Thursday, October 30, 2008

कोमल पंखुडियां

"फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां,
लगती हैं संकुचाई सी, सर्माई सी,
ज्यों छिपा लिया हो बच्चो को माँ ने आँचल में,
फिर भी है थोडी लजाई,थोडी घबराई सी,
कितनी सुंदर लगती हैं ये कोमल पंखुडियां,
जैसे हो कोई नवेली दुल्हन सकुंचाई सी,
छूने में इनको लगता है ये डर मुझको,
हो न जाए कोई मुरझाई सी, कुम्लहाई सी,
फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां,
लगती हैं संकुचाई सी, सर्माई सी"

"अक्स"

विभावरी

"बीती विभावरी जाग री
फूलों पर भवरें मंडराएं
पेड़ों पर बोल रही कागरी"

"डालों पर पंछी हैं बोले
नन्हे मुन्नों ने भी हैं पर खोले
महक रहा सारा बाग़ री
बीती विभावरी जाग री "

"खग मृग सब दौड़ रहे
पीछे सबको वो छोड़ रहे
तू खड़ी क्यूँ चुप चाप री"

"यहाँ वहां पुष्प खिले हैं
खुशबू से सब महक रहें हैं
कल-कल करती बहे सरिता
आन्नद से मैं हो रही बावरी
बीती विभावरी जाग री"

"अक्स"

नया सवेरा

"बीत गई गोधूली बेला,
लगे प्रात: ये नया नवेला,
आन मिला है नया सवेरा,
सुंदर कितना प्यारा प्यारा,
बीत गई वो भोर सुहानी,
लगती है अब एक कहानी "

"नया साल है आया देखो,
संग लाया है खुशियाँ देखो,
बने मुबारक साल तुम्हे ये,
मिले खुशियाँ तुम्हे अपार,
न हो दुःख की छाया तुम पर,
बरसे सबका प्यार ही प्यार"

"अक्स"

कुछ पल!!

"जीवन के कुछ पल चिन्ह
दिल में संजो रहा हूँ
समेत कर उनको मैं
एक सूत्र में पिरो रहा हूँ

"कुछ पल, कुछ यादें
कुछ क्षण, कुछ बातें
संजोई हैं जो मैंने
उनको सजा रहा हूँ"

"पाया है जो भी मैंने
इस जीवन में आकर
उस पर इतरा रहा हूँ"

"जो कुछ नहीं था मेरा
खोने का उसको गम क्या
पाने को फिर भी उसको
मैं मन बना रहा हूँ"


"ये जिंदगी मेरी हमेशा
देती रही मुझको धोखे
फिर भी मैं जिंदगी को
खुशी से जी रहा हूँ "

"जीवन के कुछ पल चिन्ह
दिल में संजो रहा हूँ !"

"अक्स"

Friday, October 3, 2008

बूँद

"बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं जल थल में
आकर नील गगन से ये
समां रही एक जल में
शांत स्वर से गिरी धारा पर
मिट गई एक ही पल में
बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं इस थल में"

"छोड़ तात का रैन बसेरा
निकली एक अनजानी धुन में
जाने क्या है अभिलाषा इनकी
निकल पड़ी एक ही पग में
करने चली शांत धरा को
मिटकर ख़ुद ही इस जग में
बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं जल थल में"


"अक्स"

राज

"वो पहली किरण पे उसका मुस्कुराना
हलकी सी छुअन से सिमट कर छुप जाना
वो खुशबू के झोंके से मुझको बुलाना
बुलाकर मगर फिर उसका छुप जाना "

"शर्मो हया है उसकी या कुछ और
मुझे देखकर यूँ पल्लू गिराना
इशारो से ही बातें बनाकर
यूँ उसका मुझे बेकरार बनाना"

"तकल्लुफ भरी है ये जिंदगी उसकी
क्यूँ है एक छुअन से यूँ सिकुड़ जाना
फिर अगली किरण का स्पर्श पाकर
किसी ओर पर फिर से खिलखिलाना "


"अक्स"

वो दिन

"मैं क्यूँ याद रखूँ वो दिन
जो हमने कभी साथ बिताये
कुछ बीते आनंद की लुकाछिपी में
तो कुछ करूणा से भी मिलकर आए"

"वो सब के साथ हँसना खिलखिलाना
किसी को साथ सता कर आनंद पाना
रूठ गया जो कभी कोई हमसे
प्यार से उसको फिर से मानना"

"
वो हर पल जो साथ बिता
वो ज्ञान सागर जो हमने समेटा
संजों रखे हैं मैंने वो दिल में
पर न हुआ उनका कभी बाहर आना "

"याद हर पल मैं करता हूँ उनको
उन दिनों का हूँ अब भी दीवाना
खुदा गर पूछे मुझसे रजा कोई
सपना मेरा होगा उन्हें वापस आना"

"अक्स"

तलाश

"जीने की कोशिश करता हूँ
मगर जिंदगी नहीं मिलती
पीने की कोशिश करता हूँ
मगर मय भी नहीं मिलती"

"ढूँढने को निकल पड़ता हूँ जिंदगी
शायद कहीं मिल जाए
कोसों दूर चलकर भी
मुझे बेखुदी नहीं मिलती"

"ढूँढा मौत के साए में भी उसको
शायद वहां मिल जाए मुझे
मिल गई तबस्सुम वहां साहिल
मगर रवानगी नहीं मिलती "

"जीने की कोशिश करता हूँ
मगर जिंदगी नहीं मिलती "


"अक्स"

जीवन गाथा

"जीवन की पराकाष्टा पर पहुँच कर
मुझको ये ख्याल आया
चलो अब विश्लेषण कर लें
जीवन में क्या खोया क्या पाया"

"
देखा झाँक कर जीवन में
नहीं कुछ भी ऐसा नज़र आया
जो लगे मुझे अपना सा
कह सकूं मैंने ये पाया"

"एक जीवन था बस मेरा अपना
वो भी मैंने यूँ ही गंवाया
उसमे एक खुशी ढूँढने की खातिर मैं
अतीत के पन्ने पलटता नज़र आया"

"अंत में सार यही निकला
न कुछ खोया, न कुछ पाया
दिल पूछता बस यही साहिल
मैं इस जीवन में क्यों आया"


"अक्स"