"आज फिर वो मुझको दिखलाई पड़ी,
किसी हड़बड़ी में घर से निकलते हुए,
अनमने ढंग से अपना पर्स संभालती वो,
चेहरे पर उभरती एक शिकन को छुपाते हुए"
"टेढ़ी मेढी गलियों से गुजरती हुई वो,
फटे हुए दुपट्टे से मुँह को ढांपे हुए,
पर्स टटोलती बार बार इधर उधर झाँक कर,
एक झूठी मुस्कान के पीछे मायूसी छुपाते हुए"
"पसीने से तर-बतर होता दुपट्टा उसका,
चिलचिलाते सूरज को आँखें दिखाते हुए,
सड़क को घिसती जाती अपनी टूटी चप्पलों से,
आम लड़की की यही दास्तान है,काम पर जाते हुए"
"अक्स"
Friday, September 2, 2011
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2 comments:
aam ladki ki sachi dastan batai hai aapne
Good one dude..nice literature!
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