Wednesday, December 5, 2012

वास्तविकता


"सर्दी की गुनगुनी धूप में बदन सेंकते हुए,
ओस से भीगी मिट्टी की खुशबू में मदमस्त,
पत्तियों की ओट से झाँकती कलियों को चिड़ाता,
फूलों पर मंडराते तितलियों के झुंड को बिखराते हुए"

"विदेशी कुत्तों को घुमाते हुए लोगो को ताकता,
कुत्तो के पहने मँहगे कपड़े देख आँखें फाड़ता,
अपने नंगे बदन पर बार बार हाथ फिराते हुए,
किसी के अधूरे छोड़े बिस्किट को तलाशता"

"वापस लौट उसी गंदे नाले के बगल में,
कूड़े के ढेर पर बनी टूटी झोपड़ी के पीछे,
कूड़े और नाले की गंध को अपने में बसाते हुए,     
अमीर के कूड़े में ग़रीब भारत अपना भविष्य तलाशता"

"अक्स"



3 comments:

Padam said...

very nice AKS

Unknown said...

very very nice kavita.

Unknown said...

very very nice kavita.