"ये मखमली ओस की पत्तो पर फिसलती बूँदें,
मेरे मन को यूँ हर्षा ऑर बहला रही हैं,
ज्यूँ हड़बड़ा के उठा हो कच्ची नींद से नौनिहाल कोई,
मां उसे प्यार से दुलार पुचकार रही है"
"रवि की किरणो से जगमगाती जगमग ये,
जल ऑर तल में खेल रही हैं,
ये फिसलतीं यें कभी उधर फिसलतीं ,
मानो खेल कोई खेल रही हैं"
"मदमस्त हवा से करतीं यूँ अठखेली,
मानो हो कोई नार नवेली,
संग पिया के कर रही चुहल जो,
ऑर मस्ती से सराबोर हो रही है"
"दूर तलक़ जहाँ निगाह है जाती,
मोटी माणिक सी फैल गयी हैं,
जग बन गया है जन्नत इनसे,
हर ऑर रोशनी फैल रही है"
"अक्स"
Sunday, December 27, 2009
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