"निगाहों में उनकी कुछ सपने झूमते हैं,
ख्यालों में ही बस वो अपनों को चूमते हैं,
क्यूँ हमने उन्हें बस एक बोझ समझ रखा है,
जो सारी उम्र लबो पर हमारे मुस्कान भेजते हैं"
"ये उम्र का तकाजा सबको ही घेरता है,
फिर क्यों हम बस उन्ही के सपनो को तोड़ते हैं,
जो छोड़ते हैं हमारी खातिर अपनी सारी खुशियाँ,
क्यूँ अंत में उन्ही को हम सब छोड़ते हैं"
"जिस मुंह को उन्होंने सिखलाया बात करना,
क्यूँ उसी से हम उनको अपशब्द बोलते हैं,
गैरों की खातिर खोलते दरवाज़े सारे दिल के,
क्यूँ उनके लिए हम एक खिड़की भी न खोलते हैं"
"हमारे लिए सपनो का उम्र भर बनाते घर वो,
क्यूँ उसी घर से हम उनको निकालते हैं "
जिन्होंने हमको पाला बैठा कर पलकों पर अक्स,
उन्ही के बदले हम क्यूँ बस कुत्ते पालते हैं"
"अक्स"
Wednesday, July 20, 2011
Monday, July 11, 2011
पीड़ा
"आज फिर मानवता शर्मसार हुई,
फिर एक बहन-बेटी दागदार हुई,
हवस के दरिंदो ने लूटा उसकी अस्मत को,
आह उसकी ना किसी दिल के पार हुई"
"नोचते रहे वो कुत्ते उसके जिस्म को,
आत्मा भी उनकी खरोंचो से जार-जार हुई,
ना मिला एक लफ़्ज भी उसको सहानुभूति का,
पर कितने ही शब्द बाणो की बौछार हुई"
"दरिंदो के हाथो बस एक बार नंगा जिस्म हुआ,
अपनो के हाथो वो बार बार शर्मसार हुई,
देख घिनौना चेहरा इस दुनिया का अक्स,
दिल में नफ़रत ओर आँखो से आँसू की बौछार हुई"
"अक्स"
फिर एक बहन-बेटी दागदार हुई,
हवस के दरिंदो ने लूटा उसकी अस्मत को,
आह उसकी ना किसी दिल के पार हुई"
"नोचते रहे वो कुत्ते उसके जिस्म को,
आत्मा भी उनकी खरोंचो से जार-जार हुई,
ना मिला एक लफ़्ज भी उसको सहानुभूति का,
पर कितने ही शब्द बाणो की बौछार हुई"
"दरिंदो के हाथो बस एक बार नंगा जिस्म हुआ,
अपनो के हाथो वो बार बार शर्मसार हुई,
देख घिनौना चेहरा इस दुनिया का अक्स,
दिल में नफ़रत ओर आँखो से आँसू की बौछार हुई"
"अक्स"
Wednesday, July 6, 2011
हौंसला
"ज़िंदगी के रंग भी कितने अज़ीब होते हैं,
अपने दूर रहकर भी करीब होते हैं,
उड़ा ले जाती है आँधी बड़े बड़े दरखतो को,
ठहर वो ही पाते हैं जो ज़मीन के करीब होते हैं"
"यूँ तो वार करते रहने से पत्थर भी टूट जाते हैं,
सहन करने का हुनर तो बस इंसान को ही आता है,
अरे सीखना है कुछ तो उन दरखतो से सीखो,
जो अपने कलेजे के टुकड़े भी तुम पर वार जाते हैं"
"खुशी तो कभी गम के रंग देख कर रोते क्यूँ हो,
ज़िंदगी में दिन ऑर रात भी इनके निशान होते हैं.,
मुक़र्रर वक़्त पे मुक़द्दर तेरा चमकेगा अक्स,
हौसलें रखने वालो के ही सपनो के मुकाम होते हैं"
"अक्स"
अपने दूर रहकर भी करीब होते हैं,
उड़ा ले जाती है आँधी बड़े बड़े दरखतो को,
ठहर वो ही पाते हैं जो ज़मीन के करीब होते हैं"
"यूँ तो वार करते रहने से पत्थर भी टूट जाते हैं,
सहन करने का हुनर तो बस इंसान को ही आता है,
अरे सीखना है कुछ तो उन दरखतो से सीखो,
जो अपने कलेजे के टुकड़े भी तुम पर वार जाते हैं"
"खुशी तो कभी गम के रंग देख कर रोते क्यूँ हो,
ज़िंदगी में दिन ऑर रात भी इनके निशान होते हैं.,
मुक़र्रर वक़्त पे मुक़द्दर तेरा चमकेगा अक्स,
हौसलें रखने वालो के ही सपनो के मुकाम होते हैं"
"अक्स"
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