Sunday, December 27, 2009

नूर

"वो नूर सा दमकता मासूम चेहरा,
दुनिया की आँखों में चुभता क्यूँ है,
उभरती है जो कोई ख्वाहिश मेरे दिल में,
गम का बादल उन पर ठहरता क्यूँ है"

"वो नागिन सी बलखाती काली काली जुल्फें,
दिल मेरा हमेशा उनमे उलझता क्यूँ है,
झील से गहरी वो नीली नीली आँखें,
शबनम का मोती उनसे टपकता क्यूँ है"

"उन लबो पर लहरती वो एक मुस्कुराहट,
बाबस्ता जिससे सवालों का तूफान क्यूँ है,
नहीं है मेरा कोई भी सरोकार जिनसे,
जाने दिल उन सवालों से परेशान क्यूँ है"

"अक्स"

तन्हाई

"तन्हाई के इस आलम में,
मेरा चाँद भी रूठा रहता है,
मैं रोशनी बाँटता फिरता हूँ,
पर दिल में अंधेरा रहता है"

"मैं सोचता रहता हूँ हर पल,
जाने क्या खोजता रहता हूँ,
मेरे इस दीवाने पन पर,
जहाँ ये हंसता रहता है"

"सब मुझको पत्थर मरते हैं,
मैं हंसकर सहता रहता हूँ,
जाने क्यूँ हर एक पत्थर में,
मुझे दर्द वो अपना दिखता है"

"जीवन की इस आपाधापी में,
मैं सब कुछ भूलता फिरता हूँ,
फिर भी ना जाने क्यूँ दिल में,
एक दर्द उमड़ता रहता है"

"अक्स"

नसीब

"चुपके से दिल में हुई किसी की दस्तक,
लबो पे बस उसी का नाम आया,
आँखों में बस गयी वो सूरत उसकी,
उसकी एक मुस्कान ने मेरा चैन चुराया"

"यूँ लहराया उसका पल्लू ज़रा हौले से,
ज्यूँ मंद बयार में कोई कपोल लहराया,
उसकी सांसो से उठती मंद मंद खुशबू से,
मुझे लगा मैने वो सूक्ष्म कल्पत्रु पाया"

"ज़िंदगी मेरी खुशियों से भर दी उसने,
मुझे गम के अंधेरो से परे हटाया,
मेरी हर धड़कन में बाज उठा संगीत कोई,
अपने हर कदम पर मैने उसे साथ पाया"

"अक्स"

पत्ते

"पेड़ से गिरे पत्तो को देखकर,
सोचता हूँ इनका कसूर क्या है,
आते हैं संग खुशियों के पल लेकर,
आँगन सबका ये हरियाते हैं"

"खिलखिलाते हैं पेड़ पर बच्चों की तरह,
मन हर पल सबका हर्षाते हैं,
दुख की धूप हो या छाँव सुख की,
गले मिल यूँ सब संग बिताते हैं"

"खुद सहकर ये धूप गमो की,
ममतामयी छाँव सब पर बरसाते हैं,
फिर एक दिन तोड़ ये नाता सबसे,
किसी गुमनामी में खो जाते हैं"

"हाल अपना भी है इन पत्तो की तरह,
हो अपना या पराया सबको गले लगाते हैं,
पर जाने हमसे क्या खता हुई ज़िंदगी में,
सब हमे अकेला कर रुखसत हो जाते हैं"

"अक्स"

ओस

"ये मखमली ओस की पत्तो पर फिसलती बूँदें,
मेरे मन को यूँ हर्षा ऑर बहला रही हैं,
ज्यूँ हड़बड़ा के उठा हो कच्ची नींद से नौनिहाल कोई,
मां उसे प्यार से दुलार पुचकार रही है"

"रवि की किरणो से जगमगाती जगमग ये,
जल ऑर तल में खेल रही हैं,
ये फिसलतीं यें कभी उधर फिसलतीं ,
मानो खेल कोई खेल रही हैं"

"मदमस्त हवा से करतीं यूँ अठखेली,
मानो हो कोई नार नवेली,
संग पिया के कर रही चुहल जो,
ऑर मस्ती से सराबोर हो रही है"

"दूर तलक़ जहाँ निगाह है जाती,
मोटी माणिक सी फैल गयी हैं,
जग बन गया है जन्नत इनसे,
हर ऑर रोशनी फैल रही है"

"अक्स"