"वादी-ए-इश्क में गूंजते थे मेरे नगमे जहाँ,
आज फुरकत-ए-मौशिकी का आलम फैला है,
वो एक दिल जो कभी धड़कता था मेरे लिए,
क्यूँ आज उसमे एक आंसुओं का रेला है"
"तैरती थी जिन आँखों में कभी मोहब्बत मेरी,
क्यूँ बस आज उन पलकों पर पानी फैला है,
मेरा नाम लेकर लरजते थे कभी जो दो लब,
आज उन पर क्यूँ एक गुमनामी का मेला है"
"कुसूर तेरा न मेरा, न किसी का है अक्स,
आज आबो हवा में मोहब्बत का रंग ही मैला है,
टूट कर बिखरने न दूंगा कभी प्यार के धागे,
मेरा प्यार आखिरी तू ही और तू ही पहला है "
"अक्स"
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1 comment:
Good poem
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