"इजहार-ए-मोहब्बत जो अब हमने किया बशर,
बात निकली भी न थी कि लब थरथरा उठे,
हया की वो लाली उभर आई उन आँखों में,
जिसे देख ले जो एक बार मुर्दा भी जी उठे"
"हम हो गए कुर्बान उस हसीन चेहरे पर,
दिल अपना बस एक पल में हम गवां बैठे,
वो मुस्काई परेशान देख कर मुझको,
हमारे दिल में ख्वाबो के आफ़ताब जल उठे"
"तमन्ना है अब उसको हम-आगोश मैं कर लूँ,
बुझा लूं प्यास नजरो की न फिर ओर जल उठे,
तकाजा जिंदगी का है और खतरा मौत का अक्स,
इधर उसकी उठी डोली, उधर मेरा जनाज़ा उठे"
"अक्स"
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2 comments:
भावपूर्ण रचना |
bhaavnaon ka prastutikaran achha laga.
shubhkamnayen
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