"ज़रा मिलकर तुम उनकी ये गफलत दूर कर देना,
मेरी खामोशियों को जो,मेरी कमज़ोरी समझते हैं,
तमन्ना हम भी रखते हैं वफ़ा में जान देने की,
ना जाने क्यूँ कर वो हम को,बेगाना समझते हैं,
"दरारें दिल में पड़ती हैं,जिस्म छलनी सा होता है,
हमारे सामने जब इश्क़ की कोई मय्यत निकलती है,
सभी के दिल में बसने की एक हम ही में कुव्वत है,
इस शहर में ना जाने क्यूँ सभी पत्थर दिल निकलते हैं"
"मचलते दरियाँ से हम हैं,यूँ ही लौटा नही करते,
मगर उस चौखट से हम भी ज़रा बचकर निकलते हैं,
अकड़ कर कोई भी हमसे,कभी हमे झुका नही सकता,
मगर बस प्यार के बदले हम राहों में बिछ पड़ते हैं"
"अक्स"
Friday, September 30, 2011
Friday, September 2, 2011
"आम लड़की"
"आज फिर वो मुझको दिखलाई पड़ी,
किसी हड़बड़ी में घर से निकलते हुए,
अनमने ढंग से अपना पर्स संभालती वो,
चेहरे पर उभरती एक शिकन को छुपाते हुए"
"टेढ़ी मेढी गलियों से गुजरती हुई वो,
फटे हुए दुपट्टे से मुँह को ढांपे हुए,
पर्स टटोलती बार बार इधर उधर झाँक कर,
एक झूठी मुस्कान के पीछे मायूसी छुपाते हुए"
"पसीने से तर-बतर होता दुपट्टा उसका,
चिलचिलाते सूरज को आँखें दिखाते हुए,
सड़क को घिसती जाती अपनी टूटी चप्पलों से,
आम लड़की की यही दास्तान है,काम पर जाते हुए"
"अक्स"
किसी हड़बड़ी में घर से निकलते हुए,
अनमने ढंग से अपना पर्स संभालती वो,
चेहरे पर उभरती एक शिकन को छुपाते हुए"
"टेढ़ी मेढी गलियों से गुजरती हुई वो,
फटे हुए दुपट्टे से मुँह को ढांपे हुए,
पर्स टटोलती बार बार इधर उधर झाँक कर,
एक झूठी मुस्कान के पीछे मायूसी छुपाते हुए"
"पसीने से तर-बतर होता दुपट्टा उसका,
चिलचिलाते सूरज को आँखें दिखाते हुए,
सड़क को घिसती जाती अपनी टूटी चप्पलों से,
आम लड़की की यही दास्तान है,काम पर जाते हुए"
"अक्स"
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