Wednesday, November 26, 2008

बचपन

"जीवन की इस आपा धापी में
मेरा बचपन कहीं खो गया है
ना जाने क्या क्या सॅंजो रखा था मैने
जो मेरा होकर भी कहीं छुट गया है"

"वो बचपन की बातें, वो सारी बरसातें
वो यारो का मिलना , मिलकर झगड़ना
वो गाँव की गलियाँ, गाँव के मेले
ना जाने कहाँ हैं उन्हे ढूंढता हूँ"

"वो बापू की डाटें, वो माँ का दुलार
भाई का स्नेह, बहन की राखी का प्यार
जीवन का मेरे जो था एक सहारा
ना जाने क्यूँ मुझसे छीना गया है"

"नहीं बचा कुछ भी अब इस जीवन में
जो लगे मुझे अपना, जो लगे प्यारा सा
फिर ढूंढता हूँ वही अपना बचपन
लुटा के अपना ये मैं जीवन सारा"

"अक्स"

Wednesday, November 12, 2008

बरसात की रात

"बात है एक रात की
हो रही बरसात थी
जा रहा था मैं भीगते -२
संग किसी की याद थी"

"भीगते-२ पहुँचा मैं किसी मोड पर
नहीं आ रहा था नज़र कोई रोड पर
मुझे लगा मैं खो गया हूँ
चल रहे हैं कदम, मैं सो गया हूँ"

"तभी दी किसी ने आवाज मुझे
कहाँ जा रहा है यूँ भीगते हुए
देखा चौंककर, नहीं आया कोई नज़र
अब तो लगने लगा मुझे अंधेरे से डर"

" तभी आया ये ख्याल मुझे कि
थी आवाज ये मेरे मन की
जिसमें भरी है उमंग मेरे जीवन की
यही सोचते-२ मैं रात भर चलता रहा
कि बरसात कि रात में क्या रात भर मैं करता रहा
बरसात कि रात में क्या रात भर मैं करता रहा

"
अक्स"

पतझड़

"आज फिर पतझड़ का मौसम आया है
बनकर बेकरारी सबके दिलों पर छाया है
बेकरार-ओ-बेबस हैं सब इस पतझड़ में
इसने सभी का चैन चुराया है
आज फिर पतझड़ का मौसम आया है"

"पतझड़ में पत्ते साख से बिछड़ जाते हैं
अजनबी की तरह न कभी वापस आते हैं
कहाँ जाते हैं नहीं जानता कोई
बस दिलों में अपनी यादें छोड़ जाते हैं"

"कहते हैं लोग पतझड़ बीत जाएगा
कभी न कभी बसंत भी आएगा
पर जो बिछड़ गए हैं इस पतझड़ में हमसे
कोई बताये उन्हें कौन वापस लायेगा"

"इस दिल से निकलती है दुआ ऐ-रब
ऐसा पतझड़ न किसी के जीवन में आए
न बिछ्ड़ें उससे कभी उसके अपने
वो न एक साख से टूट पत्ता बन जाए"

"अक्स"

नन्ही खुशी " मेरी प्यारी-२ भतीजी इतिश्का"

"आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है
बनकर मुस्कान सबके लबो पर छाई है
देखते हैं सब प्यार से बार बार उसे
जो बनकर हमारे लिए एक तोहफा आई है
आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"

"बसी है उसी में जान हम सबकी
लगती है वो एक नन्ही परी सी
देखता है उसे कोई जब भी , कहीं भी
कहता है हमने कुदरत की मेहरबानी पाई है
आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"

"मैं उसे देख कर फूला नहीं समता हूँ
सारे जहाँ की खुशियाँ संग उसी के पाता हूँ
बनकर एक आफ़ताब उसने रौशनी फैलाई है
आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"

"अक्स"

Monday, November 10, 2008

वो

"दर्दे दिल बयान करूँ भी तो कैसे
यहाँ दिल की सदा कोई सुनता नहीं
दामन में मेरे ही बस उलझे हैं काँटे
कोई उनको यहाँ क्यूँ चुनता नहीं"

"वो जो अगर आज हमारी होती,
आरजू मेरी ना यूँ कुँवारी होती,
दिल की खलवतो में बसती वो,
मेरी दुनिया में ना वीरानी होती "

"जिंदगी में कुछ मुकाम ऐसे भी आते हैं
जब नहीं मिलती राही को मंजिल उसकी
भटकता रहता है वो दर बदर साहिल
उसके अपने भी साथ छोड़ जाते हैं"

"जला कर घर मेरा उन्हें क्या मिला साहिल
हमसे कहते तो हम उनका दर्द भी अपना लेते !"


"
कुछ यों मौसम--हाल बना रक्खा है मैने
दिल में तेरी जुदाई का गम पाल रक्खा है मैने
ना जाने तू क्यूँ नाखुदा हो गया साहिल
फिर भी तुझी को खुदा मान रक्खा है मैने"

"अक्स"

Wednesday, November 5, 2008

वो अकेली लड़की

"देखी मैंने एक दिन एक लड़की
थी थोडी घबराई थोडी झेंपी सी
जाने किसका था इंतज़ार उसको
देखती थी वो बार बार घड़ी"

"देखा गौर से तो लगी थोडी परेशान सी
उसे न था किसी से मतलब कोई
सड़क भी थी लगी होने सुनसान सी"

"धीरे धीरे समय बीतता रहा
वो खड़ी रही सबसे अनजान सी
अंत में बस हम दोनों थे खड़े वहाँ
लगा वो होने लगी गुमनाम सी"

"वो चलने लगी सड़क के एक ओर को
अंधेरे की ओढ़कर चादर वीरान सी
मैं रहा देखता उसे बस रहा सोचता
वो कौन थी अकेली लड़की
वो कौन थी अकेली लड़की "

"अक्स"

सफर

"निकला हूँ एक अनजाने सफर पर
न मालूम जाना कहाँ, जाना किधर,
बस चला हूँ नापते हुए डगर
मन में है शंका फिर भी मगर
की क्या है ये ज़िंदगी का सफर"

"जिसे करते हैं लोग पर हैं बेखबर
इतने बेखबर कभी न जान पाये
कब मौत ने लिया आकर उनको धर
मैं सोचने को हूँ मजबूर साहिल
कैसा सफर है ये ज़िंदगी का सफर"

"जहाँ पल में लोग मिलते हैं, बिछड़ते हैं
यादें बनकर कर जाते हैं दिल में घर
ये कैसा सफर,न मालूम जाना कहाँ जाना किधर
लगता है नहीं कोई सरहद-ऐ-सफर
फिर भी चला जा रहा हूँ अनजानी डगर"

"न जाने साहिल कहाँ जाए ये डगर
फिर भी चल रहा है सफर
मन में है बस यही बात मगर
ज़िंदगी का सफर , ये कैसा सफर"

"अक्स"

जिंदगी

"ये जो है ज़िंदगी बस एक नाम है
बाकी सब इसमे नीरस, बेनाम है
न कोई इसे समझ पाया था,न कोई इसे समझ पाया है
ये तो चाँद सितारों से भी परे की बात है
ये जो है ज़िंदगी बस एक नाम है"

"कुछ लोग ज़माने में ऐसे भी होते हैं
पाकर ज़िंदगी बहुत खुश होते हैं
मगर नादान न समझकर इसका मोल
इसे यूँ ही मयकदों में खोते हैं
आती है जब मौत मिलने गले
तब है ज़िंदगी, है जिंदगी रोते हैं"

"इसलिए कहता हूँ साहिल
न कर जिंदगी से प्यार इतना
पड़े पछताना देख कर झूठा सपना
ये जिंदगी बस एक हसीं ख्वाब है
शायद इसलिए ही जिंदगी इसका नाम है"

"अक्स"

Tuesday, November 4, 2008

कौन ?

"सोचता हूँ मैं कभी-कभी
वो कौन है, और क्या है
जो छुप छुप कर आता है
सबको दिन रात तड़पाता है"

"जीवन में हंसाता है, रुलाता है
जीवन का हिस्सा बन जाता है
फिर भी नहीं कोई पहचान पाता है
कौन है वो और क्या है"

"जो हमारे मन को बहलाता है
जाएँ कभी हम जीवन में फिसल
हाथ बढाकर हमें उठाता है
कभी गम, कभी खुशियाँ दे जाता है
वो कौन है, क्या है कोई नहीं जान पाता है"

"अक्स"

मौत

"इस जिन्दगी का क्या भरोसा
क्या करिए इसका ऐतबार
है ये एक बेवफा प्रेमिका
जो लूट ले जाए करार"

"मौत है सच्ची दोस्त अपनी
अपने साथ ले कर जाती है
ये न कभी जिंदगी की तरह
पल-पल हमें तडपाती है "

"हम खाए बैठे हैं जिंदगी से खार यारो
ये जिंदगी न अब हमें भाती है
अब तो बस इंतज़ार है हमें मौत का
जाने कब गले मिलने आती है "

"अक्स"

कागज़ की किश्ती

"कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा
बारिश का पानी है इसका अँधेरा
उतरती है, डूबती है ये किश्ती मेरी
ढूँढने पर भी नहीं मिलता किनारा
कब उतरेगी जाने ये किश्ती मेरी
है मुझे तूफ़ान का भय सारा
कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा
बारिश का पानी है इसका अँधेरा"

"जाती हैं जहाँ तक नज़रें ये मेरी
आता है नज़र बस अश्को का मेला
नहीं रोक सकता मैं अश्क किसी के
मुझको भी है इन अश्को ने घेरा
किश्ती मेरी लहराती है इन पर
नहीं इसमें कोई दोष ऐ मांझी तेरा
कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा
बारिश का पानी है इसका अँधेरा"

"अक्स"

चिराग

"जीवन मेरा एक जलता चिराग है
दामन में जिसके केवल आग है
रोशन है जहाँ सभी का इससे
सभी केवल इसके कर्ज़दार हैं
जलने की नहीं ख्वाहिश इसकी
फिर भी जलने को बेकरार है
जीवन मेरा एक जलता चिराग है
दामन में जिसके केवल आग है"

"पहलू में इसके नहीं कोई आता
जलने का डर है सबको सताता
दूर से लेते हैं सभी तपिश इसकी
नहीं गले से इसे कोई लगाता
फिर भी जलना इसका काम है
जीवन मेरा एक जलता चिराग है
दामन में जिसके केवल आग है"

"अक्स"

Sunday, November 2, 2008

करुण

एक दिन चला मैं किसी डगर पर
रुके पग मेरे सुनकर कुछ करूँ स्वर
चला उधर मैं सुन ये कोलाहल
देखा किए थे शोक कुछ जन एक मृत पर
बिलख २ कर रो रही थी माता उसकी
थाम कलाई बहन पड़ी थी बेसुध उसकी
नहीं थम रहे थे आंसू उसके तात के
बिछ्ङ गया हो जैसे कोई पात डाल से
नाम ले ले कर पुकार रहे थे भाई उसके
कर रहे करुण पुकार पितामह भी उसके
दो पग चलने पर ही डोला था उनका तन
देख जनों का हाल सिहर गया मेरा मन
लेके चले जब चार जन उस मृत को
पुकार उठी माँ "मत ले जाओ लाल मेरे को"
सोया है गहरी नींद में अभी जाग उठेगा
उठकर सबसे पहले मेरे गले लगेगा
पुकारती रह गई यही बस माता उसकी
चला गया वो बस बन गया मिटटी

"अक्स"

Saturday, November 1, 2008

उलझनें

" जीवन की ये उलझनें है कैसी
न जिसे मैं सुलझा पाता हूँ
कोशिश में इसे सुलझाने की
मैं ख़ुद ही उलझ जाता हूँ
जीवन की ये उलझनें है कैसी
जिसे मैं सुलझा पाता हूँ"

"फंसकर रह गया हूँ मैं इनमें
न कभी इनसे निकल पाता हूँ
चाहता हूँ मैं बचना इनसे
सामने इनके मैं असहाय हो जाता हूँ
जीवन की इन उलझनों की खातिर
मैं ख़ुद को मिटाने पर आमादा हूँ"

"बनकर रह गया हूँ मैं कैदी इनका
न इनसे कभी मैं बच पाता हूँ
जीवन के हर मोड़ पर साहिल
इन उलझनों को खड़ा पाता हूँ
जीवन की ये उलझनें है कैसी
जिसे मैं सुलझा पाता हूँ"


"अक्स"

प्यार की मंजिल

"कहता है ये दिल बार-बार
बस एक बार हो उसका दीदार
वही है अब बस मंजिल मेरी
वही है मेरे जीवन का उपहार"

" है वो एक चाँद का टुकडा
नहीं मगर जिसमें कोई दाग
चाहता हूँ मैं पाना उसको
मगर नहीं दुनिया को स्वीकार"

"चाहता हूँ देना खुशियाँ उसको
सहकर ख़ुद मैं कष्ट हजार
जीवन है वो बन गई मेरा
वही है मेरे दिल का करार"

"उसका प्यार है मंजिल मेरी
चाहता हूँ उसे पाना बार-बार
कहता है अब हार पल यही दिल
बस एक बार हो उसका दीदार
बस एक बार हो उसका दीदार"

"अक्स"