवाते हैं"

"नाम पे कोरी भैंसो के चारा कोई इंसान ख़ाता है,
बेच कोई स्पेक्ट्रम को बैंक बैलेंस बढ्वाता है,
इटों रेता के बिना कोई एक पूरा गाँव बनाता है,
कोई खुद के जीते जी ही पत्थर में घढ़वाता है"

"कहीं हाथी कुचले है सबको,
कहीं पंजा मार निशान रहा,
कभी कमल फूल हमे दाबे है,
कहीं कुचल साइकल हमारा संविधान रहा"

"अब जाग ज़रा और बाँध कमर,
अगर देश को फिर से पाना है,
बना हर एक को पाँच पांडव सा,
अगर कौरव को मार भगाना है"

"अक्स"

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