Friday, October 28, 2011

आज का आदमी

"चारो तरफ हो रहा ये कैसा अत्याचार है,
आदमी ही आदमी को खाने को तैयार है,
पैसे कि वो भूख उसकी बढ़ रही दिन ब दिन,
पैसे के लिए कुछ भी वो करने को तैयार है"

"भाई का गला काट, बाप को भौंका छुरा,
माँ के दूध को उसी के खून में दिया मिला,
हंसते खेलते घर को जला के खाक कर दिया,
जान बूझ कर ये खुद का ही कर रहा संहार है"

"जानवर को पाल कर खुद आदमख़ोर बन रहा,
जानवर खुद आज आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है,
माँग सूनी हो रही कहीं लाल माँ के लुट रहे,
कुचला हुआ समाज डर से कर रहा चीत्कार है"

"चारो तरफ हो रहा ये कैसा अत्याचार है,
आदमी ही आदमी को खाने को तैयार है"

"अक्स"

Monday, October 17, 2011

राजनीति

"किसी ने मुझसे पूछा राजनीति क्या है,
मैने कहा बंधुवर, राजनीति एक अजब बुखार है,
जिसको चढ़ जाए उसका तो समझो बेड़ा पार है,
हो जाए मगर जो ओवर डोज तो फिर बँटा धार है"

"राजनीति वो मैली सी बहती हुई गंगा है,
जिसमे हर एक कभी ना कभी हुआ नंगा है,
अपने नंगे पन को छिपाने की नाकाम कोशिश में,
दूसरे की अधखुली धोती को फाड़ने का पलटवार है'

"राजनीति एक डुगडुगी वाला खिलौना है,
चाहे किसी के हाथ हो, आम जनता को बस रोना है,
आटा,दाळ,चीनी सब चढ़ते जा रहे इसकी भेंट,
लगता है ये सुरसा का एक कलयुगी अवतार है"

"राजनीति चोरों और नेताओं के लिए संजीवनी है,
इसके सहारे इनको बस अपनी जमात ही जीमनी है,
जिसके बल पर हर एक की जेब हो रही भारी,
राजनीति इनका वो ही अचूक हथियार है"

"मगर मेरे दोस्त मुझे बस इस बात का दुख है,
क्यूँ मेरा देश इस रोग का शिकार है,
क्यूँ मेरा देश इस रोग का एक शिकार है"

"अक्स"

Thursday, October 13, 2011

माँ

"हिम सी शीतलता लिए,
तेज सूरज सा धरे,
उसके आँचल के समक्ष,
ब्रहमांड भी छोटा पड़े"

"है दुर्गा का एक रूप वो,
और गंगा से भी कोमल है,
उसके चरणो के तले,
हर दीप ज्ञान का जले"

"कर सकती है उत्पत्ति वो,
तो नाश की भी शक्ति धरे,
वात्सल्य की है एक ख़ान वो,
दूध में जिसके अमृत बहे"

"सब देवों में है उच्च वो,
चाहे जहाँ ओर जो रूप धरे,
सत सत नमन है तुझको माँ
कितना ओर मैं तेरा गुणगान करूँ"

"बस एक तेरी वंदना के लिए ,
आज तक कोई शब्द नही बने"

"अक्स"