Monday, September 23, 2024

अज्ञान

जब अज्ञान मनुष्य पर छाता है

तब सब शून्य हो जाता है

करता है बस क्षितिज की बातें, 

पर न थाह ज़मीन की पाता है'


अम्बर में डोलता है तन मन,

नित हवा में उड़ता जाता है,

मुट्ठी में करना बंद रेत को,

एक खेल समझ वो पाता है


जब अज्ञान मनुष्य पर छाता है,

तब सब शून्य हो जाता है,


 घिरता है संशय के अंधड़ में,

और गहरा फँसता जाता है 

जाता है भटक वो मंजिल से,

रास्ता भी धुंधला जाता है,


अपनों का साथ करे विचलित,

बस अकेलापन उसे भाता है,

घुटता रहता है बस मन में,

बाहर ना गुबार ला पाता है ,


जब अज्ञान मनुष्य पर छाता है,

तब सब शून्य हो जाता है,


'अक्स'


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