Sunday, June 18, 2023

प्रकृति का रोष

"जब जब धरती थर्राती है,

ये नए जलजले लाती है,

कहीं करे बौछार ये लावा की,

कहीं जलप्रलय बरसाती है"


"जब लावा दहक निकलता है,

बस सबकुछ फूंक ये चलता है,

हर ओर उठे बस धुआं गुबार,

ना किसी के थामे थमता है" 


"ये जलप्रलय जब आती है,

सब कुछ बहा ले जाती है,

जल ही जल विचरण करता है,

जिस ओर नज़र ये जाती है"


"प्रकृति का अपना है नियम,

बिन भूल उसे अपनाती है,

सृजन और सर्वनाश की शक्ति का,

मंजर सबको दिखलाती है "


'अक्स'

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