"कड़कड़ाती ठंड में सड़क किनारे बैठी
वो,
फटी साड़ी से अपने बच्चो को छूपाती
हुई,तेज हवा के तीरो से बचाने की कोशिश करती,
भर बाहों में उन्हे सीने से चिपटाती हुई"
"घनी धुंध में धीरे धीरे से घुलती हुई
सी,
निर्बल शरीर को एक चादर सा बनाती
हुई,मानो अहिल्या इंतज़ार में पड़ी है राम के,
एक जीवित शिला का रूप अपनाती हुई"
"सड़क से आती रोशनी को ताकती पल
पल,
दौड़ते वाहनो के धुएँ से शरीर को
गर्माती हुई,सूनी आँखों में सपने संजोए सुहाने कल के,
रोशनी के इंतज़ार में रात को अपनाती हुई"
"अक्स"
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