Tuesday, April 13, 2010

तेरी याद

"आज फिर आँखों में तेरी सूरत उतर आई है,
दिल में बसी थी जो कभी एक याद बनकर,
अब अश्क बहने से मना कर देते हैं आँखों से,
कहीं तू बह ना जाए उनमे एक ओस का मोती बनकर"

"तेरी जुदाई का गम सालता रहता है मुझको,
याद तेरी साँसों में अटक गयी है एक फाँस बनकर,
भूल मेरी है जो मिटा ना सका तुझे अपनी यादों से,
मैं तुझसे अब क्यूँ करूँ कोई शिकवा ओ गिला क्यूंकर"

"ज़िंदगी बह रही है अब हथेली से रेत की तरह,
वक़्त डराता रहता है मुझे एक तूफान बनकर,
अब अपने चाहने वालो से मिलता हूँ मुजाहिर की तरह,
अपनो की इस भीड़ में रह गया हूँ तन्हा बनकर"

"अक्स"

4 comments:

नरेश चन्द्र बोहरा said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने.

अब अश्क बहने से मना कर देते हैं आँखों से,
कहीं तू बह ना जाए उनमे एक ओस का मोती बनकर"

क्या ज़ज्बात दिखाए हैं आपने इस शेर में शानदार अतुलजी; अतुलनीय लिखा है .

Rishikesh azad said...

बहुत खूब !!!!!!

Randhir Singh Suman said...

nice

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब, लाजबाब !