Sunday, November 7, 2010

ज़िंदगी के रूप

"जाने क्या क्या रंग दिखलाती है ज़िंदगी,
पल में गम,पल में खुशी दे जाती है ज़िंदगी,
गुजरती रहती है अविरत बहती सरिता की तरह,
ना एक पल भी ठहराव दिखलाती है ज़िंदगी"

"हर एक पल कटता है यूँ सदियों की तरह,
जब एक पल भी किसी को तड़पाती है ज़िंदगी,
दिन ओर रात आते हैं,गुज़र जाते हैं,
इसी समय धारा में बहती जाती है ज़िंदगी"

"अपनो के साथ जन्नत बन जाती है ज़िंदगी,
वरना तो दोजख से भी भयानक है ज़िंदगी,
लोग प्यार करके जाने क्यूँ साथ छोड़ देते हैं इसका,
प्यार का ही तो दूसरा नाम है ज़िंदगी"

'अक्स"

8 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ज़िंदगी को खूब परिभाषित किया है ...अच्छी रचना

ज़मीर said...

सुन्दर रचना. शुभकामनाएं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 09-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

Anamikaghatak said...

bahut achhi rachana.

Dr Xitija Singh said...

वाह!! बहुत खूबसूरत रचना अतुल जी ....

रचना दीक्षित said...

अच्छा लगा प्यार को और आपको जानना

अनुपमा पाठक said...

हर एक पल कटता है यूँ सदियों की तरह,
जब एक पल भी किसी को तड़पाती है ज़िंदगी
satya hai!!!
dard ke pal mushkil se kat'te hain!
sundar rachna!!!

Dorothy said...

खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.