"उस चेहरे को क्या कहूँ में
जिसमें जहाँ का नूर समाया है
एक झलक पाकर जिसकी दिल ने
जन्नत का सुकून पाया है"
"कहूँ उसे अल्हड़पन जवानी का
या गुलाब कहूँ आबेहयात की रवानी का
कहूँ चंचलता का पैमाना उसे
या सागर नीले पानी का"
"सोचता हूँ वो चेहरा याद करके
जो बनकर धुंध जहाँ पर छाया है
फिर भी मैं उलझा हूँ साहिल
कोई ना उसे जान पाया है"
"दिल में है मेरे कशमकश यही
वो मेरा अपना या पराया है
उस चेहरे का नूर मगर
मेरे जीवन में आ समाया है"
"अक्स"
Tuesday, September 30, 2008
Monday, September 29, 2008
अकेलापन
"तन्हा अकेला निकल पड़ा हूँ मैं
वक्त नहीं मिला उसे साथ लाने का
सोचा उससे भी गले मिल लें
गम नाम है जिस परवाने का"
"मेरा साया भी मुझसे रूठा है
वक़्त नहीं मिलता उसे मनाने का
ज़माने की नहीं परवाह मुझको
जीवन नाम है इसी खोने पाने का"
"गले मिल खुशी से मैं खूब रोया
नहीं मिलता वक़्त उसे पाने का
बिछड उससे गम तो होगा मगर
गम भी इशारा है खुशी आने का"
"मैं सबसे मिला यूँ ही मगर
वक़्त न मिला ख़ुद को जान पाने का
जिसकी तलाश में निकला था तन्हा
वो साथ न मिला किसी दीवाने का"
"अक्स"
वक्त नहीं मिला उसे साथ लाने का
सोचा उससे भी गले मिल लें
गम नाम है जिस परवाने का"
"मेरा साया भी मुझसे रूठा है
वक़्त नहीं मिलता उसे मनाने का
ज़माने की नहीं परवाह मुझको
जीवन नाम है इसी खोने पाने का"
"गले मिल खुशी से मैं खूब रोया
नहीं मिलता वक़्त उसे पाने का
बिछड उससे गम तो होगा मगर
गम भी इशारा है खुशी आने का"
"मैं सबसे मिला यूँ ही मगर
वक़्त न मिला ख़ुद को जान पाने का
जिसकी तलाश में निकला था तन्हा
वो साथ न मिला किसी दीवाने का"
"अक्स"
मैं
"आज मैं खुद को भूल गया
कौन हूँ, मैं क्या हूँ ?
कभी हूँ पत्थर दीवाने आम का
कभी साख से टूटा पत्ता हूँ"
"कोई कहता मयकश मैं हूँ
कोई मुझे साकी कहता है
किसी के लिए खिलौना हूँ मैं
जैसे चाहे मुझसे खेलता है"
"बेगानो की याद बाकी है
अपनो को भूल गया हूँ
खुद को खोजने की लत में
हर मंज़र से गुजर गया हूँ"
"आज मैं खुद को भूल गया हूँ
कौन हूँ, मैं क्या हूँ?"
"अक्स"
कौन हूँ, मैं क्या हूँ ?
कभी हूँ पत्थर दीवाने आम का
कभी साख से टूटा पत्ता हूँ"
"कोई कहता मयकश मैं हूँ
कोई मुझे साकी कहता है
किसी के लिए खिलौना हूँ मैं
जैसे चाहे मुझसे खेलता है"
"बेगानो की याद बाकी है
अपनो को भूल गया हूँ
खुद को खोजने की लत में
हर मंज़र से गुजर गया हूँ"
"आज मैं खुद को भूल गया हूँ
कौन हूँ, मैं क्या हूँ?"
"अक्स"
एक प्रश्न
"उसकी एक झलक को मैने
अपनी यादो को भी खोद डाला
पर ना मिला एक निशान भी
उसका जो मैने था बहुत संभाला"
"वो माहताब सा चेहरा
जिसमे कशिश थी प्यारी सी
था आफताब का नूर वो
जाने कहाँ छुप गया"
"खोजता हूँ उसे पल-पल
ख्वाबो ओर ख्यालो में
दिखता चाँद में साया वो
जाने क्यों मुझसे रूठ गया"
"बन पागल दर-दर भटका मैं
उसकी जन्नत ना पा सका
शबनम शोला लगती है मुझको
साहिल क्या मुझे प्यार हो गया"
"अक्स"
अपनी यादो को भी खोद डाला
पर ना मिला एक निशान भी
उसका जो मैने था बहुत संभाला"
"वो माहताब सा चेहरा
जिसमे कशिश थी प्यारी सी
था आफताब का नूर वो
जाने कहाँ छुप गया"
"खोजता हूँ उसे पल-पल
ख्वाबो ओर ख्यालो में
दिखता चाँद में साया वो
जाने क्यों मुझसे रूठ गया"
"बन पागल दर-दर भटका मैं
उसकी जन्नत ना पा सका
शबनम शोला लगती है मुझको
साहिल क्या मुझे प्यार हो गया"
"अक्स"
Sunday, September 28, 2008
तस्वीर
"ख्वाबो ख्यालो में एक तस्वीर सजी है
क्यूँ मगर अधूरी सी लगती है
है कशमकश रंग कौन सा दूँ उसको
बने वो जो ना अभी तक बनी है"
"कल्पना के शिखर पर बैठा मैं
इसी उधेड़बुन में लगा हूँ
क्यों इस तस्वीर को सजाने में
हर जद्दोजहद से अड़ा हूँ मैं"
"प्यार का रंग गहरा बहुत है
भरते हुए डरता हूँ मैं
एक अजनबी तस्वीर में क्यों
प्यार का रंग भरता हूँ मैं"
"फिर भी प्यार का रंग दूँगा मैं उसे
कुदरत रत एक नज़ारे में जान होगी
ना बन सके शायद मेरी तबस्सुम वो
मगर किसी की वो जाँनिसार होगी"
"अक्स"
क्यूँ मगर अधूरी सी लगती है
है कशमकश रंग कौन सा दूँ उसको
बने वो जो ना अभी तक बनी है"
"कल्पना के शिखर पर बैठा मैं
इसी उधेड़बुन में लगा हूँ
क्यों इस तस्वीर को सजाने में
हर जद्दोजहद से अड़ा हूँ मैं"
"प्यार का रंग गहरा बहुत है
भरते हुए डरता हूँ मैं
एक अजनबी तस्वीर में क्यों
प्यार का रंग भरता हूँ मैं"
"फिर भी प्यार का रंग दूँगा मैं उसे
कुदरत रत एक नज़ारे में जान होगी
ना बन सके शायद मेरी तबस्सुम वो
मगर किसी की वो जाँनिसार होगी"
"अक्स"
बसंत
"गरज रहे हैं बादल गर-गर
रिमझिम पानी बरस रहा है
हर कोई हर्षित हो देखो
इधर उधर को भाग रहा है"
"पेड़ो पर पड़ रहे हैं झूले
बसंत राग भी गूँज रहा है
सुनकर खग मृग का कलरव
मन हर्षित हो झूम रहा है"
"देख बसंत की रिमझिम बेला
कलियों का भी मन हर्षाया
पंख फैला कर किया स्वागत
फिर सावन का गीत सुनाया"
"अक्स"
रिमझिम पानी बरस रहा है
हर कोई हर्षित हो देखो
इधर उधर को भाग रहा है"
"पेड़ो पर पड़ रहे हैं झूले
बसंत राग भी गूँज रहा है
सुनकर खग मृग का कलरव
मन हर्षित हो झूम रहा है"
"देख बसंत की रिमझिम बेला
कलियों का भी मन हर्षाया
पंख फैला कर किया स्वागत
फिर सावन का गीत सुनाया"
"अक्स"
कोई मेरा अपना
"इस तन्हा अकेले जहाँ में
ढूंढता हूँ एक साथी ऐसा कोई
जो साथ दे हर कदम पर मेरा
कह सकूँ मन में हो जो बात आई"
"कर सकूं गीले सीकवे जिससे मैं
बने जो मेरे जीवन की इक इकाई
हो जो मेरा निगहबान हर कदम पर
लगे काल सागर में मिली हो पतवार कोई"
"नहीं मिलता मगर मुझे ऐसा कोई
यूँ ही ज़िंदगी बर्बाद कर रहा हूँ
है आस दिल में मिलेगा मुझको वो
मैं जिसकी तलाश में भटक रहा हूँ"
"अक्स"
ढूंढता हूँ एक साथी ऐसा कोई
जो साथ दे हर कदम पर मेरा
कह सकूँ मन में हो जो बात आई"
"कर सकूं गीले सीकवे जिससे मैं
बने जो मेरे जीवन की इक इकाई
हो जो मेरा निगहबान हर कदम पर
लगे काल सागर में मिली हो पतवार कोई"
"नहीं मिलता मगर मुझे ऐसा कोई
यूँ ही ज़िंदगी बर्बाद कर रहा हूँ
है आस दिल में मिलेगा मुझको वो
मैं जिसकी तलाश में भटक रहा हूँ"
"अक्स"
Friday, September 26, 2008
धूमिल सत्य
"ये जीवन वास्तव में क्या है
एक सफेद धुएँ का गुबार
या गुबार में भरा नीर
दोनो सूरतो में जीवन
हाथ से फिसलता है"
"अगर ये धुएँ का गुबार है
तो वायु के घने थपेड़े
इसका रंग-रूप ,चाल-ढाल
मिटाने में पूर्ण सक्षम है"
"अगर ये गुबार में नीर है
तब वायु का एक हल्का झोंका
इसे पाठ विचलित कर पाने में
धूल धूसित कर पाने में सक्षम है"
"ये प्रश्न मेरे अंतर्मन को
लगातार कचोट रहा है
कैसे जानूँ जीवन की सत्यता
जब जीवन के नाम पर समाज में
एक अंधविश्वास पल रहा है"
"अक्स"
एक सफेद धुएँ का गुबार
या गुबार में भरा नीर
दोनो सूरतो में जीवन
हाथ से फिसलता है"
"अगर ये धुएँ का गुबार है
तो वायु के घने थपेड़े
इसका रंग-रूप ,चाल-ढाल
मिटाने में पूर्ण सक्षम है"
"अगर ये गुबार में नीर है
तब वायु का एक हल्का झोंका
इसे पाठ विचलित कर पाने में
धूल धूसित कर पाने में सक्षम है"
"ये प्रश्न मेरे अंतर्मन को
लगातार कचोट रहा है
कैसे जानूँ जीवन की सत्यता
जब जीवन के नाम पर समाज में
एक अंधविश्वास पल रहा है"
"अक्स"
अंतत:
"घनघोर घटाएँ उमड़ पड़ी हैं
फैला प्रलय चारो ओर
झुकने लगा है गगन जमीं पर
नदियों में भी लगी है होड़"
"भूमंडल पर फैला पानी
लाँघ चुका है सब बाधाएँ
प्रकृति का तांडव देख कर
मानवता कर रही हाय हाय"
"उजाड़ चुके हैं नगर सारे
हो प्राचीन या वर्तमान
खो गयी हैं किलकारी नन्हो की
बड़े हुए बेसुध बेजान"
"तहस नहस कर गया सभी कुछ
किया जो प्रकृति से खिलवाड़
मानो कह रही हो हमसे
बंद करो ये अत्याचार"
"जब टूटेगा बाँध सब्र का
होगा ऐसा नर संहार
अब तो संभल जा हे मानव
प्रकृति कर रही पुकार"
"अक्स"
फैला प्रलय चारो ओर
झुकने लगा है गगन जमीं पर
नदियों में भी लगी है होड़"
"भूमंडल पर फैला पानी
लाँघ चुका है सब बाधाएँ
प्रकृति का तांडव देख कर
मानवता कर रही हाय हाय"
"उजाड़ चुके हैं नगर सारे
हो प्राचीन या वर्तमान
खो गयी हैं किलकारी नन्हो की
बड़े हुए बेसुध बेजान"
"तहस नहस कर गया सभी कुछ
किया जो प्रकृति से खिलवाड़
मानो कह रही हो हमसे
बंद करो ये अत्याचार"
"जब टूटेगा बाँध सब्र का
होगा ऐसा नर संहार
अब तो संभल जा हे मानव
प्रकृति कर रही पुकार"
"अक्स"
Thursday, September 25, 2008
कोई अपना
"मैं आज खुश हूँ
नहीं जानता पर क्यूँ हूँ
शायद कोई अपना मिला है
जो बनकर एक फूल खिला है"
"मेरी खुशी का नहीं पारवार कोई
किसी को नहीं इससे सरोकार कोई
अपनी खुशी में मैं अकेला हूँ
तड़प गमो की भी मैं झेला हूँ"
"अंजानी खुशी मुझे जिया गयी है
बनकर धड़कन दिल में समा गयी है
यादों में रहती है हर पल
हर लम्हे को संजीदा बना गयी है"
"दिलो दिमाग़ पर छा गयी है
ये धुन्ध ना अब तक छँट पाई है
दिल में शंका है मगर अभी तक
ये क्या खुशी मैने पाई है"
"अक्स"
नहीं जानता पर क्यूँ हूँ
शायद कोई अपना मिला है
जो बनकर एक फूल खिला है"
"मेरी खुशी का नहीं पारवार कोई
किसी को नहीं इससे सरोकार कोई
अपनी खुशी में मैं अकेला हूँ
तड़प गमो की भी मैं झेला हूँ"
"अंजानी खुशी मुझे जिया गयी है
बनकर धड़कन दिल में समा गयी है
यादों में रहती है हर पल
हर लम्हे को संजीदा बना गयी है"
"दिलो दिमाग़ पर छा गयी है
ये धुन्ध ना अब तक छँट पाई है
दिल में शंका है मगर अभी तक
ये क्या खुशी मैने पाई है"
"अक्स"
Wednesday, September 24, 2008
सार
"दुनिया में फैला अंधेरा
मेरे जीवन में सिमट रहा है
हर पल हर पहलू मेरा
धुँधला सा पड़ रहा है"
"उजाला ढूँढने की खातिर
जुगनू से लड़ रहा मैं
रोशनी के ख्वाब देखता
अंधेरो का आदी हो रहा हूँ"
"जाने किस कोने में छिपा उजाला
आँसू बहा रहा है
अंधेरा सीना तान खड़ा
ठहाके लगा रहा है"
"जज़्ब हो रहा अंधेरा मुझमें
हर पल मुझको निगल रहा है
उजाला दूर खड़ा एक कोने में
शर्म से गल रहा है,शर्म से गल रहा है"
"अक्स"
मेरे जीवन में सिमट रहा है
हर पल हर पहलू मेरा
धुँधला सा पड़ रहा है"
"उजाला ढूँढने की खातिर
जुगनू से लड़ रहा मैं
रोशनी के ख्वाब देखता
अंधेरो का आदी हो रहा हूँ"
"जाने किस कोने में छिपा उजाला
आँसू बहा रहा है
अंधेरा सीना तान खड़ा
ठहाके लगा रहा है"
"जज़्ब हो रहा अंधेरा मुझमें
हर पल मुझको निगल रहा है
उजाला दूर खड़ा एक कोने में
शर्म से गल रहा है,शर्म से गल रहा है"
"अक्स"
साथी "A person whom u don't know but like very much"
"जीवन के इन आड़े टेढ़े मोडो पर
कुछ अजनबी टकरा जाते हैं
साथ बिताए वो चन्द लम्हे
एक याद बनकर रह जाते हैं"
"अच्छे बुरे की सोच से उपर
उमंग से हम सब मिलते हैं
बस चलते हैं साथ चार पल
फिर इन मोडो पर बिछड़ जाते हैं"
याद टीस बनकर दिल में रहती है
संग लहू के दिल-ओ-दिमाग़ में बहती है
जीने नहीं देती ये उम्र भर हमको
हर क्षण में उनको ढूँढती रहती है"
"ऐसा साथ कोई ना पाए
जो खुशी से ज़्यादा गम दे जाए
दो पल साथ चल कर साथी
उम्र भर के लिए बिछड़ जाए"
"अक्स"
कुछ अजनबी टकरा जाते हैं
साथ बिताए वो चन्द लम्हे
एक याद बनकर रह जाते हैं"
"अच्छे बुरे की सोच से उपर
उमंग से हम सब मिलते हैं
बस चलते हैं साथ चार पल
फिर इन मोडो पर बिछड़ जाते हैं"
याद टीस बनकर दिल में रहती है
संग लहू के दिल-ओ-दिमाग़ में बहती है
जीने नहीं देती ये उम्र भर हमको
हर क्षण में उनको ढूँढती रहती है"
"ऐसा साथ कोई ना पाए
जो खुशी से ज़्यादा गम दे जाए
दो पल साथ चल कर साथी
उम्र भर के लिए बिछड़ जाए"
"अक्स"
Tuesday, September 23, 2008
वर्षा की बूँदें
"रिमझिम वर्षा की छोटी बूँदें
उछल उछल कर आती हैं
इधर फुदकतीं, उधर फुदकतीं
जीवन का गीत सुनाती हैं"
"ये मोती सी सुंदर बूँदें
जग में खुशियाँ फैलाती हैं
अम्रत है इनका हर एक कण
सबको जीवन दे जाती हैं"
"छोड़ आकाश का रैन बसेरा
धरा की प्यास बुझाती हैं
ये बलिदान कर अपना जीवन
जग में हरियाली फैलाती हैं"
"रिमझिम वर्षा की छोटी बूँदें
उछल उछल कर आती हैं
दे तन मन को ठंडी आभा
मन प्रसन्न कर जाती हैं"
"रिमझिम वर्षा की छोटी बूँदें
उछल उछल कर आती हैं"
"अक्स"
उछल उछल कर आती हैं
इधर फुदकतीं, उधर फुदकतीं
जीवन का गीत सुनाती हैं"
"ये मोती सी सुंदर बूँदें
जग में खुशियाँ फैलाती हैं
अम्रत है इनका हर एक कण
सबको जीवन दे जाती हैं"
"छोड़ आकाश का रैन बसेरा
धरा की प्यास बुझाती हैं
ये बलिदान कर अपना जीवन
जग में हरियाली फैलाती हैं"
"रिमझिम वर्षा की छोटी बूँदें
उछल उछल कर आती हैं
दे तन मन को ठंडी आभा
मन प्रसन्न कर जाती हैं"
"रिमझिम वर्षा की छोटी बूँदें
उछल उछल कर आती हैं"
"अक्स"
चन्द लम्हे
"चन्द लम्हो का साथ होता है
ज़िंदगी यूँ कभी बसर नहीं होती
साथ चलने को बेकरार हम भी हैं
पर उनसे कदम मिलाने की हिम्मत नहीं होती"
"घड़ियो का साथ छूट जाता है
बरसों निकल जाते हैं मिलने में
तन्हाइयों में मन भटकता रहता है
ज़िंदगी की वीरानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं"
"चाह कर भी साथ नहीं चल पाता हूँ
बस यही टीस दिल में उठती है
हमे भी सुकून नसीब हो साहिल
क्यों किसी दिल से ये दुआ नहीं उठती"
"चन्द लम्हो का साथ होता है
ज़िंदगी यूँ ही बसर नहीं होती"
"अक्स"
ज़िंदगी यूँ कभी बसर नहीं होती
साथ चलने को बेकरार हम भी हैं
पर उनसे कदम मिलाने की हिम्मत नहीं होती"
"घड़ियो का साथ छूट जाता है
बरसों निकल जाते हैं मिलने में
तन्हाइयों में मन भटकता रहता है
ज़िंदगी की वीरानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं"
"चाह कर भी साथ नहीं चल पाता हूँ
बस यही टीस दिल में उठती है
हमे भी सुकून नसीब हो साहिल
क्यों किसी दिल से ये दुआ नहीं उठती"
"चन्द लम्हो का साथ होता है
ज़िंदगी यूँ ही बसर नहीं होती"
"अक्स"
मुलाकात
"एक छोटी सी मुलाकात याद आई है
बनकर अश्क मेरी आँखो में उतर आई है
उन कमसिन निगाहों को ढ़ूंढता हूँ मैं
जिनकी रोशनी मेरे दिल पर छाई है"
"बैठे थे एक दूजे से अंजान हम दोनो
लब ठिठक रहे थे, आवाज़ ना निकली थी
सरसराई हवा यूँ बही एक अंदाज़ से
लगा वो मन ही मन मुस्काई है"
"चाह कर भी ना कुछ बोल पाए हम
आँखो में उभरी सब सच्चाई है
दुनिया की रुसवाई से डर लगता है
अंजाम हर सूरत में अपनी जुदाई है"
"उम्र भर तो खामोश ना रह सकेंगे लब
कभी तो जुबाँ पर आनी सच्चाई है
इस छोटी सी मुलाकात में हमने साहिल
खुशियाँ दो जहाँ की पाई हैं"
"अक्स"
बनकर अश्क मेरी आँखो में उतर आई है
उन कमसिन निगाहों को ढ़ूंढता हूँ मैं
जिनकी रोशनी मेरे दिल पर छाई है"
"बैठे थे एक दूजे से अंजान हम दोनो
लब ठिठक रहे थे, आवाज़ ना निकली थी
सरसराई हवा यूँ बही एक अंदाज़ से
लगा वो मन ही मन मुस्काई है"
"चाह कर भी ना कुछ बोल पाए हम
आँखो में उभरी सब सच्चाई है
दुनिया की रुसवाई से डर लगता है
अंजाम हर सूरत में अपनी जुदाई है"
"उम्र भर तो खामोश ना रह सकेंगे लब
कभी तो जुबाँ पर आनी सच्चाई है
इस छोटी सी मुलाकात में हमने साहिल
खुशियाँ दो जहाँ की पाई हैं"
"अक्स"
बयार
"ठंडी ठंडी बयार का एक झोंका
होले से मुझको छूकर निकला है
मानो उड़ गया है आँचल किसी का यूँ ही
पकड़ने को वो उसको घर से निकला है"
"बहुत सर्द एहसास था उस छुअन का
मेरा रोम रोम अभी तक सहमा है
भुलाए नहीं भूलता वो एहसास मुझको
ख्वाबो में जिसके मन उलझा है"
"ढूंढता हूँ उस बयार को अभी भी
जाने वो कहाँ खो गया है
फिर भी उस छुअन का एहसास
बनकर शब्द मेरे लबो पर उभरा है"
"अक्स"
होले से मुझको छूकर निकला है
मानो उड़ गया है आँचल किसी का यूँ ही
पकड़ने को वो उसको घर से निकला है"
"बहुत सर्द एहसास था उस छुअन का
मेरा रोम रोम अभी तक सहमा है
भुलाए नहीं भूलता वो एहसास मुझको
ख्वाबो में जिसके मन उलझा है"
"ढूंढता हूँ उस बयार को अभी भी
जाने वो कहाँ खो गया है
फिर भी उस छुअन का एहसास
बनकर शब्द मेरे लबो पर उभरा है"
"अक्स"
Monday, September 22, 2008
मंज़र
"कई मुददतो से खोजता था मैं जिसको
वो मंज़र मेरे रूबरू हुआ है अब
पाने में जिसको गुजर गयीं कई सदियां
मैं उसके करीब जाकर आया हूँ अब"
"वो मंज़र जो कभी ख्वाब था मेरा
एक हक़ीकत की शक्ल में आया है अब
ये वाकई हक़ीकत है या आईना कोई
फैंसले को हमने चाँद बुलाया है अब"
"इस फैंसले से जुड़ीं हैं उम्मीदें मेरी
इसमे मेरा भी ज़िक्र आया है अब
अंजाम-ए-फ़ैसला जो भी हो साहिल
सोच बस ये ख्वाब पूरा होगा कब?"
"अक्स"
वो मंज़र मेरे रूबरू हुआ है अब
पाने में जिसको गुजर गयीं कई सदियां
मैं उसके करीब जाकर आया हूँ अब"
"वो मंज़र जो कभी ख्वाब था मेरा
एक हक़ीकत की शक्ल में आया है अब
ये वाकई हक़ीकत है या आईना कोई
फैंसले को हमने चाँद बुलाया है अब"
"इस फैंसले से जुड़ीं हैं उम्मीदें मेरी
इसमे मेरा भी ज़िक्र आया है अब
अंजाम-ए-फ़ैसला जो भी हो साहिल
सोच बस ये ख्वाब पूरा होगा कब?"
"अक्स"
जल
"कल-कल करता बहता पानी
रंग रूप ना कोई निशानी
भेद भाव ना किसी से करता
सबके सपनो में रंग भरता"
"शीतल ओर स्वच्छ बड़ा यह
तन मन को शीतल कर देता
कभी ठहरता, कभी है बहता
हम सब को सुख देता रहता"
"प्रक्रति का वरदान यह है
अभिमान तनिक ना करता
जीवन का स्तंभ यही है
कल्पना को भी मूर्त करता"
"कल-कल करता बहता पानी
प्यार की सबको सीख है देता"
"अक्स"
रंग रूप ना कोई निशानी
भेद भाव ना किसी से करता
सबके सपनो में रंग भरता"
"शीतल ओर स्वच्छ बड़ा यह
तन मन को शीतल कर देता
कभी ठहरता, कभी है बहता
हम सब को सुख देता रहता"
"प्रक्रति का वरदान यह है
अभिमान तनिक ना करता
जीवन का स्तंभ यही है
कल्पना को भी मूर्त करता"
"कल-कल करता बहता पानी
प्यार की सबको सीख है देता"
"अक्स"
क्यूँ ?
"जाने क्यूँ तेरी याद सताती है मुझे
जितना भूलना चाहूँ तू उतना याद आती है मुझे
ये तेरी निगाहों की कशिश है या मुस्कान तेरी
अब हर जगह तू ही नज़र आती है मुझे"
"मेरी निगाहों से नहीं हटता अक्स तेरा
तेरी उलझी जुल्फें ओर उलझाती हैं मुझे
झील सी गहरी निगाहों का क्या कहना
जो डूबने को बार बार बुलाती हैं मुझे"
"मेरी तमन्ना है बस एक तुझे पाने की
पर दुनिया की दीवारें दूर हटाती हैं मुझे
पार पा लूँगा इन दीवारें से भी एक दिन
बस एक तेरी सदा का इंतज़ार है मुझे
"अक्स"
जितना भूलना चाहूँ तू उतना याद आती है मुझे
ये तेरी निगाहों की कशिश है या मुस्कान तेरी
अब हर जगह तू ही नज़र आती है मुझे"
"मेरी निगाहों से नहीं हटता अक्स तेरा
तेरी उलझी जुल्फें ओर उलझाती हैं मुझे
झील सी गहरी निगाहों का क्या कहना
जो डूबने को बार बार बुलाती हैं मुझे"
"मेरी तमन्ना है बस एक तुझे पाने की
पर दुनिया की दीवारें दूर हटाती हैं मुझे
पार पा लूँगा इन दीवारें से भी एक दिन
बस एक तेरी सदा का इंतज़ार है मुझे
"अक्स"
बेबसी
"ज़िंदगी से जद्दोजहद किए पड़ा हूँ मैं
जाने क्यूँ अपनी ज़िद पर अड़ा हूँ मैं
ना जाने क्या खोने का डर है मुझको
जो सब समेटने में लग पड़ा हूँ मैं"
"सब रेत सा फिसलता लगता है मुझे
बस खाली हाथ लिए खड़ा हूँ मैं
दुनिया हंसकर कहती है पागल मुझको
या पागलो के बीच खड़ा हूँ मैं"
"निकल पड़ा हूँ जाने किस डगर पर
या अपनी मंज़िल से भटक गया हूँ मैं
जाने किस ओर ले जाएगी ये डगर मुझको
बस यही सोच लिए चल पड़ा हूँ मैं"
"ज़िंदगी से जद्दोजहद किए पड़ा हूँ मैं
जाने क्यूँ अपनी ज़िद पर अड़ा हूँ मैं?"
"अक्स"
जाने क्यूँ अपनी ज़िद पर अड़ा हूँ मैं
ना जाने क्या खोने का डर है मुझको
जो सब समेटने में लग पड़ा हूँ मैं"
"सब रेत सा फिसलता लगता है मुझे
बस खाली हाथ लिए खड़ा हूँ मैं
दुनिया हंसकर कहती है पागल मुझको
या पागलो के बीच खड़ा हूँ मैं"
"निकल पड़ा हूँ जाने किस डगर पर
या अपनी मंज़िल से भटक गया हूँ मैं
जाने किस ओर ले जाएगी ये डगर मुझको
बस यही सोच लिए चल पड़ा हूँ मैं"
"ज़िंदगी से जद्दोजहद किए पड़ा हूँ मैं
जाने क्यूँ अपनी ज़िद पर अड़ा हूँ मैं?"
"अक्स"
तमन्ना
"तमन्ना हो मुस्कुराने की
अंधेरो में दिए जलाने की
ये ना सोचो की क्या गम है
तमन्ना रखो खुशियाँ पाने की"
"बाँटो प्यार इस जहाँ में तुम
सुनाओ गूँज दिल के तराने की
जहाँ ने तुमको ठुकराया तो क्या
तमन्ना हो प्यार में आशियाँ बनाने की"
"मुस्कुराहट से सभी को जीत लो तुम
हसरत रखो जहाँ को हंसाने की
गम तुमको छू भी ना सकेंगे
गर तमन्ना हो उनसे पार पाने की"
"तमन्ना बस एक नाम है
सभी में आस जगाने की
हो आशा या निराशा जीवन में
तमन्ना फिर भी रखो मुस्कुराने की"
"अक्स"
अंधेरो में दिए जलाने की
ये ना सोचो की क्या गम है
तमन्ना रखो खुशियाँ पाने की"
"बाँटो प्यार इस जहाँ में तुम
सुनाओ गूँज दिल के तराने की
जहाँ ने तुमको ठुकराया तो क्या
तमन्ना हो प्यार में आशियाँ बनाने की"
"मुस्कुराहट से सभी को जीत लो तुम
हसरत रखो जहाँ को हंसाने की
गम तुमको छू भी ना सकेंगे
गर तमन्ना हो उनसे पार पाने की"
"तमन्ना बस एक नाम है
सभी में आस जगाने की
हो आशा या निराशा जीवन में
तमन्ना फिर भी रखो मुस्कुराने की"
"अक्स"
काग़ज़ के फूल
"चन्द आडी टेढी लाईनो से
तस्वीर बना नहीं करती
ख्वाबो में रंग भरने से
ज़िंदगी चला नहीं करती"
"देख काग़ज़ के फूलों को
ना किस्मत पर तू इतरा
बिना इत्र के उनसे भी
कभी खुशबू आ नहीं सकती"
"माँगने वालों को दुनिया कुछ नहीं देती
छीनने से भी मगर खुशियाँ मिला नहीं करती
गम के अंधेरे कर देते हैं ज़िंदगी वीरान
खुशी की किरण फिर भी इनसे मिटा नहीं करती"
"फूलों की खुशबू से महका रहे चमन
हर दिल से ये दुआ निकला नहीं करती
तू सोचता क्या ओर क्या हो रहा साहिल
ये ज़िंदगी यूँ बसर हुआ नहीं करती"
"अक्स"
तस्वीर बना नहीं करती
ख्वाबो में रंग भरने से
ज़िंदगी चला नहीं करती"
"देख काग़ज़ के फूलों को
ना किस्मत पर तू इतरा
बिना इत्र के उनसे भी
कभी खुशबू आ नहीं सकती"
"माँगने वालों को दुनिया कुछ नहीं देती
छीनने से भी मगर खुशियाँ मिला नहीं करती
गम के अंधेरे कर देते हैं ज़िंदगी वीरान
खुशी की किरण फिर भी इनसे मिटा नहीं करती"
"फूलों की खुशबू से महका रहे चमन
हर दिल से ये दुआ निकला नहीं करती
तू सोचता क्या ओर क्या हो रहा साहिल
ये ज़िंदगी यूँ बसर हुआ नहीं करती"
"अक्स"
Sunday, September 21, 2008
दिल की तड़प
"दिल की तड़प तन्हाई में सुनना
सच्चा मोती गहरे पानी में चुनना
टूट जाते हैं एक पल में शीशे की
दिल मेरे अब कोई ख्वाब ना बुनना"
"कुछ यूँ मौसम-ए-हाल बना रक्खा है मैने
दिल में तेरी जुदाई का गम पाल रक्खा है मैने
ना जाने क्यूँ तू नाखुदा बन गया साहिल
फिर भी तुझी को खुदा मान रक्खा है मैने "
सच्चा मोती गहरे पानी में चुनना
टूट जाते हैं एक पल में शीशे की
दिल मेरे अब कोई ख्वाब ना बुनना"
"कुछ यूँ मौसम-ए-हाल बना रक्खा है मैने
दिल में तेरी जुदाई का गम पाल रक्खा है मैने
ना जाने क्यूँ तू नाखुदा बन गया साहिल
फिर भी तुझी को खुदा मान रक्खा है मैने "
Thursday, September 18, 2008
कुछ कलाम मेरी कलम से !
"तूफान मेरे दिल का अब ठहरता नहीं
पीकर भी तो अब मैं बहकता नहीं
दर्द तो मेरे दिल का भी बिकाऊ है मगर
बाज़ार में तेरे दिल सा खरीददार कोई नहीं"
"रह रह कर जाने क्यूँ याद आता है कोई
दिल में दबे दर्द को बढ़ाता है कोई
उठता है दर्द का स्याह गुबार सीने में
जब भी जाने अंजाने उसका ज़िक्र कर जाता है कोई."
"अपने रुखसार से परदा ना हटने देना
इन जहाँ वालो की नीयत बड़ी मैली है
मैं तो हूँ तन्हा होकर भी भीड़ का हिस्सा
पर तू क्यूँ भीड़ में होकर भी अकेली है"
"तूफान के चलते मेरा मुकाम ना आया
उनके क़िस्सो में कभी मेरा नाम ना आया
अब तक समझते रहे जिस जहाँ को हम अपना
वहीं कभी मेरे हिस्से में दो पल आराम ना आया"
"अक्स"
पीकर भी तो अब मैं बहकता नहीं
दर्द तो मेरे दिल का भी बिकाऊ है मगर
बाज़ार में तेरे दिल सा खरीददार कोई नहीं"
"रह रह कर जाने क्यूँ याद आता है कोई
दिल में दबे दर्द को बढ़ाता है कोई
उठता है दर्द का स्याह गुबार सीने में
जब भी जाने अंजाने उसका ज़िक्र कर जाता है कोई."
"अपने रुखसार से परदा ना हटने देना
इन जहाँ वालो की नीयत बड़ी मैली है
मैं तो हूँ तन्हा होकर भी भीड़ का हिस्सा
पर तू क्यूँ भीड़ में होकर भी अकेली है"
"तूफान के चलते मेरा मुकाम ना आया
उनके क़िस्सो में कभी मेरा नाम ना आया
अब तक समझते रहे जिस जहाँ को हम अपना
वहीं कभी मेरे हिस्से में दो पल आराम ना आया"
"अक्स"
उषा की बेला
"यूँ छिट्के हैं तारे नभ में,
टूट गयी ज्यों मोती माला,
चमक रहीं यूँ किरणें जल में,
मुस्काये कोई कंचन बाला"
"रंग बिरंगे पुष्प खिलें हैं,
नृत्य करती उन पर परी बाला
मंद सुगंध यूँ बहे पवन में,
लगता हो देवो की मधुशाला"
"खग मृग पक्षी करें हैं कलरव
उपवन बना दिया रंगशाला,
दूर सोच में चल पड़ा भास्कर,
दमक रही हर पर्वतमाला"
"कटी रात अंधियारी दुख की'
फैल रहा हर ओर उजाला,
प्रात: काल का करता वर्णन,
हर्षित मन से मैं मतवाला"
"अक्स"
टूट गयी ज्यों मोती माला,
चमक रहीं यूँ किरणें जल में,
मुस्काये कोई कंचन बाला"
"रंग बिरंगे पुष्प खिलें हैं,
नृत्य करती उन पर परी बाला
मंद सुगंध यूँ बहे पवन में,
लगता हो देवो की मधुशाला"
"खग मृग पक्षी करें हैं कलरव
उपवन बना दिया रंगशाला,
दूर सोच में चल पड़ा भास्कर,
दमक रही हर पर्वतमाला"
"कटी रात अंधियारी दुख की'
फैल रहा हर ओर उजाला,
प्रात: काल का करता वर्णन,
हर्षित मन से मैं मतवाला"
"अक्स"
जन्नत और दौजख
"है जन्नत क्या और दौजख क्या
बता दे कोई मुझे ये बस
क्या इनका राज है अपना
सुना दे कोई मुझे ये बस"
"है जन्नत उन दिलों की चाह
जो फिदा होते हैं औरों पर
मिटा कर खुद के जो अरमान
हुए कुर्बान ज़माने पर"
"है दौजख उनका ये जीवन
जो शैतान के बंदे हैं
लिए दिल में जो कालापन
वज़ूद-ए-खुदा से लड़ते हैं"
"रहेगा चलता जीवन में
ये किस्सा जन्नत दौजख का
यहीं जन्नत, यहीं दौजख
खुदा ने गढ रखे हैं"
"अक्स"
बता दे कोई मुझे ये बस
क्या इनका राज है अपना
सुना दे कोई मुझे ये बस"
"है जन्नत उन दिलों की चाह
जो फिदा होते हैं औरों पर
मिटा कर खुद के जो अरमान
हुए कुर्बान ज़माने पर"
"है दौजख उनका ये जीवन
जो शैतान के बंदे हैं
लिए दिल में जो कालापन
वज़ूद-ए-खुदा से लड़ते हैं"
"रहेगा चलता जीवन में
ये किस्सा जन्नत दौजख का
यहीं जन्नत, यहीं दौजख
खुदा ने गढ रखे हैं"
"अक्स"
तडप
"तडप कर दिल यूँ कहता है
तू ही जीने की है मंज़िल
ज्यों कहती साख पत्ते से
मेरे जीवन का तू साहिल"
"तू मुझमें अविरत बहती है
ज्यों बहती निर्मल जल धारा
तुझे भुलूँ भी कैसे मैं
है मेरी साँसो में तू शामिल"
"मैं धरती हूँ , तू अंबर है
मिलन अपना है ये मुश्किल
तू कंचन , कमनीय बाला
शिला सा हूँ मैं संगदिल"
"तू नदिया की एक धारा
समय का मैं एक पल क्षिन
मिलन अपना ना हो पाया
रहा हर पल तन्हा साहिल"
"अक्स"
तू ही जीने की है मंज़िल
ज्यों कहती साख पत्ते से
मेरे जीवन का तू साहिल"
"तू मुझमें अविरत बहती है
ज्यों बहती निर्मल जल धारा
तुझे भुलूँ भी कैसे मैं
है मेरी साँसो में तू शामिल"
"मैं धरती हूँ , तू अंबर है
मिलन अपना है ये मुश्किल
तू कंचन , कमनीय बाला
शिला सा हूँ मैं संगदिल"
"तू नदिया की एक धारा
समय का मैं एक पल क्षिन
मिलन अपना ना हो पाया
रहा हर पल तन्हा साहिल"
"अक्स"
दर्द
“आज फिर वो याद आया है
बनकर धुन्ध मेरे ज़ेहन पर छाया है
देख कर जिसको मैं जीता था हर पल
आज दिल में बनकर दर्द उभर आया है”
“वो मेरे जीवन का अधूरा ख़्वाब
जो कभी ना पूरा हो पाया है
जिसको पूरा करने की जद्दोजहद में
ये जीवन भी मैने गँवाया है”
“देखता हूँ ख़्वाब उसको पाने के
जो मेरा हो कर भी पराया है
खोने पाने के इस चक्रव्युह मैं
आज फिर एक अभिमन्यु आया है”
“करण कौन अर्जुन यहाँ है
ये दिल ना अभी तक जान पाया है
फिर भी उसको याद कर साहिल
दिल में एक दर्द उभर आया है”
"अक्स"
बनकर धुन्ध मेरे ज़ेहन पर छाया है
देख कर जिसको मैं जीता था हर पल
आज दिल में बनकर दर्द उभर आया है”
“वो मेरे जीवन का अधूरा ख़्वाब
जो कभी ना पूरा हो पाया है
जिसको पूरा करने की जद्दोजहद में
ये जीवन भी मैने गँवाया है”
“देखता हूँ ख़्वाब उसको पाने के
जो मेरा हो कर भी पराया है
खोने पाने के इस चक्रव्युह मैं
आज फिर एक अभिमन्यु आया है”
“करण कौन अर्जुन यहाँ है
ये दिल ना अभी तक जान पाया है
फिर भी उसको याद कर साहिल
दिल में एक दर्द उभर आया है”
"अक्स"
एहसास
“दिल में एक दबी दबी बात है शायद
होठों पर आती है रुक जाती है
कहने को जिसको ज़ुबान मचल जाती है
बात फिर भी ना ये कह पाती है”
“सोचता हूँ क्यों ये होता है
क्यों तेरी याद दिल में महक जाती है
इस महक को मैं फैला तो दूँ मगर
लगता है तेरे अक्स से डर जाती है”
"ता उमर जलाएगी शायद ये आग मुझको
जो बुझाने से और भी भड़क जाती है
दिल में जो बात दबी है मगर
होठों पर आती है रुक जाती है
होठों पर आती है रुक जाती है"
"अक्स"
होठों पर आती है रुक जाती है
कहने को जिसको ज़ुबान मचल जाती है
बात फिर भी ना ये कह पाती है”
“सोचता हूँ क्यों ये होता है
क्यों तेरी याद दिल में महक जाती है
इस महक को मैं फैला तो दूँ मगर
लगता है तेरे अक्स से डर जाती है”
"ता उमर जलाएगी शायद ये आग मुझको
जो बुझाने से और भी भड़क जाती है
दिल में जो बात दबी है मगर
होठों पर आती है रुक जाती है
होठों पर आती है रुक जाती है"
"अक्स"
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