"आज कल प्रेम की नयी परिभाषा आई है,
लड़के को लड़के से होने लगी अशनाई है,
प्रकृति के नियम रख दिए गये हैं ताक पर,
इंसान ने ये कैसी तरक्की पाई है"
"जाने कैसा फितूर उठ पड़ा है इनके दिमाग़ में,
लड़का होकर क्यूँ लड़की सी वेशभूषा बनाई है,
खुद को कहते फिरते हैं समलिंगी (गे) ये सब,
ऐसा लगता है शिखण्डी को राधा बनने की सुध आई है"
"खुल्लम खुल्ला कर रहे व्यभिचार अब ये,
जाने कहाँ से उभरी इनमे ये बेहयाई है,
प्रेम ओर शरीर की भूख के बीच का फ़र्क ही मिटा दिया,
ये समलैंगिकता जाने कहाँ से समाज को डसने आई है"
"अक्स"
Tuesday, August 30, 2011
Friday, August 5, 2011
इंसान
"कतरा कतरा जमा होकर ही समंदर बनता है,
गहराती जाती है हवा, तो बवंडर बनता है,
अपनी असफलताओ से इतना ना निराश हो,
गिर जाने के बाद ही तो इंसान संभलता है"
"लाख मुश्किलें पल पल उसके रास्ते में आती हैं,
वो फिर भी ना अपने पथ से एक कदम डिगता है,
समय का पहिया घूमता रहता है अविरत हरपल,
पर वो भी इंसान के दृढ़ निश्चय से डरता है"
"अगर चाहे तो क्या नही कर सकता इंसान,
जिसकी हिम्मत के आगे हिमालय भी झुकता है,
ठान के मन में, तान के सीना अक्स,
वही जीता है जो, बेखौफ़ बढ़ता है”
गहराती जाती है हवा, तो बवंडर बनता है,
अपनी असफलताओ से इतना ना निराश हो,
गिर जाने के बाद ही तो इंसान संभलता है"
"लाख मुश्किलें पल पल उसके रास्ते में आती हैं,
वो फिर भी ना अपने पथ से एक कदम डिगता है,
समय का पहिया घूमता रहता है अविरत हरपल,
पर वो भी इंसान के दृढ़ निश्चय से डरता है"
"अगर चाहे तो क्या नही कर सकता इंसान,
जिसकी हिम्मत के आगे हिमालय भी झुकता है,
ठान के मन में, तान के सीना अक्स,
वही जीता है जो, बेखौफ़ बढ़ता है”
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