"होकर नाउम्मीद, वो यूं रोया होगा,
ख़ुश्क अश्कों में, खुद को डुबोया होगा,
तासीर उस ताबिश की, होगी जाने क्या,
इल्मे अंजाम में, ख़ुदी को गंवाया होगा"
" ख़ुत्बा करने वाले से, तौबा की होगी,
इब्तिसाम को, क़ल्बे कानून बनाया होगा,
आमद में अज़ीज़ों की, बिछाये जो अब्सार,
पर अफसोस, अन्जुमन में कोई न आया होगा"
"आब ए तल्ख, कर लिए होंगे जज्ब उसने,
जब अभी अब्ना ने उसे ठुकराया होगा,
अल्फ़ाज़ बिखर गए होंगे, यूँही टूट कर,
आदिल को जग, जहन्नुम नज़र आया होगा"
"नाचार, नाताक़त, उसे समझा है सभी ने
तारीक को उसने, तबस्सुम से मिटाया होगा,
नादिम रहा उम्र भर , वो नबी के ख्याल में,
नुमाइश उसे जग में, कभी करना न आया होगा"
'अक्स'