Sunday, January 17, 2010

दुविधा

"जाने किस ख़याल में मैं खोया रहा,
जाग गयी दुनिया मगर मैं यूँ ही सोया रहा,
छोड़ कर मुझको अकेला आगे बढ़ गये सारे,
मैं बस गम के अंधेरो में ही खोया रहा"

"जाग कर दौड़ा तो पंहुचा दुनिया की इस दौड़ में,
उन्नति ऑर अवनति के फेर में पड़ता रहा,
सपने सारे टूट कर रह गये जाने कहाँ,
माया का भ्रम बस मेरी आँखों पर छाया रहा"

"थक कर पूछा हारकर दिल ने मेरे यूँ एक दिन,
क्या तेरा है रास्ता जाना कहाँ है ये बता,
निकला ना एक बोल भी मुँह से मेरे तब ए अक्स
खड़ा रहा मैं बस यूँ ही ऑर रास्ता तकता रहा"

"अक्स"

इंतहा

"जाने क्या ढूंढता हूँ ज़िंदगी की राहो में,
सब कुछ तो खो गया है मेरा यहाँ,
जलता रहा हर पल तन्हाई की आग में,
ना एक पल भी साथ मिल पाया किसी का"

"यूँ तो वादेवफा मिलते रहे हर मोड़ पर,
भरते रहे सभी दम हर पल वफ़ाई का,
चार पल भी ना साथ चल पाया कोई रहगुज़र,
ऑर हम पर लगता रहा इल्ज़ाम बेवफ़ाई का"

"बहता रहा खून ए जिगर बनकर अश्क मेरा यूँही,
जख्म गहरे हो गये दिल के मेरे इस हाल से,
भूल जा बातें सभी ऑर वायदे उस यार के,
बस हो गयी अब इंतहा ए अक्स तेरे इंतज़ार की"

"अक्स"