"उन आँखों में फैली एक गहरी उदासी,
आज उस घनी झील में एक तूफ़ान सा है,
जिनमे बहते थे हम कभी मस्ती से भरे,
उन्ही लहरों पे फैला आज कोई जाल सा है"
"कभी मस्ती छलकाते वो दो रस के प्याले,
मय के लिए जिनकी आज रिंद तरसता सा है,
क्यूँ गुम गए हैं यूँ ही एक स्याह अँधेरे में,
सागर में जिनकी बेबसी के सूरज भी जुगनू सा है"
"खेला करते थे जहाँ सपने उस एक जहाँ में,
वो आज गम के अंधेरो से वीरान सा है,
तमन्ना है अक्स मेरी अंतिम फिर वहां सहर की,
पर मेरा निगेहबान तो मुझसे भी रूठा सा है"
Tuesday, June 29, 2010
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