Thursday, November 22, 2012

मेरा खोया गाँव


"कहाँ है सुबह की वो ठंडी ठंडी बयार,
छाँव देते पेड़ो पर वो पक्षियों की पुकार,
वो धूल भरा दगडा, निकलती जिसमे बुग्गी,
लहलहाती फसल देख हर्षित होता किसान"

"चौपाल पर होता वो मस्ती और हुल्लड़,
गूँजती वो रस भरे लोक गीतो की झंकार,
वो पौं फटे निकली गायों का रंभाना,
काँधे पे हल उठाये गुनगुनाते किसान"

जलते अलाव में भूनते चने, मूँगफली  बच्चे,
दादा की वो मीठी झिड़की और दादी का प्यार,
शादी के शामियानों में कूद फाँद करता बचपन,
शहनाई की मीठी धुन पर वो गीतो की तान"

"वो शाम ढले चलता गौधूलि का अंधड़,
पोखर में नहाते, मछली पकड़ते जवान,
आँखें तरस गयी हैं पाने को झलक इसकी,
पत्थर के जंगल में हरियाली  ढूंढता नादान"

"अक्स"

Wednesday, November 7, 2012

दुर्दशा

"कड़कड़ाती ठंड में सड़क किनारे बैठी वो,
फटी साड़ी से अपने बच्चो को छूपाती हुई,
तेज हवा के तीरो से बचाने की कोशिश करती,
भर बाहों में उन्हे सीने से चिपटाती हुई"

"घनी धुंध में धीरे धीरे से घुलती हुई सी,
निर्बल शरीर को एक चादर सा बनाती हुई,
मानो अहिल्या इंतज़ार में पड़ी है राम के,
एक जीवित शिला का रूप अपनाती हुई"

"सड़क से आती रोशनी को ताकती पल पल,
दौड़ते वाहनो के धुएँ से शरीर को गर्माती हुई,
सूनी आँखों में सपने संजोए सुहाने कल के,
रोशनी के इंतज़ार में रात को अपनाती हुई"

"अक्स"